पंजाब में कांग्रेस के लिए समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही है। आने वाले साल में वहां विधानसभा के चुनाव होने हैं। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के भीतर गुटबाजी की खबरें हैं उससे कहीं ना कहीं पार्टी की स्थिति कमजोर दिखाई पड़ रही है। पार्टी के अंदर की लड़ाई नित्य नए और गंभीर मोड़ ले रही है। नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच की टकराव की खबरें तो लगातार रहती है। इन सब के बीच अब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा भी अमरिंदर को चुनौती दे रहे हैं। बाजवा ने तो पार्टी को 45 दिन का समय तक दे दिया है। बाजवा श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करने वालों पर कार्रवाई की लगातार मांग कर रहे हैं। सिद्धू भी इसी मामले को लेकर मुख्यमंत्री अमरिंदर को घेर रहे हैं।
पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध वाले सारे नेता अब गोलबंद होते दिखाई दे रहे हैं। बाजवा ने तो पार्टी को 45 दिन का अल्टीमेटम देते हुए यह तक कह दिया कि अगर हमारी बात नहीं सुनी गई तो मैं भी आजाद होऊंगा और कैप्टन अमरिंदर सिंह भी। दोनों के रास्ते अलग अलग हो जाएंगे। यानी कि बाजवा पार्टी में टूट के संकेत दे रहे हैं। साथ ही साथ यह भी बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव में वह कैप्टन के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं। कांग्रेस में भी टूट का डर है। बाजवा का यह अल्टीमेटम उसके लिए परेशानी का सबब है। कांग्रेस जानती है कि अगर बाजवा को मनाया नहीं जाता है तो कहीं ना कहीं आने वाले दिनों में वह उसके लिए चुनौती बन सकते हैं। कांग्रेस को यह लगता है कि भाजपा बाजवा पर डोरे डाल सकती है।
अकाली दल गठबंधन से अलग होने के बाद भाजपा को पंजाब में बड़े चेहरे की तलाश है। भाजपा के साथ फिलहाल सिद्धू भी नहीं है। हमने देखा है कि किस तरह से भाजपा के पास है जिन राज्यों में प्रभावशाली वजूद नहीं रहा है वहां वह दूसरे दलों के नेताओं को तोड़कर सत्ता में आ रही है। हाल में ही हमने असम का भी उदाहरण देखा। असम में किस तरह से हिमंत बिस्वा सरमा को लेकर भाजपा आगे बढ़ी और पूर्वोत्तर में आज अपने आप को बहुत मजबूत कर चुकी है। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भी हमने देखा कि किस तरह से भाजपा तृणमूल कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को तोड़कर अपने पार्टी में शामिल कराने में कामयाब रही। यही कारण रहा कि भाजपा पश्चिम बंगाल में अब दूसरे नंबर की पार्टी बन गई है। उसके वोट शेयर में भी बढ़ोतरी देखी गई है।
बाजवा की टूट कांग्रेस के लिए संकट है। बाजवा खुद को पंजाब में मुख्यमंत्री का चेहरा मानते रहे हैं। उनके अंदर मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा है। एक वक्त पर कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उन्हें पंजाब में कैप्टन के विकल्प के रूप में पेश जरूर किया था लेकिन बाद में जैसे ही पार्टी को लगा कि बाजवा पर दांव लगाना गलत है उसने कैप्टन अमरिंदर को आगे कर दिया और सरकार बन गई। कैप्टन ने भी उस समय कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा। 2021 के भरोसे बाजवा शांत थे लेकिन अब बाजवा अपने बगावती तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। इसका कारण यह है कि कैप्टन एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में आगे हैं। आलाकमान भी कैप्टन पर भरोसा कर रही है। बाजवा कैप्टन विरोधी नेताओं को एक गुट में करने की कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि भाजपा कांग्रेस के कई असंतुष्ट नेताओं के साथ संपर्क में है। जाहिर सी बात है कि बाजवा जैसे नेताओं की मांग कांग्रेस नहीं मानती है तो कहीं ना कहीं उसे आने वाले दिनों में बड़े नुकसान हो सकते है।