समाज, धर्म, आर्थिकी और राजनीति के प्रबुद्ध ‘कलाकारों’ को देश की समस्याओं का सिलेबस इतने दशकों में समझ नहीं आया इसलिए वैज्ञानिकों से आग्रह किया गया है कि वे देश के लिए दस महत्वपूर्ण काम करें। उन्हें लगने लगा है कि समाज में वास्तविक बदलाव विज्ञान ही ला सकता है। हमारे सामाजिक नायकों व सहनायकों के पास ज़रूरी निजी, पारिवारिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय कार्य अधिकता में होते हैं। यह अलग बात है कि देश के अनेक प्रसिद्ध संस्थानों में हज़ारों वैज्ञानिकों की कमी होने के बावजूद बुद्धिमान अभिभावक बच्चों को कमाऊ आईटी इंजीनियर बनाना चाहते हैं। प्रस्तावित दस कार्यों के इलावा ऐसी और भी ज़रूरी समस्याएं हैं जिन्हें हमारे शासक और प्रशासक हल नहीं कर सके या करना नहीं चाहते इनकी जिम्मेवारी भी वैज्ञानिकों को मिलनी चाहिए।
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समय की प्राथमिकता के हिसाब से हमारे वैज्ञानिकों को समय बर्बाद किए बिना ऐसा इंजेक्शन बना देना चाहिए जिसके लगाने पर भूख न लगे और इसका असर एक साल तक रहे। चुनाव जीतते ही सरकार इसे गरीब मतदाताओं के पेट में लगवा दे। यदि सरकार पांच साल तक चल पड़ती है तो अपने शासन काल में मात्र पांच इंजेक्शन लगाने पड़ेंगे। हालांकि बिना इंजेक्शन भी नेता भरोसा खिला खिलाकर बेहतर काम चला रहे हैं लेकिन फिर भी यदि सचमुच भूख न लगे तो दूसरी कई समस्याएं भी स्वयं हल हो सकती हैं। इंजेक्शन लगाने से, काम करने की ज़रूरत न रहने पर, बेरोज़गारी की समस्या हल हो जाएगी। हमारे यहां पढ़ाई लिखाई नौकरी के लिए की जाती है ताकि कड़की हिले और लड़की मिले। शिक्षा प्रणाली बदलने व सुधारने की समस्या में जंग लग चुका है। तब ज्यादा पढने लिखने की ज़रूरत भी नहीं रहेगी। वैसे भी कम या ज्यादा पढने लिखने से समझदारी हमारे यहां तो नहीं आती। किसानों को भूख न लगेगी तो उनकी ज्यादातर समस्याएं स्वत खत्म हो लेंगी। किसान के बच्चे वैसे भी किसानी नहीं करना चाहते। जब कोई बच्चा भूख या उससे पैदा हुई बीमारी से नहीं मरेगा तो सरकार की ज़िम्मेदारी कम रहेगी व और सम्बंधित राजनीतिक पार्टी भरपूर समय लेकर सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक वोटरसेवा कर सकेगी।
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समस्याओं को भगाने में जल्दबाजी करो तो फ़ालतू का खून खराबा होने लगता है और देश के विकास महाराज का सिंहासन डांवाडोल होता दिखता है। वैज्ञानिकों से कहकर इंजेक्शन प्रयोग विधि में नेता द्वारा किसी का भी पेट भरने का प्रावधान रखा ही जा सकता है।
- संतोष उत्सुक