By संतोष पाठक | Feb 24, 2020
2020 के अंत तक बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। वर्तमान राजनीतिक हालात की बात करें तो नीतीश कुमार भाजपा के साथ गठबंधन में ही विधानसभा चुनाव में उतरेंगे और लगातार चौथी बार सरकार बनाने के लिए जनादेश हासिल करने की कोशिश करेंगे। वहीं दूसरी तरफ लालू यादव की पार्टी उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव के नेतृत्व में नीतीश कुमार को चुनाव हराने की कोशिश करेगी। लालू यादव का पूरा कुनबा सार्वजनिक रूप से तेजस्वी को नेता मान चुका है। लालू यादव के सख्त आदेश के बाद बड़े बेटे तेजप्रताप यादव भी अब छोटे भाई को मुख्यमंत्री बनाने के लिए राज्य का दौरा कर रहे हैं।
हालांकि लालू यादव और तेजस्वी यादव दोनों को इस बात का बखूबी अहसास है कि तेजस्वी की दावेदारी सिर्फ परिवार के मान लेने से ही मजबूत नहीं होगी। राष्ट्रीय जनता दल के दिग्गज नेताओं को भी तेजस्वी के पक्ष में मनाना पड़ेगा। इससे भी बड़ी बात यह है कि रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा, वीआईपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश सहनी, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी जैसे सहयोगियों को भी तेजस्वी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के लिए मनाना पड़ेगा। इसमें कांग्रेस की भी एक अहम भूमिका होगी। शरद यादव भी अपना रोल निभाएंगे और अब तो माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर भी इस पूरे फैसले में निर्णायक भूमिका अदा करेंगे।
राजद के सहयोगी दल फिलहाल तेजस्वी को नेता मानने को तैयार दिखाई नहीं दे रहे हैं। सबसे दिलचस्प राजनीतिक स्थिति तो यह बन गई है कि अब राजद के राज्य सभा उम्मीदवार के ऐलान के साथ तेजस्वी यादव का भाग्य भी जुड़ गया है। आपको बता दें कि अप्रैल में बिहार से 5 राज्यसभा सांसदों का चुनाव होना है। विधानसभा में संख्या बल के आधार पर RJD दो नेताओं को राज्यसभा भेज सकती है। इसी वजह से आजकल विपक्ष के कई दिग्गज नेता रांची में लालू के दरबार में पहुंच रहे हैं। पहले यह माना जा रहा था कि जातीय समीकरण के आधार पर लालू यादव अपनी पार्टी के दो बड़े नेताओं को राज्य सभा भेजेंगे लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर समर्थन जुटाने के अभियान ने लालू यादव के मंसूबों पर पानी फेर दिया है।
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अब राजद की राज्य सभा उम्मीदवारों की लिस्ट पर तेजस्वी यादव की दावेदारी भी टिक गई है। सबसे पहले बात करते हैं शरद यादव की। किसी जमाने में शरद यादव के हाथों अपनी पार्टी जनता दल गंवाने वाले लालू यादव को मजबूरी में राष्ट्रीय जनता दल का गठन करना पड़ा था और आज शरद उसी राजद के सहारे राज्य सभा जाना चाहते हैं। राज्य सभा जाने की ललक की वजह से शरद ने तो तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया था। ऐसे में अगर लालू उन्हें राज्य सभा नहीं भेजते हैं तो फिर शरद अपने बयान से पलटने में देर नहीं करेंगे।
कांग्रेस ने भी तेजस्वी यादव के लिए समस्याएं बढ़ा दी हैं क्योंकि वह भी चाहती है कि दो में से एक राज्य सभा सीट लालू उन्हें दे दें ताकि कांग्रेस अपने किसी नेता को राज्य सभा भेज सके। पटना साहिब से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा का चुनाव हार चुके बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा अपनी दावेदारी को लेकर रांची जाकर लालू यादव से मुलाकात कर चुके हैं। बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि राजद ने लोकसभा चुनाव के समय ही राज्य सभा में कांग्रेस को एक सीट देने का वायदा किया था।
उपेन्द्र कुशवाहा हों या जीतन राम मांझी या फिर मुकेश सहनी, सबकी अपनी-अपनी दावेदारी है और तेजस्वी यादव को नेता मानने से पहले सब अपनी शर्तें मनवाना चाहते हैं। लेकिन राज्य सभा के दावेदार लालू यादव की अपनी पार्टी में कोई कम नहीं है। हाल ही में उनकी अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठा दिया था। उस समय यह कहा गया कि पार्टी में अपनी उपेक्षा से नाराज रघुवंश ने सार्वजनिक रूप से मोर्चा खोल दिया है। बाद में पार्टी के कामकाज को लेकर रांची जाकर लालू यादव से मुलाकात के दौरान रघुवंश भी राज्य सभा सीट को लेकर अपनी दावेदारी जता चुके हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह हों या पूर्व सांसद जय प्रकाश नारायण यादव और शिवानंद तिवारी, ये सभी नेता अलग-अलग मौकों पर रांची से लेकर पटना तक लालू यादव या तेजस्वी यादव से मिलकर अपनी दावेदारी जता चुके हैं। पार्टी के लिए बड़े फंड मैनेजर की भूमिका निभाने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री और लालू यादव के करीबी प्रेमचंद गुप्ता भी राज्य सभा की तरफ नजरें गड़ाए हुए हैं।
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इन सबके बीच लालू यादव अपने बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को लेकर भी परेशान हैं। तेजप्रताप जहां से भी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, उनकी पत्नी ऐश्वर्या उनके खिलाफ पर्चा भरेंगी। ऐसे में चुनावी माहौल राजद के खिलाफ ही जाएगा। इस वजह से लालू अपने बड़े बेटे को बिहार से बाहर यानि दिल्ली भेजना चाहते हैं– राज्यसभा के जरिए।
निश्चित तौर पर लालू यादव के लिए एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति पैदा हो गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि राज्य सभा उम्मीदवार की लिस्ट पर ही उनके अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव की दावेदारी भी टिक गई है क्योंकि लालू यादव यह चाहते हैं कि नीतीश कुमार के खिलाफ गठबंधन बना कर चुनाव लड़ा जाए और विरोधी दलों का यह कुनबा तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुनावी मैदान में जाए।
-संतोष पाठक