नेताओं के वादों में नहीं है प्रदूषण की समस्या का निदान

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By योगेंद्र योगी | Mar 17, 2025

नेताओं के वादों में नहीं है प्रदूषण की समस्या का निदान

प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुदंरलाल बहुगुणा ने कहा था कि प्रकृति हर व्यक्ति की ज़रूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त प्रदान करती है, लेकिन हर व्यक्ति के लालच को पूरा नहीं करती। बहुगुणा का कहना था कि प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करके हम अपनी अर्थव्यवस्था को किसी भी ऊंचाई पर पहुंचा सकते हैं, तो हम नीचे से अपनी जमीन को खिसका रहे हैं। वर्ल्ड एयर क्वालिटी 2024 की रिपोर्ट बहुगुणा के पर्यावरण को लेकर दिए गए बयान को सही साबित करती नजर आ रही है। इस रिपोर्ट मे सबसे ज्यादा 20 प्रदूषित शहरों में दिल्ली समेत राष्ट्रीय राजधानी परियोजना क्षेत्र के कई शहर भी शामिल हैं। भारत के 13 शहरों की हालत सर्वाधिक खराब है। जिस मेघालय के बारे में हरी-भरी वादियों और खूबसूरत प्राकृतिक नजारों के सुरम्य स्थलों की कल्पना की जाती थी, उसका बर्नीहाट सबसे प्रदूषित शहर है। बर्नीहाट में प्रदूषण का उच्च स्तर स्थानीय कारखानों, जैसे शराब निर्माण, लोहा और इस्पात संयंत्रों से निकलने वाले उत्सर्जन के कारण है। पड़ोसी देशों में पाकिस्तान के चार शहर और चीन का एक शहर भी इस सूची में हैं। स्विट्जरलैंड की एयर क्वालिटी टेक्नोलॉजी कंपनी आईक्यूएयर की वर्ल्ड एयर क्वालिटी की इस रिपोर्ट में भारत 2024 में दुनिया का 5वां सबसे प्रदूषित देश बन गया है, जो 2023 में तीसरे स्थान पर था। देश के 35 प्रतिशत शहरों में पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सीमा 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 10 गुना अधिक है। दिल्ली में स्थिति और भी गंभीर है, जहां वार्षिक औसत पीएम 2.5 सांद्रता 2023 में 102.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से बढ़कर 2024 में 108.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गई। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 2024 में पीएम 2.5 (2.5 माइक्रोन से छोटे प्रदूषण कण) की सांद्रता में 7 प्रतिशत की कमी आई है, जो 2023 में 54.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से घटकर 50.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गई।   


दिल्ली में वायु प्रदूषण साल भर एक गंभीर समस्या बना रहता है, जो सर्दियों में और भी खतरनाक हो जाता है। प्रतिकूल मौसम, वाहनों से निकलने वाला धुआं, धान की पराली जलाना, पटाखों का धुआं और अन्य स्थानीय स्रोत हवा की गुणवत्ता को खराब करते हैं। पीएम 2.5 कण फेफड़ों और रक्तवाहिकाओं में प्रवेश कर सांस की बीमारियों, हृदय रोग और कैंसर का कारण बन सकते हैं। औद्योगिक उत्सर्जन, वाहनों का धुआं और पराली जलाने जैसे स्रोतों पर सख्त नियंत्रण के बिना स्थिति में सुधार मुश्किल है। शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत से बर्नीहाट (मेघालय), दिल्ली, मुल्लांपुर (पंजाब), फरीदाबाद, गुरुग्राम (हरियाणा), लोनी, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश), गंगानगर, भिवाड़ी और हनुमानगढ़ (राजस्थान) शामिल हैं। यह रिपोर्ट भारत के लिए एक चेतावनी है कि वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।

