लार्ड डलहौजी के नाम पर बसे शहर के नाम को बदलने को लेकर सियासत तेज

By विजयेन्दर शर्मा | Jun 09, 2021

शिमला। दुनिया भर में अपनी सुंदरता के लिये मशहूर हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल डलहौजी इन दिनों एकाएक सुर्खियों में आ गया है। चूंकि इस शहर का नाम बदलने की एक ओर मांग उभर कर सामने आ रही है तो दूसरी ओर इस मामले पर विरोध भी शुरू हो गया है। मामले ने राजनैतिक रंगत ले ली है। दरअसल, इस मामले पर भाजपा कांग्रेस आमने सामने हैं प्रदेष के जिला चंबा का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल डलहौजी देषी विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है लेकिन अब राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को बाकायदा खत लिखकर दलील दी है कि इस शहर का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर कर दिया जाए। सुब्रमण्यम स्वामी ने राजभवन को भेजे खत में पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट अजय जग्गा की पुरानी मांग का हवाला देते हुये कहा है कि अब वक्त आ गया है इस शहर का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर कर दिया जाए। स्वामी ने लिखा है कि वर्ष 1992 में प्रदेष के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने भी इसे लेकर एक अधिसूचना जारी की थी, लेकिन बाद में कांग्रेस सरकार ने उसे रद्द कर आदेश पलट दिया था।

 

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स्वामी ने इस चिट्ठी के जरिये राज्यपाल से आग्रह किया है कि डलहौजी का नाम बदलने के लिए वह मुख्यमंत्री को आदेश जारी करें और साल 1992 की अधिसूचना को लागू करवाएं। गौरतलब है कि डलहौजी को अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान साल 1854 में कर्नल नेपियर ने पांच पहाड़ियां पर बसाया था। उन्होंने लार्ड डलहौजी के नाम पर इस शहर का नाम रखा था। 1873 में रवींद्रनाथ टैगोर डलहौजी आए थे। वहीं 1937 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी डलहौजी पहुंचे थे। हालांकि डलहौजी के निवासी और पर्यटन व्यवसायी डलहौजी का नाम बदले जाने के पक्ष में नहीं हैं। वे इसका विरोध कर चुके हैं। इस बीच प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार ने हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी को पत्र लिख कर यह आग्रह किया है कि 1992 में भाजपा सरकार के निर्णय को अब पूरा किया जाए। उन्होंने कहा कि वे जब मुख्यमंत्री थे तो डलहौजी का नाम बदलने का अध्यादेश किया था उसके बाद कांग्रेस ने उसे रदद कर दिया। शान्ता कुमार ने लिखा हे कि डलहौजी तीन महान पुरुषों की याद से जुड़ा है। प्रसिद्ध साहित्यकार नोवल पुरस्कार विजेता रवीन्द्र नाथ टेगौर डलहौजी आये थे और अपनी प्रसिद्ध रचना गीतांजली का कुछ भाग लिखा था।  नेताजी सुभाष चन्द्र बोस डलहौजी आये।  कुछ समय रहे और उन्होंने विदेश जाकर आजाद हिन्द फौज बनाने के  क्रान्तिकारी विचार का यही पर आत्म-मथन करके निर्णय किया था। शहीद भक्त सिंह के चाचा प्रसिद्ध क्रान्तिकारी श्री अजीत सिंह डलहौजी रहे और यही पर उनका देहान्त हुआ।  उन्होंने कहा इन तीनों महान पुरूषों के स्मारक डलहौजी में बने।  नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जिस मकान में रहे सरकार उसका अधिग्रहण करके एक भव्य स्मारक बनाये।

 

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उन्होंने कहा डलहौजी आज केवल एक पर्वतीय पर्यटन केन्द के रूप में प्रसिद्ध है। परन्तु यह तीन महा पुरषों का स्मारक बनने के बाद यह स्थान भारत भर में एक ऐतिहासिक राश्ट्रीय तीर्थ बन जाएगा।  शान्ता कुमार ने कहा कि 1942 का कांग्रेस का आन्दोलन आजादी की लड़ाई का अन्तिम आन्दोलन था।  1942 से 1947 तक पांच वर्षो में कोई आन्दोलन नही हुआ।  परन्तु उसी समय नेताजी सुभाश चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज बनाई। संघर्ष शुरू किया और अण्डेमान की धरती पर जाकर तिरंगा झण्डा लहराया।  आजाद हिन्द फौज में भारतीय सैनिक थे इसलिए पहली बार भारत की सेना में आजादी के लिए विद्रोह फूटा।  यही कारण था कि 1947 में ब्रिटेन की संसद में भारत को आजाद करने के अधिनियम पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था - "जिस सेना के सहारे हमने आज तक भारत को गुलाम रखा - आजाद हिन्द फौज के कारण वह सेना अब हमारी बफादार नही रही इसलिए हमें भारत को आजाद करना पड़ रहा है।" उन्होंने कहा इस सब कारणों से डलहौजी का महत्व और भी बढ़ जाता है। उन्होंने आग्रह किया कि डलहौजी का नाम बदल कर तीन स्मारक बना इसे राष्ट्रीय तीर्थ बनाया जाए।

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