साक्षात्कार- आंगनबाड़ियों को न्यूनतम वेतन से भी कम देना, शोषण नहीं तो क्या है: शिवानी कौल

By डॉ. रमेश ठाकुर | Feb 07, 2022

दिल्ली की 22 हजार आंगनबाड़ी महिला कर्मियां इस वक्त अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। बीते 31 जनवरी से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर के सामने धरना दे रही हैं। राजधानी में कुल 11 हजार आंगनबाड़ी सेंटर हैं, जो हड़ताल के चलते पिछले सप्ताह से बंद पड़े हैं। हालांकि सरकार के नुमाइंदे पहले दिन से ही हड़ताल को विफल करने के असफल प्रयासों में लगे हैं। विभाग की सीडीपीओ व सुपरवाइजर नौकरी से निकालने की धमकियां दे रही हैं। बावजूद इसके आंगनबाड़ी कर्मी हड़ताल का हिस्सा बन रही हैं, रोजाना धरना स्थल पर पहुंचती हैं। हड़ताल का संचालन ‘दिल्ली स्टेट आंगनबाड़ी वर्कस एंड हेल्पर्स यूनियन’ कर रही हैं जिसकी अध्यक्षा हैं शिवानी कौल। प्रदर्शन क्यों हो रहा है और कब तक होगा, आदि मुद्दों पर डॉ0 रमेश ठाकुर ने शिवानी कौल से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से।

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प्रश्नः अनिश्चितकालीन इस हड़ताल का आखिर क्या है मकसद?


मकसद और नियत पानी की तरह एकदम साफ है। केजरीवाल सरकार के झूठ को बेनकाब करना है। उनकी सरकार आंगनबाड़ी महिलाओं के मौलिक अधिकारों का खुलेआम हनन कर रही हैं। दिहाड़ी-मजदूरों को मिलने वाले न्यूनतम वेतन से भी कम आंगबाड़ियों को दिल्ली सरकार तनख्वा देती है और वह भी समय से नहीं? कई-कई महीनों सैलरी आती भी नहीं? दिल्ली में अकुशल कामगारों की मजदूरी अभी तक 15908 रूपए और अर्ध-कुशल कामगारों की 16064 रूपए थी, जिसमें अब वृद्धि करके क्रमशः 17537 और 17693 रुपए की गई है। वहीं, आंगबाड़ियों को 9709 रूपए और उनकी सहायिका को केवल 4854 रूपए वेतन दिया जाता है। दोनों में तुलनात्मक रूप से देखे तो सरकार उन्हें मजदूर से भी गया-गुजरा समझती है। इसे शोषण नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?  


प्रश्नः वेतन वृद्धि के अलावा और मांगे क्या-क्या हैं आपकी?


आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। ईएसआई, पीएफ और पेंशन जैसी सुविधाएं दी जाएं। वर्कर का वेतन 25 हजार और सहायिका को 20 हजार दिया जाए। दरअसल, ये सुविधाएं उनका मुकम्मल हक हैं और इस हक को लेने के लिए हमें जो भी करना होगा, हम करेंगे। इस बार हम आर-पार के मूड में हैं। पिछले दफे हमें झूठा आश्वासन देकर शांत करा दिया गया था। लेकिन इस बार झांसे में नहीं आएंगे। दिल्ली की आंगनवाड़ी वर्कर कम संशाधनों में बेहतर काम करती हैं। उन्हें फ्रंट लाइन वर्कर के अलावा दिल्ली की लाइफ लाइन कहा जाता है। लेकिन सुविधाओं के नाम पर जीरो।


प्रश्नः क्या इससे पहले भी हड़ताल हुई थी?


जी हां। अपनी मांगों को लेकर हम इससे पहले भी हड़ताल कर चुके हैं। लेकिन तब हमें झूठे वायदे करके शांत करवा दिया गया था। आंगनबाड़ी कर्मियों के मानदेय में आखिरी बार वृद्धि वर्ष 2017 में की गई थी। इसके बाद से कोई भी वृद्धि नहीं हुई। आगंनबाड़ियों को अनाथ बच्चों, गरीबों और बेसहारों का सबसे बड़ा मददगार माना जाता है। टीकाकरण हो, भोजन का वितरण हो, या फिर गरीब बच्चों को उनके घरों से आंगनबाड़ी सेंटरों तक स्वंय लाना व सरकारों की जनकल्याणकारी योजनाओं का प्रचार करना, साथ ही उन सुविधओं को जनजन तक पहुंचाने का काम भी करती हैं। बावजूद इसके मुकम्मल वेतन को भी तरसती हैं?


प्रश्नः केजरीवाल को धरना, हड़ताल व आंदोलन एक्सपर्ट कहा जाता है, फिर आपके दर्द को वह महसूस क्यों नहीं कर पा रहे हैं?


बिल्कुल आपने सही कहा। वो खुद आंदोलन विशेषज्ञ हैं। उनकी असल पहचान ही धरना, आंदोलन और प्रदर्शन से होती है। आंदोलन के जरिए ही दिल्ली की जनता ने उन्हें सत्ता पर बैठाया था। लेकिन आज वे आंदोलनकारियों का दर्द भूल गए। पंजाब, गोवा, उत्तराखंड जैसे राज्यों में चुनाव प्रचार में वह महिलाओं को सुविधा देने की बात कह रहे हैं। झूठे वादे करके वह आधी आबादी के रहनुमा बनते हैं, लेकिन उनके घर के सामने 22 हजार महिलाएं सप्ताह भर से बैठी हैं, जिनसे मिलना भी वह मुनासिब नहीं समझते। ये महिलाओं का खुलेआम अपमान नहीं तो क्या है? देखना उन्हें दिल्ली की महिलाओं की हाय लगेगी।

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प्रश्नः चुनावी राज्यों में आप अपनी यूनियन की टीमें भेज कर केजरीवाल के खिलाफ वोट न करने की अपील भी करने का मन बनाया है?


जी बिल्कुल। हम गोवा, पंजाब व उत्ताखंड़ में टीमें भेज रहे हैं, वहां की जनता को बताएंगे कि केजरीवाल कितने महिला विरोधी हैं? उनके लोग मुझपर भी अर्नगल आरोप लगा रहे हैं। बोलते हैं मैंने उनकी पार्टी से चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगा था, इसलिए अपनी खुन्नस निकाल रही हैं। साथ ही कांग्रेस-भाजपा की एजेंट भी बता रहे हैं। लेकिन उनके इन आरोपों से हमारा हौसला कम होने वाला नहीं, हड़ताल की धार दिनों-दिन तेज हो रही है। हड़ताल की ललकार को देखकर वह डरे हुई हैं। मांगे पूरी होने तक हम हटने वाले नहीं, इसके लिए हमें चाहें जो भी कुर्बानी क्यों न देनी पड़ी।


- डॉ. रमेश ठाकुर

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