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वायु प्रदूषण भारत में एक बड़ा स्वास्थ्य जोखिम बना हुआ है। लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ के रिसर्च के अनुसार वर्ष 2009 से 2019 तक हर साल लगभग 15 लाख लोगों की मौत पीएम 2.5 प्रदूषण के लंबे संपर्क के कारण हुई। रिपोट्र्स बताती हैं कि प्रदूषण के कारण भारतीयों की औसत आयु 5.2 साल कम हो रही है। भारत में बढ़ते प्रदूषण से देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान हो रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रदूषण से हर साल 95 अरब डॉलर यानी देश की जीडीपी के लगभग 3 प्रतिशत का नुकसान हो रहा है। वर्ष 2019 में डलबर्ग नाम की ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म ने बताया था कि भारत में प्रदूषण के कारण 95 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। इसका कारण काम की उत्पादकता में कमी, छुट्टियां लेना और समय से पहले मौत है। यह रकम भारत के बजट का लगभग 3 फीसदी और देश के सालाना स्वास्थ्य खर्च का दोगुना है। रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 में भारत में 3.8 अरब कार्य दिवसों का नुकसान हुआ, जिससे 44 अरब डॉलर की चपत लगी। वर्ष 2070 तक भारत के नेट-जीरो के लक्ष्य को पाने के लिए हरेक क्षेत्र से कार्बन उत्सर्जन कम करने की जरूरत है। इस दिशा में बीते वर्षों में सरकारों ने ईवी वाहनों पर सब्सिडी देने की शुरुआत की है, पीएम सूर्य घर योजना, पीएम-कुसुम योजना के भी लाभार्थियों की संख्या में वृद्धि सकारात्मक कदम है। भारत अपने अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहा है और धीरे-धीरे कोयला आधारित समुदायों को वैकल्पिक रोजगार के साधन करवा रहा है। इन सभी संयुक्त प्रयासों से आने वाले भविष्य में वायु प्रदूषण पर असर पड़ेगा। इसके बावजूद सरकारी प्रयास आधे-अधूरे हैं।   


वर्ष 2023 की एक वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट में बताया गया कि प्रदूषण का माइक्रो-लेवल असर भारत की अर्थव्यवस्था को मैक्रो-लेवल पर प्रभावित कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, अगर पिछले 25 सालों में भारत ने प्रदूषण को आधा भी कम किया होता, तो 2023 के अंत तक भारत की जीडीपी 4.5 फीसदी ज्यादा होती। लांसेट हेल्थ जर्नल की एक रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 में प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़े असर ने देश की जीडीपी को 1.36 फीसदी धीमा कर दिया। अगर प्रदूषण पर कदम नहीं उठाए गए, तो स्थिति और खराब हो सकती है। वर्ष 2023 की डलबर्ग रिपोर्ट ने अनुमान लगाया है कि 2030 तक, जब भारत की औसत उम्र 32 साल होगी, वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती है, भारत में पर्यावरण की कई समस्या है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, कचरा, और प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषण भारत के लिए चुनौतियाँ हैं। पर्यावरण की समस्या की परिस्थिति 1947 से 1995 तक बहुत ही खराब थी। 1995 से 2010 के बीच विश्व बैंक के विशेषज्ञों के अध्ययन के अनुसार, अपने पर्यावरण के मुद्दों को संबोधित करने और अपने पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाने में भारत दुनिया में सबसे तेजी से प्रगति कर रहा है। फिर भी, भारत विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के स्तर तक आने में इसी तरह के पर्यावरण की गुणवत्ता तक पहुँचने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है। भारत के लिए एक बड़ी चुनौती और अवसर है। पर्यावरण की समस्या का, बीमारी, स्वास्थ्य के मुद्दों और भारत के लिए लंबे समय तक आजीविका पर प्रभाव का मुख्य कारण हैं।             


तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या व आर्थिक विकास और शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, बड़े पैमाने पर औद्योगीक विस्तार तथा तीव्रीकरण, तथा जंगलों का नष्ट होना इत्यादि भारत में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के प्रमुख कारण हैं।               


यह अनुमान है कि देश की जनसंख्या वर्ष 2018 तक 1.26 अरब तक बढ़ जाएगी। अनुमानित जनसंख्या का संकेत है कि 2050 तक भारत दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश होगा और चीन का स्थान दूसरा होगा। दुनिया के कुल क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत परन्तु विश्व की जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत भारत में होगी। देश का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव काफी बढ़ गया है। भारत को प्रदूषण कम करने के लिए ठोस और दीर्घकालिक उपायों की जरूरत है। प्रश्न यह भी है कि केंद्र और राज्यों की सरकारों को यह तय करना है कि उदाहरण दूसरे देशों के ज्यादा प्रदूषित होने का गिनाया जाए या अपने देश की हालत को सुधारा जाए। यह निश्चित है जब तक देश के राजनीतिक दल पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर राष्ट्रव्यापी नीति बनाने पर सहमत नहीं होंगे तब तक हर साल यह समस्या जन-धन को भारी नुकसान पहुंचाती रहेगी।


- योगेन्द्र योगी


(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)

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