By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | May 05, 2021
एक और देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर बढ़ता जा रहा है तो दूसरी और जीवन रक्षक दवाओं, मेडिकल उपकरणों और साधनों की जमाखोरी और कालाबाजारी जम कर होने लगी है। लगता है इस महामारी के दौर में भी कुछ लोग मानवीय संवेदनाओं को खो चुके हैं। आज सारी दुनिया कोरोना की दूसरी लहर से त्रसित है। भारत में कोरोना की दूसरी लहर के चलते हो रहे हालातों को देखते हुए दुनिया के देश सहायता के लिए आगे आ रहे हैं वहीं देश में ही कुछ लोग मानवता को शर्मसार करने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। देश के कोने-कोने से यह समाचार आम है कि ऑक्सीजन सिलेण्डर नहीं मिल रहे हैं तो ऑक्सीजन सिलेण्डरों की कालाबाजारी हो रही है। यहां तक कि समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों की मानें तो ऑक्सीजन सिलेण्डर 50 से 60 हजार रु. तक में ब्लैक करने के समाचार आम हो गए हैं। जयपुर में ही पुलिस द्वारा जमाखोरों द्वारा ऑक्सीजन सिलेण्डर जब्त करने और फिर सरकार से अनुमति लेकर इन सिलेण्डरों का उपयोग जरूरतमंद लोगों को उपलब्ध कराकर कई जिंदगियां बचाने के समाचार आम हैं।
आज समूचा देश ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट तक को दखल देना पड़ रहा है। बात केवल ऑक्सीजन सिलेण्डर तक ही सीमित नहीं है अपितु कोरोना संक्रमण की गंभीर स्थिति में उपयोग में आने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन की जमकर कालाबाजारी हो रही है। सरकार द्वारा निर्धारित दर से कई गुणा अधिक पैसे लेकर जरूरतमंद लोगों को उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध कराया जा रहा है। बात यहां तक ही नहीं कोविड के इस दौर में जरूरत का खास उपकरण ऑक्सीमीटर जो 250-2500 रुपए की रेंज में आसानी से उपलब्ध था, वह बाजार से गायब हो गया है। यही हाल स्पेरोमीटर व अन्य उपकरणं और दवाओं का हो गया है। साधारण चाइनीज मेड ऑक्सीमीटर डेढ़ हजार से तीन हजार तक जो जंचे उस राशि में चोरी छिपे बेचा जा रहा है। रेमडेसिविर तो दूर की बात कोरोना में उपयोग में आने वाली दूसरी दवाएं भी बाजार से गायब हैं या उनकी मुंहमांगे दाम वसूले जा रहे हैं। यहां तक कि रेमडेसिविर जैसे इंजेक्शनों के मनमाने दाम निजी अस्पतालों द्वारा लिए जाने की शिकायतें आम हैं। ऐसे में सरकार को दोष दिया जाना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता।
देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या चार लाख को पार कर गई है। हालांकि संतोष इस बात पर किया जा सकता है कि कोरोना संक्रमितों में से ठीक होने वालों का आंकड़ा भी थोड़ा सुधरने लगा है। इस समय सारा देश सन्नाटे में है और कोरोना संक्रमितों के मामलों में बढ़ोतरी और मृत्युदर में बढ़ोतरी चिंता का कारण बनती जा रही है। सरकारी तो सरकारी अब तो हालात यह हो गए है कि प्राइवेट अस्पतालों में भी जगह नहीं मिल रही है। वेंटीलेटर तो दूर की बात ऑक्सीजन बेड मिलना ही मुश्किल भरा होता जा रहा है। ऑक्सीजन की कमी के कारण मौत से संघर्ष करते लोगों को देखकर दिल दहल जाता है। ऐसे में केन्द्र व राज्य सरकारें अपने स्तर पर बेहतर प्रबंधन कर रही हैं क्योंकि कोई सरकार नहीं चाहती कि उनके राज्य में हालात बिगड़े। पर इस सबके बावजूद ऑक्सीजन की कमी और दवाओं की कालाबाजारी आम होती जा रही है। यह तो कुछ उदाहरण मात्र है। सरकार अपने स्तर पर छापे मार कर कालाबाजारी व जमाखोरी करने वालों को पकड़ भी रही है पर यह सब एक सीमा तक ही संभव है।
कोरोना की इस महामारी में एक और दानदाता और यहां तक कि अन्य देशों की सरकारें भी सहायता के लिए आगे आ रही हैं वहीं देश में ही जो कुछ लोग जमाखोरी और कालाबाजारी कर रहे हैं यह मानवता को शर्मसार करने वाली स्थिति है। जमाखोरी और कालाबाजारी करके ठीक है कोई दो पैसा अधिक बना लेगा पर उसका यह कृत्य किसी भी हालत में क्षम्य नहीं हो सकता। आखिर ऐसे समय में हमें सब कुछ भुलाकर पीड़ित मानवता के लिए आगे आना चाहिए और उपलब्ध संसाधनों से पीड़ित संक्रमितों को बचाना चाहिए। हमारे दो कदम पीड़ित संक्रमित के जीवन बचाने में सहायक हो सकते हैं। यह हमें सोचकर चलना होगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि कुछ चिकित्सा संस्थानों में भी इस तरह की घटनाएं आम होती जा रही हैं। होना यह चाहिए कि जो वस्तु या साधन हमारे पास है, वह खुले दिल से जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने के प्रयास किए जाएं। आज हम जिस महामारी के दौर से गुजर रहे हैं उसमें सबका दायित्व एक दूसरे की सहायता करने का हो जाता है। सरकार को भी इस संकट के दौर में जो लोग मानवता को शर्मसार कर रहे हैं उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। सख्त से सख्त सजा के प्रावधान होने चाहिए। पर सोचने की बात यह है कि इस तरह की करतूत करने वाले हमारे आसपास ही हैं। उन्हें समझना यह होगा कि इस समय वे कालाबाजारी या जमाखोरी कर किसी की जान से खेल कर दो पैसा अधिक कमा लेंगे पर आने वाली पीढ़ी और यदि उनमें जमीर नाम की कोई चीज होगी तो वह कभी माफ नहीं करेगी और यह बात उन्हें हमेशा कचोटती रहेगी।
-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा