विपक्षी दल वोट बैंक को पाने के लिए कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते। बेशक इसके लिए उन्हें भेदभाव, धर्म-जाति और अन्य ऐसे ही मुद्दों का सहारा क्यों ना लेना पड़े। विपक्षी दलों की इसी छद्म नीति को भारतीय जनता पार्टी उजागर करती रही है। केंद्र शासित लक्षद्वीप में विपक्षी दलों का यही चेहरा सामने आया है। विपक्षी दल इस प्रदेश में शराबबंदी हटाने के प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दलों का यह विरोध अल्पसंख्यक वोट बैंक को रिझाने के लिए है। जबकि लक्षद्वीप प्रशासन पर्यटकों की सुविधा और मांग के मद्देनजर इस प्रदेश में शराबबंदी हटाने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। लक्षद्वीप प्रशासन ने एक मसौदा उत्पाद शुल्क विनियमन विधेयक प्रकाशित किया है और द्वीपसमूह में शराब की बिक्री और खपत की अनुमति देने पर स्थानीय निवासियों से सुझाव मांगे हैं। कांग्रेस, एनसीपी और अन्य विपक्षी दल इस प्रस्ताव के विरोध पर आमदा हैं। विपक्षी दलों की दलील है कि लक्षद्वीप की 97 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है जो मानते हैं कि शराब का सेवन उनकी संस्कृति और धार्मिक परंपरा के खिलाफ है। सन 1979 में द्वीपों में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की मांग को पूरा करने के लिए, एक निर्जन द्वीप बंगाराम के रिसॉट्र्स में शराब परोसी जाती है। प्रशासन ने द्वीप पर बनने वाले नए पांच सितारा होटलों में शराब की अनुमति देने का प्रावधान किया है। ड्राफ्ट बिल में एक्साइज कमिश्नर की पोस्टिंग का प्रस्ताव है। मसौदा विधेयक में शराब की बिक्री और खपत की निगरानी और विनियमन के लिए उत्पाद शुल्क आयुक्त और सहायक कर्मचारियों की नियुक्ति का प्रस्ताव है। शराब के निर्माण, बिक्री और उपभोग से संबंधित तकनीकी या कानूनी मुद्दों पर प्रशासक को सलाह देने के लिए विशेषज्ञों का एक बोर्ड गठित किया जाएगा। विनियमन के प्रावधानों के अधीन, उत्पाद शुल्क आयुक्त किसी भी स्थानीय क्षेत्र के भीतर थोक या खुदरा द्वारा निर्माण और बिक्री के लिए लाइसेंस या पट्टा दे सकता है। प्रशासन को शराब की दुकानों को बंद करने का आदेश देने का अधिकार है, लेकिन लाइसेंस वर्ष में बंद दिनों की संख्या कुल मिलाकर सात दिनों से अधिक या लगातार तीन दिनों से अधिक नहीं होगी।
गौरतलब है कि विपक्षी एकता इंडिया के प्रमुख घटक समाजवादी पार्टी और उसके समर्थित मुस्लिम संगठनों ने मथुरा में शराब और मांस की बिक्री प्रतिबंधित करने के योगी सरकार के निर्णय का विरोध किया था। योगी सरकार के इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ता ने शाहिदा याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने मथुरा-वृंदावन के 22 वार्डों में प्रदेश सरकार द्वारा शराब व मांस की बिक्री पर रोक लगाने के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने याचिका खारिज कर कहा था कि, भारत विविधताओं का देश है। अगर देश में एकता बनाए रखना है तो सभी समुदायों और धर्मों का समादर बहुत जरूरी है। हमारे देश में विविधताओं के बावजूद एकता यहां की खूबसूरती है।
वर्ष 2016 में बिहार में शराब पर प्रतिबंध लगाने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी की वकालत की थी, जिस पर सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी ने तुरंत आलोचना की। समाजवादी पार्टी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर राज्य के खिलाफ नकारात्मक टिप्पणियां" करने और इस तरह "सांप्रदायिक ताकतों को मजबूत करने" का आरोप लगाया था। समाजवादी पार्टी की दलील थी कि सरकार के खिलाफ उनकी टिप्पणियों से सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ावा मिलेगा, जिनके खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार लड़ रही है। यह अलग बात है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर एक-दूसरे को गरियाने के बावजूद दोनों ही दल अब जोर-शोर से विपक्षी एकता की कवायद में जुटे हुए हैं।
छद्म धर्मनिरपेक्षता का आलम यह है कि इसमें राजनीतिक दल ही नहीं अभिनेता भी पीछे नहीं हैं। लक्षद्वीप के कट्टरपंथी मुसलमानों ने 'अनारकली' की शूटिंग नहीं होने दी, पर अभिनेता पृथ्वीराज के लिए वहाँ सब चंगा था। लक्षद्वीप के 'बहुसंख्यकों' के बचाव में शराब की दुकानें खोले जाने के विरोध में मलयाली अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन भी सामने आए थे, जिन्हें खुद इसी द्वीप के कट्टरपंथियों द्वारा अपनी ही फिल्म 'अनारकली' के शूटिंग के पीछे काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। निश्चित तौर पर मद्यपान के नुकसान सर्वविदित हैं। लेकिन सिर्फ एकतरफा धर्म और संस्कृति के आधार पर वोट की खातिर इस मुद्दे का समर्थन या विरोध करना विपक्षी दलों की असलियत को उजागर करता है। यही वजह है कि ऐसे दोहरे मापदंडों की वजह से भाजपा विपक्षी दलों पर हमलावर रही है। विपक्षी दल सामाजिक, धार्मिक सहित भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर कभी भी एकराय कायम नहीं कर सके। हर दल अपनी सुविधा और वोट बैंक की राजनीतिक के हिसाब से अपनी नीतियां बदलता रहा है। यही वजह है कि विपक्षी दल भाजपा के निशाने पर रहे हैं। विपक्षी दल जब जनहित और देशहित के व्यापक मुद्दों नीतिगत निर्णय नहीं लेंगे तब तक आम लोगों में उनके प्रति विश्वास कायम होना मुश्किल है। इसी से भाजपा को भी मौका मिलता है। उम्मीद यही की जाती है कि मुंबई में होने वाली विपक्षी दलों की तीसरी बैठक में जनहित से जुड़े मुद्दों पर कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा। सुविधा के हिसाब से नीतियां बदलना विपक्षी दलों को छोड़ना होगा। हालांकि विपक्षी दलों की दो बैठकों के परिणाम सिर्फ मेल-मिलाप तक ही सीमित रहे हैं। इन बैठकों में सिर्फ विपक्षी एकता का नया नाम इंडिया ही तय किया जा सका। देखना यही है कि मुंबई की बैठक में विपक्षी दल देश के सामने किस नए रंगरूप में पेश होते हैं, भाजपा को भी इसी बात का इंतजार है कि ताकि आरोपों के नए हथियारों को धार दी जा सके।
-योगेन्द्र योगी