PM मोदी ने संविधान सभा की पहली बैठक का किया जिक्र, बोले- अनिश्चितिताओं से भरे हुए उस कालखंड में आजादी को लेकर था पूरा विश्वास

By अनुराग गुप्ता | Jun 18, 2022

नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को राम बहादुर राय द्वारा लिखी गई 'भारतीय संविधान' पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में वर्चुअल माध्यम से हिस्सा लिया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने पुस्तक को लेकर राम बहादुर राय और प्रकाशन से जुड़े तमाम लोगों को बधाईयां दी। उन्होंने कहा कि आप सभी देश के बौद्धिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग हैं। स्वभाविक है कि आपने इस पुस्तक के लोकार्पण के लिए समय और दिन भी खास चुना है। यह समय देश की आजादी के अमृत महोत्सव का है। 

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उन्होंने कहा कि आज ही के दिन, 18 जून को मूल संविधान के पहले संसोधन पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने हस्ताक्षर किए थे। यानी आज का दिन हमारे संविधान के लोकतांत्रिक गतिशीलता का पहला दिन था और इसी दिन संविधान को विशेष दृष्टि से देखने वाले इस किताब का लोकार्पण कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारा संविधान आजाद भारत की ऐसी परिकल्पना के रूप में हमारे सामने आया था, जो देश की कई पीढ़ियों के सपनों को साकार कर सके। संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई थी। यानी आजादी से भी कई महीने पहले। इस बैठक के पीछे एक बड़ा ऐतिहासिक संदर्भ था, समय और परिस्थितियां थी। आप सब इतिहास के जानकार लोग इससे परिचित हैं।

उन्होंने कहा कि अनिश्चितिताओं से भरा हुआ वो कालखंड, कई चुनौतियां से जूझ रहा हमारा स्वतंत्रता आंदोलन, लेकिन फिर भी हमारे देश का आत्मविश्वास इतना अडिग रहा होगा कि उसे अपनी आजादी और अपने स्वराज को लेकर पूरा भरोसा था। स्वयं पर भरोसा था। आजादी मिलने से इतने पहले ही देश ने आजादी की तैयारी शुरू कर दी थी। अपने संविधान की रूपरेखा के लिए विमर्श शुरू कर दिया था। यह दिखाता है कि भारत का संविधान केवल एक पुस्तक नहीं है। सिर्फ धाराओं का संग्रह नहीं है। यह एक विचार है, निष्ठा है, स्वतंत्रता का एक विश्वास है। 

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प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में देश आज स्वतंत्रता आंदोलन के अनकहे अध्यायों को सामने लाने के लिए सामूहिक प्रयास कर रहा है, जो सेनानी अपना सबकुछ अर्पण करने के बाद भी विस्मत रह गए, जो घटनाए आजादी की लड़ाई को नई दिशाए देने के बाद भी भुला दी गई और जो विचार आजादी की लड़ाई को ऊर्जा देते रहे फिर भी आजादी के बाद हमारे संकल्पों से दूर हो गए। देश आज उन्हें फिर से एक सूत्र में पिरो रहा है। ताकि भविष्य के भारत में अतीत की चेतना और मजबूत हो सके। इसलिए आज देश के युवा अनकहे इतिहास पर शोध कर रहे हैं, किताबें लिख रहे हैं।

इसी बीच उन्होंने कहा कि जब हम कोई नए संकल्प लेकर निकलते हैं तो हमारी जानकारी हमारी जागरूकता बनती है। बोध ही, हमारा प्रबोध करता है, इसलिए एक राष्ट्र के रूप में हम संविधान के सामर्थ्य का उतना ही विस्तृत उपयोग कर पाएंगे जितना हम अपने संविधान को गहराई से जानेंगे।

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