Prabhasakshi NewsRoom: Vasundhara Raje लगातार कटाक्ष कर रही हैं, पर BJP आलाकमान उनको महत्व नहीं दे रहा है, आखिर चल क्या रहा है?

By नीरज कुमार दुबे | Sep 04, 2024

राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का वह दर्द बार-बार उभर आता है जो उन्हें फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने पर मिला था। वसुंधरा राजे अक्सर अपने सोशल मीडिया पोस्टों, बयानों या संबोधनों में ऐसी बातें कह जाती हैं जो दर्शाता है कि वह भाजपा आलाकमान के उस फैसले से नाखुश हैं जिसके तहत उन्हें मुख्यमंत्री पद की कमान नहीं सौंप कर पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा को राजस्थान की कमान सौंप दी गयी थी। यहां आश्चर्यजनक बात यह है कि वसुंधरा राजे के बयानों पर भाजपा आलाकमान ज्यादा ध्यान ही नहीं दे रहा है। वसुंधरा राजे के साथ ही शिवराज सिंह चौहान को भी मध्य प्रदेश से हटाया गया था। शिवराज सिंह चौहान को केंद्रीय मंत्री बना कर उनका राजनीतिक कद तो बढ़ा दिया गया है लेकिन वसुंधरा राजे अब भी वहीं की वहीं हैं। इसलिए ऐसा लगता है कि वह अपने बयानों से भाजपा आलाकमान को संदेश देना चाह रही हैं कि उनका भी राजनीतिक पुनर्वास किया जाये।


हम आपको बता दें कि वसुंधरा राजे ने अपने ताजा बयान में किसी का नाम लिए बिना कटाक्ष किया है कि कुछ लोग पीतल की लौंग मिलने पर भी खुद को सर्राफ समझने लगते हैं। राजे ने कहा, ‘‘चाहत बेशक आसमां छूने की रखो, लेकिन पांव हमेशा जमीं पर रखो।’’ हम आपको बता दें कि वसुंधरा राजे बिड़ला सभागार में सिक्किम के नवनियुक्त राज्यपाल ओमप्रकाश माथुर के नागरिक अभिनन्दन कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं।


ओम प्रकाश माथुर की प्रशंसा करते हुए राजे ने कहा, ‘‘ओम माथुर चाहे कितनी ही बुलंदियों पर पहुंचें, इनके पैर सदा जमीन पर रहें हैं। इसीलिए इनके चाहने वाले भी असंख्य हैं। वरना कई लोगों को पीतल की लौंग क्या मिल जाती है, वह अपने आप को सर्राफ समझ बैठते हैं।’’ उन्होंने कहा कि माथुर से ऐसे लोगों को सीख लेना चाहिये कि ‘‘चाहत बेशक आसमां छूने की रखो, पर पांव हमेशा जमीं पर रखो।’’

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हम आपको यह भी बता दें कि हाल ही में वसुंधरा राजे ने ट्वीट किया था कि काश ऐसी बारिश आये, जिसमें अहम डूब जाए, मतभेद के किले ढह जाएं, घमंड चूर-चूर हो जाए, गुस्से के पहाड़ पिघल जाएं, नफरत हमेशा के लिए दफ़न हो जाये और सब के सब, मैं से हम हो जाएं। इससे पहले, वसुंधरा राजे ने राजनीति को उतार-चढ़ाव का दूसरा नाम बताते हुए कहा था कि हर व्यक्ति को इस दौर से गुजरना पड़ता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि संगठन में सबको साथ लेकर चलना मुश्किल काम है और बहुत सारे लोग इसमें विफल रहे हैं। उन्होंने कहा था कि पद और मद स्थाई नहीं होते, लेकिन कद स्थाई होता है।'


हम आपको याद दिला दें कि स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत और जसवंत सिंह जैसे भाजपा के कद्दावर नेता वसुंधरा राजे के विरोध में थे लेकिन अटल-आडवाणी की जोड़ी ने उन्हें 2003 में मुख्यमंत्री बना दिया था। मुख्यमंत्री बनते ही वसुंधरा राजे ने सरकार और संगठन पर ऐसी पकड़ बनाई थी कि राजस्थान में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की कुछ चलती ही नहीं थी। वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी के अध्यक्षीय कार्यकाल में तो वसुंधरा राजे ने पार्टी नेतृत्व की सुनी ही नहीं लेकिन मोदी-शाह के युग में भाजपा नेतृत्व ने वह काम कर दिखाया है जोकि कभी सोचा भी नहीं जा सकता था। भाजपा ने पिछले साल विधानसभा चुनावों के दौरान शुरू से ही वसुंधरा राजे को किनारे कर रखा था। पहले उन्हें परिवर्तन यात्राओं की कमान नहीं सौंपी गयी थी, फिर उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी नहीं बनाया गया और चुनाव परिणाम आने के काफी दिनों बाद नेतृत्व के मुद्दे पर चर्चा के लिए उन्हें दिल्ली बुलाया गया। बाद में विधायक दल की बैठक में वसुंधरा से ही भजन लाल शर्मा के नाम का ऐलान मुख्यमंत्री पद के लिए करवा दिया गया था।

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