पत्रकारिता के एक महान पुरोधा पुरुष, मजबूत कलम एवं निर्भीक वैचारिक क्रांति के सूत्रधार, उत्कृष्ट राष्ट्रवादी, भाजपा के नेता और भाजपा मुखपत्र ‘कमल’ के मुख्य सम्पादक प्रभात झा अब हमारे बीच नहीं रहे। वे 67 वर्ष की उम्र में 26 जुलाई, 2024 को प्रातः 5 बजे गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में जिन्दगी एवं मौत के बीच जूझते हुए हार गये, आखिर मौत जीत गयी। एक संभावनाओं भरा हिन्दी पत्रकारिता, स्वच्छ राजनीति एवं राष्ट्रीय विचारों का सफर ठहर गया, उनका निधन न केवल पत्रकारिता के लिये, भारत की राष्ट्रवादी सोच के लिये बल्कि भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रवादी राजनीति पर एक गहरा आघात है, अपूरणीय क्षति है। प्रभात झा का जीवन सफर आदर्शों एवं मूल्यों की पत्रकारिता की ऊंची मीनार है। उनका निधन एक युग की समाप्ति है।
प्रभात झा पत्रकार, लेखक स्तंभकार रहे हैं, वही उनका राजनीति जीवन भी प्रेरक रहा हैं। वे मध्य प्रदेश राज्य से राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं। वे 2010 से दिसंबर 2012 तक मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे। यही वो दौर रहा जिसमें मध्यप्रदेश में भाजपा की जमीन गहरी हुई। वर्तमान में वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। झा का जन्म 4 जून 1957 को हरिहरपुर, दरभंगा जिला, बिहार में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा ग्वालियर, मध्य प्रदेश से की। यहां के पीजीवी कॉलेज से उन्होंने बीएससी, माधव कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एमए और एमएलबी कॉलेज से एलएलबी की डिग्री ली। उनके करीबियों का कहना है कि वह शुरू से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से खास जुड़ाव रखते थे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत पत्रकारिता से की। स्वदेश अखबार में भी लंबे समय तक जुड़े रहे। झा की शादी रंजना झा से हुई है और उनके दो बेटे तुष्मुल और आयत्न हैं।
मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे प्रभात झा से मिलने के अनेक अवसर मिले, 85 नार्थ एवेन्यू में सुखी परिवार फाउण्डेशन के अस्थायी कार्यालय से सटा हुआ उनका आवास था। सुखी परिवार अभियान के प्रणेता आदिवासी संत गणि राजेन्द्रविजयजी के पास वे अक्सर आ जाते एवं उनसे लम्बी राष्ट्र-विकास एवं समाज-निर्माण की चर्चाएं होती रहती थी। राजधानी के कंस्टीट्यूशनल क्लब में सुखी परिवार फाउंडेशन द्वारा आयोजित ‘दिव्य भारत के निर्माता मोदी’ विषयक डॉ. अविनाश काटे द्वारा कैनवास पर ऐक्रेलिक रंगा से हस्तनिर्मित 75 भावचित्रों की प्रदर्शन एवं पुस्तक का उद्घाटन उन्होंने किया। इस कार्यक्रम का संयोजन मुझे करने का मौका मिला। वे सुखी परिवार फाउण्डेशन के कार्यक्रमों से अत्यंत प्रभावित थे और इसको आगे बढ़ाने एवं आदिवासी कल्याण के लिये सुझाव देते रहते थे।
प्रभात झा जितने सफल जननायक थे उतने ही प्रखर लेखक थे। उन्हें निर्भीक विचारों, स्वतंत्र लेखनी और बेबाक राजनैतिक टिप्पणियों के लिये जाना जाता रहा है। उनको पढ़ने वाले लोगों की संख्या लाखों में है और अपने निर्भीक लेखन से वे काफी लोगों के चहेते थे। उन्होंने पत्रकारिता में उच्चतम मानक स्थापित किये। वे न केवल अपने वैचारिक आलेखों के जरिये राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं को सशक्त तरीके से प्रस्तुति देते रहे बल्कि गरीबों, अभावग्रस्तों, पीड़ितों और मजलूमों की आवाज बनते रहे। अपनी कलम के जरिये उन्होंने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी कलम जब भी चली उन्होंने लाखों लोगों की समस्याओं को सरकारों और प्रशासन के सामने रखा और भारतीय लोकतंत्र में लोगों की आस्था को और मजबूत बनाने में योगदान दिया।
प्रभात झा को हम भारतीयता, पत्रकारिता एवं भारतीय राजनीति का अक्षयकोष कह सकते हैं, वे चित्रता में मित्रता के प्रतीक थे तो गहन मानवीय चेतना के चितेरे जुझारु, निडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थे। वे एक ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व थे, जिन्हें पत्रकार जगत का एक यशस्वी योद्धा माना जाता है। उन्होंने आमजन के बीच, हर जगह अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। लाखों-लाखों की भीड़ में कोई-कोई प्रभात झा जैसा विलक्षण एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति जीवन-विकास की प्रयोगशाला में विभिन्न प्रशिक्षणों-परीक्षणों से गुजर कर महानता का वरण करता है, विकास के उच्च शिखरों पर आरूढ़ होता है और अपनी मौलिक सोच, कर्मठता, कलम, जिजीविषा, पुरुषार्थ एवं राष्ट्र-भावना से समाज एवं राष्ट्र को अभिप्रेरित करता है। उन्होंने आदर्श एवं संतुलित समाज निर्माण के लिये कई नए अभिनव दृष्टिकोण, सामाजिक सोच और कई योजनाओं की शुरुआत की। देश और देशवासियों के लिये कुछ खास करने का जज्बा उनमें कूट-कूट कर भरा था। वे समाज के लिये पूरी तरह समर्पित थे।
