हमारे राष्ट्र को जिन दुर्बल करने वाली विषम व्याधियों ने बुरी तरह से ग्रस्त कर लिया था उसमें अस्वच्छता का नाम सर्वोपरि है। अस्वच्छता हमारे राष्ट्रीय विकास के रथ को रोकने वाली वह राक्षसी है जिसको मारे बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि अब वह दिन दूर नहीं जब हम अपने राष्ट्र को स्वच्छ बनाकर खूबसूरती से इसे आगे बढ़ाएंगे। भारत सरकार से लेकर आम आदमी तक अब स्वच्छता के प्रति पूरी तरह से जागरूक है और राष्ट्र को स्वच्छ करने को लोकर दिलों जान से जुटा हुआ है। परंतु यह चमत्कार ऐसे ही नहीं हुआ इसके लिए सरकार द्वारा चलाए गए जन जागरण कार्यक्रमों ने लोगों पर व्यापक प्रभाव डाला है। कहते हैं कि महात्मा गांधी इस देश की स्वतंत्रता के लिए खूब लड़ें और स्वतंत्र भी कराया पर उनका एक सपना अधूरा रह गया था वह है अपने राष्ट्र को स्वच्छ रखने का।
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महात्मा गांधी के इसी सपने को पूरा करने के लिए 15 अगस्त 2014 को यानि की स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम की घोषणा की थी। लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि महात्मा गांधी ने स्वच्छता को लेकर बहुत काम किया था और उनके इसी सपने को देशवासी भी आगे बढ़ाएंगे। देश को स्वच्छ बनाने के लक्ष्य से औपचारिक रूप से 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई। हालांकि देश की स्वच्छता को लेकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1999 में ग्रामीण स्वच्छता अभियान शुरू किया था लेकिन सत्ता बदलते ही इस योजना को गर्त में डाल दिया गया। 1 अप्रैल 2012 को मनमोहन सिंह सरकार ने इस योजना में बदलाव करते हुए इसे निर्मल भारत अभियान का नाम दिया। इसका सबसे बड़ा लक्ष्य था कि देश को खुले में शौच से मुक्त बनाना है, वह भी महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक। जब देश महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाएगा तब भारत सरकार यह दावा कर रही है कि उसने लगभग 99% ग्रामीण क्षेत्रों को खुले में शौच से मुक्त कर दिया है।
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इसके अलावा लगभग 4000 शहरों के ठोस कचरे को वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन करना भी स्वच्छ भारत अभियान के बड़े लक्ष्यों में से एक है। वर्तमान में देखा जाए तो स्वच्छ भारत अभियान के तहत कई कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। इसके अलावा जन जागरण के लिए काफी कुछ लगातार किया जा रहा है। जैसे कि सूखे कचरे को अलग कूड़ेदान में डालना, गीले कचरे को अलग कूड़ेदान में डालना। साथ ही आम लोगों को यह भी कहा जा रहा है कि आप अपना कचरा नगर निगम के द्वारा चलाई जा रही गाड़ियों में ही डाले। इतना ही नहीं, 'चुप्पी तोड़ो, स्वस्थ रहो' अभियान के तहत ग्राम सभा आयोजित कर जगह-जगह किशोर और किशोरियों को माहवारी के बारे में जानकारी दी जा रही है और खुल कर बात करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस अभियान का उद्देश्य भारत को हरा-भरा बनाना भी है। इस योजना के जरिए नागरिकों की सहभागिता से अधिक-से अधिक पेड़ लगाना, कचरा मुक्त वातावरण बनाना और देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छ भारत का निर्माण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा सामाजिक बुराइयों को भी नष्ट करना है। जैसे कि हाथ से मैला साफ करने की परंपरा को खत्म करना।
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इस अभियान का उद्देश्य शहरों और गांवों में Dust Bin लगवाना, सभी घरों में साफ पानी की पूर्ति सुनिश्चित करना, सड़कें, फुटपाथ और बस्तियां साफ रखना भी है। Global warming की भी चुनौतियों से निपटना इसके उद्देश्यों में से एक है। पर सवाल यह भी उठता है कि आखिर हमारे देश में स्वच्छ भारत अभियान की जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल, भौतिक, मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक कल्याण के लिये भारत के लोगों में स्वच्छता के फायदों का एहसास होना बेहद आवश्यक है। और इसी को ध्यान में रखते हुए इस अभियान को इतना प्रचारित और प्रसारित भी किया जा रहा है। इसके प्रचार में करोड़ों खर्च होते है। खुद प्रधानमंत्री ने कभी कुदाल चलाकर तो कभी झाड़ू लगातर लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते है। लेकिन हमारा देश इतना गंदा क्यों है? इसके कई कारण हैं जैसे कि शिक्षा का अभाव, जनसंख्या, घरों में शौचालयो का नहीं होना, अत्यधिक जनसंख्या, उद्योगों का अपशिष्ट पदार्थ, कचरे को सही निस्तारण का अभाव आदि। हालंकि धीरे धीरे देश इन स्थितियों से उबरने की कोशिश जरूर कर रहा है।
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इस साल 2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश में एक और ऐतिहासिक काम होने जा रहा है जब पूरे राष्ट्र में प्लास्टिक बैन कर दिया जाएगा। इस बारे में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल के स्वतंत्रता दिवस पर लोगों को संबोधित करते हुए कहा था। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने अपने इस कदम का उल्लेख UNGA के कार्यक्रम में भी किया था। साथ ही साथ स्वच्छ भारत अभियान के तहत किए जा रहे भारत सरकार के कामों का भी जिक्र प्रधानमंत्री ने किया। पर एक बात जरूर है कि सिर्फ यह काम सरकार का नहीं है, कर्मचारियों का नहीं है बल्कि हम सबकी भागीदारी जरूरी है। हमें अपने फैलाएं कचरे को साफ करने में गुरेज नहीं होना चाहिए। हमें उन लोगों के प्रति भी सम्मान की भावना रखनी चाहिए जो देश को स्वच्छ रखने में अपना योगदान दे रहे हैं। शायद इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुंभ मेले के दौरान स्वछाग्रहियों के पैर धोकर एक खास संदेश देने की कोशिश की थी। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तो देश मना रहा है और अपने राष्ट्र को स्वच्छ करने की बात भी कर रहा है लेकिन आगे अभी कई चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं। उम्मीद करते हैं जब देश आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा होगा तब हम पूर्णत: स्वच्छता की ओर बढ़ चले होंगे।