By रेनू तिवारी | Feb 16, 2021
राजस्थान उच्च न्यायालय ने सोमवार को पुलिस को निर्देश दिए कि वह वेब सीरीज आश्रम में कथित तौर पर दलितों की भावनाएं आहत करने को लेकर दर्ज प्राथमिकी के मामले में फिल्म निर्देशक प्रकाश झा के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं करे। प्रकाश झा पर इस वेब सीरीज में दलित समुदाय को आपत्तिजनक तरीके से पेश करने का आरोप है। उच्च न्यायालय की जोधपुर पीठ ने झा के खिलाफ जोधपुर के लुनी पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के अनुरोध वाली निर्देशक की याचिका पर होने वाली सुनवाई की अगली तारीख तक के लिए उन्हें यह राहत प्रदान की।
शिकायतकर्ता को क्या थी आपत्ति?
न्यायमूर्ति मनोज कुमार गर्ग की पीठ ने शिकायतकर्ता और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और उन्हें झा की याचिका के संदर्भ में छह सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए भी कहा। वेब सीरीज के पहले एपिसोड में कथित तौर पर दिखाया गया है कि शादी करने जा रहे दलित समुदाय के जोड़े के घोड़े पर सवार होकर जाने के दौरान ऊंची जाति के लोगों द्वारा उनका अपमान किया जाता है। इस सीन को लेकर ही आपत्ति जताते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।
आश्रम के किस सीन पर छिड़ा विवाद?
प्रकाश झा के खिलाफ एफआईआर वेब सीरीज की पहली कड़ी में एक दृश्य पर आपत्ति जताते हुए दर्ज की गई थी, जिसमें उच्च जाति के लोगों को दलित समुदाय के दूल्हे का अपमान करते हुए दिखाया गया है। इस दृश्य को लेकर, शिकायतकर्ता ने कहा था कि इस तरह के दृश्य ने न केवल दलित समुदाय का अपमान करते है, बल्कि उच्च जाति के लोगों के इस तरह के अपमानजनक व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं।
प्रकाश झा लगाए गये थे गंभीर आरोप
प्रकाश झा के खिलाफ एफआईआर में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कड़े आरोप लगाए गए हैं।
प्राथमिकी को रद्द करने के लिए प्रकाश झा के वकील निशांत बोरा ने कोर्ट के सामने तर्क दिया कि पुलिस को एससी / एसटी अधिनियम के तहत कड़े आरोप लगाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि यह किसी का अपमान करने का वास्तविक मामला नहीं था, यह केवल एक का चित्रण काल्पनिक स्थिति पर आधारित था।
संतों की छवि खराब करने का आरोप भी लगा
जोधपुर के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश के समक्ष दायर दूसरी याचिका में, झा पर कथित रूप से अपने धार्मिक संतों को खराब रोशनी में चित्रित करने के लिए हिंदू भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया गया है। शिकायतकर्ता ने तर्क दिया, "एक बलात्कारी, भ्रष्ट और ड्रग डीलर के रूप में संतों के चित्रण ने हिंदुओं के लिए संतों की पकड़ को कम कर दिया है।"