प्रभात झा एक ऐसे जीवन की दास्तान है जिन्होंने अपने जीवन को बिन्दु से सिन्धु बनाया है। उनके जीवन की दास्तान को पढ़ते हुए जीवन के बारे में एक नई सोच पैदा होती है। जीवन सभी जीते हैं पर सार्थक जीवन जीने की कला बहुत कम व्यक्ति जान पाते हैं। प्रभातजी के जीवन कथानक की प्रस्तुति को देखते हुए सुखद आश्चर्य होता है एवं प्रेरणा मिलती है कि किस तरह से दूषित राजनीतिक परिवेश एवं आधुनिक युग के संकुचित दृष्टिकोण वाले समाज में जमीन से जुड़कर आदर्श जीवन जिया जा सकता है, आदर्श स्थापित किया जा सकता है। और उन आदर्शों के माध्यम से देश की पत्रकारिता, राजनीति, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और वैयक्तिक जीवन की अनेक सार्थक दिशाएँ उद्घाटित की जा सकती हैं। उन्होंने व्यापक संदर्भों में जीवन के सार्थक आयामों को प्रकट किया है, वे आदर्श जीवन का एक अनुकरणीय उदाहरण हैं, मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता, समाजसेवा एवं राजनीति को समर्पित एक लोककर्मी का जीवनवृत्त है। उनके जीवन से कुछ नया करने, कुछ मौलिक सोचने, पत्रकारिता एवं राजनीति को मूल्य प्रेरित बनाने, सेवा का संसार रचने, सद्प्रवृत्तियों को जागृत करने की प्रेरणा मिलती रहेगी।
प्रभात झा वर्तमान भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता भरी नीतियों से प्रभावित थे और भाजपा मुखपत्र ‘कमल’ के माध्यम से सशक्त भारत, विकसित भारत की नीतियों को बल देने के लिये वैचारिक धरातल तैयार किया। वे एक राजनीतिज्ञ के रूप में सदा दूसरों से भिन्न रहे। घाल-मेल से दूर। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। उनके जीवन से जुड़ी विधायक धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे जिसका वार कभी खाली नहीं गया। वे जितने उच्च नैतिक-चारित्रिक राजनेता एवं पत्रकार थे, उससे अधिक मानवीय एवं सामाजिक थे। वे हमेशा बेपरवाह और निश्चिन्त दिखाई पड़ते थे, प्रायः लोगों से घिरे रहते थे और हंसते-हंसाते रहते थे। उनके जीवन के सारे सिद्धांत मानवीयता एवं राष्ट्रीयता की गहराई ये जुड़े थे और उस पर वे अटल भी रहते थे। किन्तु किसी भी प्रकार की रूढ़ि या पूर्वाग्रह उन्हें छू तक नहीं पाता। वे हर प्रकार से मुक्त स्वभाव के थे और यह मुक्त स्वरूप भीतर की मुक्ति का प्रकट रूप है।
भारतीय राजनीति की बड़ी विडम्बना रही है कि आदर्श की बात सबकी जुबान पर है, पर मन में नहीं। उड़ने के लिए आकाश दिखाते हैं पर खड़े होने के लिए जमीन नहीं। दर्पण आज भी सच बोलता है पर सबने मुखौटे लगा रखे हैं। ऐसी निराशा, गिरावट व अनिश्चितता की स्थिति में प्रभातजी ने राष्ट्रीय चरित्र, उन्नत जीवन शैली और स्वस्थ राजनीति प्रणाली के लिए बराबर प्रयास किया। वे व्यक्ति नहीं, नेता नहीं, बल्कि विचार एवं मिशन थे। प्रभात झा को एक सुलझा हुआ और कद्दावर नेता, जनसेवक एवं पत्रकार माना जाता रहा है। उनका निधन एक आदर्श एवं बेबाक सोच की पत्रकारिता का अंत है। वे सिद्धांतों एवं आदर्शों पर जीने वाले व्यक्तियों की श्रृंखला के प्रतीक थे।
प्रभातजी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व सफल राजनेता, प्रखर पत्रकार, लेखक, कुशल प्रशासक के रूप में अनेक छवि, अनेक रंग, अनेक रूप में उभरकर सामने आता हैं। आपके जीवन की दिशाएं विविध एवं बहुआयामी थीं। आपके जीवन की धारा एक दिशा में प्रवाहित नहीं हुई, बल्कि जीवन की विविध दिशाओं का स्पर्श किया। यही कारण है कि कोई भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र आपके जीवन से अछूता रहा हो, संभव नहीं लगता। आपके जीवन की खिड़कियाँ समाज एवं राष्ट्र को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रही। उनकी सहजता और सरलता में गोता लगाने से ज्ञात होता है कि वे गहरे मानवीय सरोकार से ओतप्रोत एक अल्हड़ व्यक्तित्व थे। बेशक प्रभातजी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपने सफल लेखक-पत्रकार जीवन के दम पर वे हमेशा भारतीय पत्रकारिता एवं हिन्दी साहित्य के आसमान में एक सितारे की तरह टिमटिमाते रहेंगे।
- ललित गर्ग
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार