By अमृता गोस्वामी | Apr 30, 2020
भारतीय चित्रकला के इतिहास में राजा रवि वर्मा का नाम सर्वोपरि है। हिन्दू धर्म संस्कृति और पौराणिक कथाओं महाभारत और रामायण के पात्रों पर बनाए उनके चित्र आज भी उनकी याद दिलाते हैं। राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल 1848 को केरल के किलिमानूर में हुआ था। इनके पिता का नाम एज्हुमविल नीलकंठन भट्टातिरिपद था जो एक पारंगत विद्वान थे, इनकी माता उमायाम्बा थम्बुरत्ति प्रसिद्ध कवि और लेखिका थीं।
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चित्रकारी का शौक राजा रवि वर्मा को बचपन से ही था, बचपन में वे घर की दीवारों पर भी चित्र बना दिया करते थे। चित्र बनाने की प्रेरणा उन्हें अपने चाचा से मिली जो स्वयं भी चित्रकार थे। राजा रवि वर्मा के चित्रकारी के शौक को देखते हुए उनके चाचा उन्हें त्रावणकोर के राजमहल ले गए, जहां वॉटर पेंटिंग के महान चित्रकार रामास्वामी नायडू से उन्हें चित्रकारी की बारीकियां सीखने को मिली। उस समय राजा रवि वर्मा महज 14 साल के थे, जल्दी ही उन्हें चित्रकला में महारत हासिल हो गई। इसके बाद उन्होंने मदुरै, मैसूर, बड़ौदा सहित देश के कोने-कोने में घूमकर अपनी चित्रकला को और भी निखारा। तब भारत में वॉटर कलर पेंटिंग का जोर था।
ऑयल पेंटिंग (तैल चित्रकारी) राजा रवि वर्मा ने नीदरलैंड के मशहूर चित्रकार थियोडोर जेनसन से सीखी जो उस समय भारत आए हुए थे। थियोडोर जेनसन से ऑइल पेंटिंग की तकनीक को सीखकर राजा रवि वर्मा ने कई ऑइल पेंटिग्स बनाई जिन्हें इतना पसंद किया गया कि उसके बाद भारत में ऑइल पेंटिंग्स का दौर चल पड़ा।
थियोडोर जेनसन दुनिया भर में पोर्टेट कलाकार के लिए भी काफी प्रसिद्ध रहे हैं। राजा रवि वर्मा ने उनसे ही पोर्टेट बनाना भी सीखा और उसमें निपुण होकर एक से बढ़कर एक पोर्टेट बनाए। बड़े-बड़े राजा महाराजाओं ने राजा रवि वर्मा से अपने पोर्टेट बनवाए। महाराणा प्रताप का उनका बनाया पोर्टेट उनकी चित्रकारी का बेमिसााल नमूना कहा जाता है।
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राजा रवि वर्मा ने अपने जीवन में 7000 से अधिक पेंटिंग्स बनाईं जिनमें दमयंती का हंस से बातें करना, शकुंतला को दुष्यंत की तलाश, नायर लेडी की अदाएं, शांतनु और मत्स्यगंधा की पेंटिग्स काफी फेमस हैं। सन 2007 में उनके द्वारा बनाई गई एक कलाकृति लगभग सवा मिलियन डॉलर में बिकी जिसमें उन्होंने त्रावणकोर के महाराज और उनके भाई को मद्रास के गवर्नर जनरल रिचर्ड टेम्पल ग्रेनविले को स्वागत करते हुए दिखाया गया था।
हमारे घरों में मां लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा या राधा-कृष्ण की जो तस्वीरें, विभिन्न फोटो, पोस्टर्स, कैलेंडर आदि हम देखते हैं, या कहें कि जिन्हें हम नित पूजते हैं उनमें से ज्यादातर राजा रवि वर्मा की बनाई हुई हैं। देवी-देवताओं के बनाए इनके चित्रों में जो देवत्व दिखाई देता है, जो गुणवत्ता दिखाई देती है वह सहज ही देवी-देवताओं के प्रति हमारी श्रृद्धा को जगाने वाली होती है। राजा रवि वर्मा ने भारतीय धर्मग्रंथों, पुराणों, महाकाव्यों में दिए गए पात्रों, देवी-देवताओं की कल्पना करके उन्हें चित्रों की शक्ल दी। इसके लिए उन्होंने वेद-पुराण इत्यादि का गहन अध्ययन भी किया था।
राजा रवि वर्मा को उनकी बनाई उत्कृष्ट पेंटिंग्स के लिए कई पुरुस्कार प्राप्त हुए, 1878 में विएना की एक प्रदर्शनी में जहां उन्हें उनकी चित्रकारी पर पुरस्कार दिया गया वहीं 1893 में शिकागो में हुए ‘वर्ल्डस कोलंबियन एक्स्पोजिसन’ में इनकी कलाकृतियों को तीन स्वर्ण पदक प्रदान किए गए। सन 1904 में इन्हें ब्रिटिश इंडिया के वाइसराय लार्ड कर्जन ने देश का सर्वश्रेष्ठ सम्मान 'कैसर-ए-हिन्द' प्रदान किया जिसे पाने वाले राजा रवि वर्मा पहले कलाकार थे। राजा रवि वर्मा के बनाए चित्रों का विशाल संग्रह वडोदरा के लक्ष्मीविलास पैलेस में देखा जा सकता है।
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2 अक्तूबर 1906 को महज 58 वर्ष की उम्र में राजा रवि वर्मा का देहांत तिरुवनंतपुरम में हो गया। भारतीय कला में महान योगदान देने वाले इस दिग्गज कलाकार को भारत में काफी सराहा गया। उनके नाम से केरल सरकार ने एक पुरस्कार’ की स्थापना की जो कला और संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए हर साल दिया जाता है। केरल मवेलीकारा में राजा रवि वर्मा के सम्मान में एक फाइन आर्ट कॉलेज की स्थापना की गई और किलिमनूर स्थित एक हाई स्कूल का नाम राजा रवि वर्मा के नाम पर रखा गया। सन 2013 में बुद्ध ग्रह पर एक क्रेटर का नाम भी राजा रवि वर्मा के नाम पर रखा गया।
शायद आपको पता होगा कि राजा रवि वर्मा के जीवन और उनके संघर्ष पर 2014 एक हिन्दी फिल्म भी बन चुकी है जिसका नाम था ‘रंग रसिया’। केतन मेहता के निर्देशन में इस फिल्म को रंजीत देसाई के बायोग्राफिकल नॉवेल पर बनाया गया था। इस फिल्म में राजा रवि वर्मा की भूमिका अभिनेता रणदीप हुडा ने निभाई है।
- अमृता गोस्वामी