मेरी पत्नी बहुत उत्साहित है जब से उसने पढ़ा कि नासा सन 2040 तक चांद पर लोगों को बसाने के लिए ख़ास इमारतें बनाने की योजना बना रहा है। उसने मुझसे कह दिया है कि वहां एक प्लाट ले ही लो। मैंने कहा वहां प्लाट खरीदना बहुत असंभव, ख़्वाब जैसा है भूल जाओ। वह बोली कितने लोग अपने बेटी बेटे के नाम पर वहां ज़मीन खरीद रहे हैं। वह हमारे से ज़्यादा पैसे वाले तो नहीं हैं। आम लोग हैं। मैंने कहा वह एक दूसरे को उल्लू बुद्धू और बेवकूफ एक साथ बना रहे हैं।
उसने समझाया कि वहां पानी, ऑक्सीजन, कैल्शियम और बर्फ के सबूत मिले हैं तो क्या परेशानी है, कोशिश करो। मैंने दबाव डालकर कहा कि वहां तापमान 600 सौ डिग्री पहुंच जाता है, दुनिया के सारे एसी वहां पिघल जाएंगे। वहां सड़कें बनाना मुश्किल है तो पत्नी बोली, हमने कौन सा अभी वहां जाना है। प्लाट तो ले लो बच्चों के नाम, जब दाम महंगे होंगे तो फायदा देखकर बेच देंगे ।
सुना है वहां मिटटी मिली है, उसके ही घर बनाए जाएंगे। दुनिया से भी ज्यादा प्राकृतिक घर होगा। मैंने गलती से बता दिया कि वहां किचन और बाथरूम के लिए हरी भूरी सफ़ेद टाइलें बनाई जा रही हैं। इससे वह और उत्साहित हो गई बोली मुझे वो बातें मत बताओ जो मुझे पता नहीं है, बस वहां प्लाट ले लो। आपको पता होना चाहिए कि पंद्रह साल से चल रहे सीरियल में भी नायक अपने पड़ोसी की पत्नी के लिए चांद पर प्लाट खरीद चुका है। मेरी कई सहेलियों के नाम पर वहां प्लाट लिए जा चुके हैं, कुछ ले रही हैं। हमारा तो अपना ही मोहल्ला बस जाएगा वहां। कुछ समय बाद शुक्र ग्रह पर भी पहुंच गए तो वहां भी एक बढ़िया सा मकान बना लेंगे।
राजनीति खूब रोल अदा करती है। कामयाबी पर सियासत होनी चाहिए, सो होती है। श्रेय आ जाए तो उसे लूटने वालों में होड़ मचती है, मची। जिन्हें डायबिटीज है उन्होंने भी देशप्रेम के लड्डू खाए। कुछ महा कल्पना शील लोग तो चांद पर घूम फिर आए होंगे। वहां के तापमान में मज़े की ठंडक महसूस कर रहे होंगे। उन्हें चांद के सिवा कुछ सूझ ही नहीं रहा होगा। पहाडी क्षेत्र का बंदा जिसके यहां पांच दिन से पानी नहीं, बिजली का खंबा पिछली बारिश के मलबे में दब चुका है, सोच रहा है कि वैज्ञानिकों ने हमारे देश को चांद पर पहुंचा दिया क्या वे हमारे पहाड़ी शहर को बचाने की विधियां खोज सकेंगे। बेचारा उम्मीद के किनारे बैठा सोचे जा रहा है।
उसे लगता है समाज के सभी किस्म के नायकों को चांद जैसी ऊंची जगहों से उतरकर धरती पर आना चाहिए। वैसे तो सूर्य पर जाना भी मुश्किल नहीं है उच्च तकनीक है, करोड़ों है खर्च करने के लिए। पर्यावरण जैसा मुद्दा तो महारानी राजनीति ही नकार देती है, बेरोजगारी, अस्वच्छता और कुस्वास्थ्य की क्या बिसात। चांद, शुक्र, मंगल और सूर्य पर जाना साफ़ सुथरा काम है। इन यात्राओं से दुनिया में नाम होता है। छोटी मोटी दिक्कतें तो चलती रहती हैं। सोच रहा हूं शादी की पचासवीं वर्षगांठ पर इतने पैसों का उपहार पत्नी को दे दूं जितने में चांद पर प्लाट आएगा। पैसे उचित ढंग से इन्वेस्ट हो जाएंगे और चांद पर जाने का खर्च भी बचेगा।
- संतोष उत्सुक