देश में सत्ता चाहे किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, प्रदूषण के मामले में देश की राजधानी लाचार और बीमार रही है। दिल्ली का हाल ए दिल किसी को दिखाई नहीं दिया। राजनीतिक दलों ने भीषण प्रदूषण के संकट से जूझ रही दिल्ली के करोड़ों लोगों को इस जानलेवा समस्या से निजात दिलाने के बजाए एक-दूसरे के ऊपर जिम्मेदारी का ठीकरा फोडऩे का काम किया है। दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने की दिशा में उठाए गए कदम अभी तक ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुए हैं। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी दिल्ली के प्रदूषण के सामने सरकारों की लुंजपुंज नीति के आगे पस्त नजर आता है। दर्जनों बार चेतावनी देने के बावजूद केंद्र और दिल्ली राज्य की सरकार एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाती दिखती हैं। कहने को देश विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। विश्व स्तर पर रॉकेट सांइस सहित कई क्षेत्रों में भारत ने झंडे गाढ़े हैं, किन्तु देश की राजधानी प्रदूषण के मामले में विश्व में बदनाम है।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी सिलसिले में सुनवाई के दौरान दिल्ली-एनसीआर में पराली जलाने से बढ़ते प्रदूषण के मामले में सुनवाई के दौरान एक बार फिर पंजाब सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि पंजाब ने पराली जलाने से रोकने में नाकाम अधिकारियों पर सीधे कार्रवाई करने की बजाय उन्हें नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह पहली बार नहीं है जब पराली जलाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई हो, हर साल सर्दियों के मौसम में पराली जलाने से दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी परियोजना क्षेत्र में सांस तक लेना दुभर हो जाता है। थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में दिल्ली देश का 8वां प्रदूषित शहर था, वहीं बायर्निहाट के बाद बिहार का बेगुसराय देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर था। इसके बाद एनसीआर का ग्रेटर नोएडा शामिल था। दिल्ली और फरीदाबाद ही नहीं देश के कई अन्य छोटे बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता जानलेवा बनी हुई है। देश में प्रदूषण की स्थिति किस कदर भयावह है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में पीएम 2.5 हर साल दो लाख से ज्यादा अजन्मों को गर्भ में मार रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा वायु प्रदूषण को लेकर जो गुणवत्ता मानक तय किए हैं उनके आधार पर देखें तो देश की सारी आबादी यानी 130 करोड़ भारतीय आज ऐसी हवा में सांस ले रहे है जो उन्हें हर पल बीमार बना रही है, जिसका सीधा असर उनकी आयु और जीवन गुणवत्ता पर पड़ रहा है।
विडंबना देखिए कि जहां हम विकास की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं वहीं देश की 67.4 फीसदी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहां प्रदषूण का स्तर देश के अपने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से भी ज्यादा है। यदि हर भारतीय साफ हवा में सांस ले तो उससे जीवन के औसतन 5.3 साल बढ़ सकते हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा दिल्ली-एनसीआर में देखने को मिलेगा जहां रहने वाले हर इंसान की आयु में औसतन 11.9 वर्षों का इजाफा हो सकता है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2024 के अनुसार ओज़ोन संबंधी सभी मौतों में से लगभग 50 प्रतिशत भारत में दर्ज की गईं हैं, और उसके बाद चीन और बांग्लादेश आते हैं। वर्ष 2022 में अमेरिकन जर्नल ऑफ रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, प्रशांत महासागर की तरफ कैलिफोर्निया में, पीएम 2.5 नामक वायु प्रदूषक और भीषण गर्मी दोनों के अल्पकालिक संपर्क से जान जाने का खतरा बढ़ा है। यह समस्या पहले से ही भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक बनी हुई है, जहाँ पीएम 2.5 प्रदूषण ने औसत अनुमानित जीवन-काल को 5.3 वर्ष कम कर दिया है।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में प्रकाशित एक नई रिसर्च के मुताबिक घरों, इमारतों से बाहर वातावरण में मौजूद वायु प्रदूषण भारत में हर साल 21.8 लाख जिंदगियों को छीन रहा है। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो चीन के बाद भारत दूसरा ऐसा देश है जहां वायु प्रदूषण इतनी बड़ी संख्या में लोगों की जिंदगियों को लील रहा है। दुनिया भर में 2019 के दौरान सभी स्रोतों से होने वाले वायु प्रदूषण के चलते 83.4 लाख लोगों की असमय मृत्यु हो गई थी। इसके लिए प्रदूषण के महीन कण और ओजोन जैसे प्रदूषक जिम्मेवार थे। विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2020 में कहा गया है कि कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से 2019 की तुलना में 2020 में भारत की वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ है। हालाँकि, इस रिपोर्ट में बहुत ज़्यादा उत्साहजनक बात नहीं है क्योंकि वायु गुणवत्ता में सुधार के बावजूद भारत के 22 शहर दुनिया के शीर्ष 30 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं और दिल्ली एक बार फिर दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बनी हुई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वायु प्रदूषण दुनिया भर में लोगों के लिए सबसे बड़े स्वास्थ्य खतरों में से एक है, जो हर साल लगभग 7 मिलियन असामयिक मौतों का कारण बनता है। इनमें से 600,000 मौतें बच्चों की होती हैं।
भारत में वायु प्रदूषण की वजह से प्रत्येक वित्तीय वर्ष में भारतीय व्यापार जगत को करीब 95 बिलियन अमरीकी डालर (7 लाख करोड़) का नुकसान उठाना पड़ता है, जो कि भारत की कुल जीडीपी का करीब 3 प्रतिशत है। यह नुकसान सालाना कर संग्रह के 50 प्रतिशत के बराबर है या भारत के स्वास्थ्य बजट का डेढ़ गुना है। डलबर्ग एडवाइजर्स और भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की क्लीन एयर फंड की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई। डलबर्ग का अनुमान है कि भारत के कामगार अपने स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों के कारण प्रति वर्ष 130 करोड़ (1.3 बिलियन) कार्यदिवसों की छुट्टी लेते हैं जिसके 6 बिलियन अमरीकी डालर के राजस्व का नुकसान होता है। प्रदूषण से स्वास्थ्य और भारी आर्थिक नुकसान के बावजूद सत्तारुढ़ दलों की प्राथमिकता इसे समाप्त करना नहीं है। चुनावों के दौरान अदृश्य दिखने वाले सर्वाधिक खतरनाक इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल मौन रहते हैं। किसी भी राजनतिक दल के घोषण पत्र में प्रदूषण नियंत्रण के उपायों के प्रयासों का स्थान नहीं मिलता। यदि राजनीतिक दल इसी तरह प्रदूषण के हालात की उपेक्षा करते रहे तो वे दिन दूर नहीं जब भारत विभिन्न क्षेत्रों में तरक्की के सौपान तय करने के बावजूद विश्व में पिछड़ता नजर आएगा।
- योगेन्द्र योगी