By अनन्या मिश्रा | Apr 07, 2024
पंडित रविशंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में लोकप्रियता के नए आयाम दिए थे। आज ही के दिन यानी की 07 अप्रैल को रविशंकर का जन्म हुआ था। इन्हें बचपन से ही संगीत में रुचि थी। बचपन में वह अपने भाई के डांस ग्रुप का हिस्सा थे। लेकिन 18 साल की उम्र से पंडित रविशंकर ने सितार सीखना शुरूकर दिया था। उनका अपने सितार से इतना गहरा लगाव था कि वह जहां भी शो करने जाते थे, तो प्लेन में उनके लिए दो सीटें बुक की जाती थीं। एक सीट पं. रविशंकर और दूसरी उनके सितार सुरशंकर के लिए। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर पंडित रविशंकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।
जन्म और परिवार
रविशंकर का जन्म 07 अप्रैल 1920 में एक बंगाली परिवार में हुआ था। इनके पिता श्याम शंकर चौधरी अंग्रेजों के अधीन एक स्थानीय बैरिस्टर के रूप में सेवा देते थे। फिर बाद में वह एक वकील के तौर पर काम करने के लिए लंदन चले गए थे। ऐसे में पंडित रविशंकर की परवरिश उनकी मां ने की थी। वह 8 साल की उम्र तक अपने पिता से नहीं मिले थे। साल 1930 में वह संगीत मंडली का हिस्सा बनने के लिए पेरिस चले गए।
सितार से जुड़ा अटूट रिश्ता
पंडित रविशंकर जब 18 साल के थे, तो उन्होंने कोलकाता में एक संगीत कार्यक्रम में अमिया कांति भट्टाचार्य को शास्त्रीय वाद्य यंत्र बजाते सुना। अमिया कांति भट्टाचार्य के प्रदर्शन से प्रेरित होकर उन्होंने भट्टाचार्य के गुरु उस्ताद इनायत खान से सितार सीखने का फैसला किया। इस तरह से पंडित रविशंकर के जीवन में सितार आया, जो अंतिम सांस तक उनके साथ रहा। बता दें कि साल 1986 से लेकर 1992 तक वह राज्यसभा के भी सदस्य रहे। इसके अलावा उनको तीन बार ग्रैमी अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।
आकाशवाणी में किया काम
गुरु उस्ताद इनायत खाने से सितार बजाना सीखने के बाद रविशंकर मुंबई चले गए और यहां पर उन्होंने इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन के लिए काम करना शुरूकर दिया। फिर साल 1946 तक वह बैले के लिए संगीत तैयार करने लगए। इसके बाद वह AIR के निदेशक बने और साल 1956 तक इस पद पर रहे। आकाशवाणी में काम करने के दौरान उन्होंने ऑर्केस्ट्रा की रचना की।
फेमस हुए कई गाने
पंडित रविशंकर के कई गाने काफी ज्यादा फेमस हुए। जिनमें 'डोली चढ़ के दुल्हन ससुराल चली', 'आज मेरे यार की शादी है', 'मेरा यार बना दुल्हा' और 'बाबुल की दुआएं लेती जा' आदि गानें काफी फेमस हुए। इसके बाद उन्हें फिल्म 'वचन' में संगीत दिया। इस फिल्म में उन्होंने आशा भोंसले के साथ 'चंदा मामा दूर के पुआ पकाए पूर के' गाना गाया। जोकि जबरदस्त हिट रहा। पहली फिल्म में रविशंकर के काम और आवाज को हर किसी ने पसंद किया। लेकिन इसके बाद भी उनको बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने में 5 साल का समय लग गया।
बता दें कि साल 1960 में गुरुदत्त की क्लासिक फिल्म 'चौदहवीं का चांद' आई। इस फिल्म के बाद रविशंकर ने बतौर संगीतकार इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई। उन्हें शानदार करियर और काम के लिए दो बार फिल्म फेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। साल 1961 में पहली बार फिल्म 'घराना' के सुपरहिट म्यूजिक के लिए उन्हें फिल्म फेयर मिला, तो वहीं साल 1965 में दूसरी बार फिल्म 'खानदान' के लिए फिल्म फेयर से सम्मानित किया गया। करीब चार दशक लंबे कॅरियर में पंडित रविशंकर ने 200 फिल्म और गैर फिल्मी गानों में संगीत देने का काम किया।
मृत्यु
स्वास्थ्य खराब होने के बाद भी 4 नवंबर 2012 को पंडित रविशंकर ने कैलिफोर्निया में अपनी बेटी अनुष्का के साथ आखिरी बार परफॉर्म किया। शो की प्रस्तुति से पहले पंडित रवि की तबियत इतनी खराब थी कि उनको ऑक्सीजन मास्क पहनना पड़ा था। वहीं 12 दिसंबर 2012 को अमेरिका के सैन डिएगो में पंडित रविशंकर ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।