By स्वदेश कुमार | Aug 24, 2022
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मिली हार का ठीकरा चुनाव आयोग पर उस समय फोड़ा है जब महीने-दो महीने के भीतर नगर निकाय चुनाव की घोषणा होने वाली है। लगता है कि अखिलेश यादव चुनाव आयोग पर हार का ठीकरा फोड़कर एक साथ कई टॉरगेट साधना चाहते हैं। एक तरफ वह राज्य निर्वाचन आयोग को सचेत कर रहे हैं कि वह केन्द्रीय चुनाव आयोग की तरह अपनी सीमाएं नहीं लांघे तो दूसरी तरफ ऐसे आरोप लगाकर सपा प्रमुख अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को निराशा से भी उभारना चाहते हैं।
उत्तर प्रदेश में नगर निगम चुनाव नवंबर में होने की संभावना व्यक्त की जा रही हैं। अगले महीने के अंत तक आचार संहिता भी लग सकती है। सड़क पर नगर निगम चुनाव के संभावित उम्मीदवारों के बैनर-पोस्टर नजर आने लगे हैं तो राजनैतिक दलों द्वारा भी निकाय चुनाव के लिए रणनीति बनाई जा रही है। जहां बीजेपी हर छोटे-बड़े चुनाव को गंभीरता से लेते हुए नगर निकाय चुनाव में भी पूरी ताकत के साथ उतरने की तैयारी में है, वहीं समाजवादी पार्टी की ओर से बनाए गए नगर निगम प्रभारी संबंधित क्षेत्र में डेरा डालकर अपनी रणनीति को अमली जामा पहनाने में लगे हैं। कांग्रेस में नगर निकाय चुनाव को लेकर कोई खास गहमागहमी नहीं है, लेकिन कुछ पुराने कांग्रेसी नेता व्यक्तिगत तौर पर पंजे के सहारे छोटे सदन में जाने के लिए जरूर उतावले नजर आ रहे हैं। बसपा नगर निकाय चुनाव को लेकर कभी गंभीर नहीं रही है, वह यह मानकर चलती है कि यह शहरी वोटरों का चुनाव है और बसपा की शहरी क्षेत्र में पकड़ काफी ढीली है। वहीं आम आदमी पार्टी जैसे कुछ और राजनैतिक दल भी नगर निकाय चुनाव के लिए जोर-आजमाईश में लगे हुए हैं।
सभी दलों के आलाकमान द्वारा जातीय समीकरण के साथ ही उम्मीदवारों की ताकत की भी थाह लेने में लगे हैं। समाजवादी पार्टी की तरफ से कहा गया है कि सितंबर के अंत तक सभी जिला प्रभारी प्रत्येक सीट पर तीन-तीन उम्मीदवारों का पैनल प्रदेश मुख्यालय भेजेंगे। फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष एक नाम तय करेंगे। नगर निगम चुनाव में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पार्टी ने पुख्ता रणनीति बनाई है। पार्टी के विधायकों को अलग-अलग निगमों का प्रभारी बनाया गया है। अलग-अलग जिले के विधायकों को अलग-अलग नगर निगम की जिम्मेदारी देकर स्थानीय गुटबंदी को खत्म करने और जिताऊ उम्मीदवार चयन की रणनीति तैयार की गई है।
समाजवादी पार्टी की रणनीति है कि वार्ड का आरक्षण तय होते ही वहां टीमें उतार दी जाएं। वार्ड में आबादी के हिसाब से 50 से 60 परिवार पर एक-एक प्रभारी बनाया जाएगा। सितंबर में हर सप्ताह वार्डवार बैठक करने की तैयारी है। वाराणसी के प्रभारी बनाए गए डॉ. मनोज पांडेय ने बताया कि नगर निगम की तैयारी शुरू कर दी गई है। जल्द ही निगम चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और स्थानीय नेताओं के साथ बैठक कर अगली रणनीति बनाई जाएगी। सभी नगर निकाय क्षेत्रों के प्रभारी स्थानीय नेताओं से संपर्क कर चुनाव की तैयारी में लगे हुए हैं।
उत्तर प्रदेश के शहरों में ग्रास रूट की राजनीति यानी शहरी निकाय चुनाव में इस बार नए दलों की भी आमद होगी। बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी के साथ ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी उत्तर प्रदेश के नगर निगम के चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारेगी। महाराष्ट्र में शिवसेना व कांग्रेस के साथ गठबंधन में सरकार बनाने वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने अब उत्तर प्रदेश का रुख किया है। उत्तर प्रदेश नगर निगम के चुनाव से उत्तर प्रदेश में अपनी पारी का आगाज करने के साथ ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अपने संगठन का भी विस्तार करेगी। इनके साथ ही बहुजन समाज पार्टी ने भी नगर निगम के चुनाव को लेकर तैयारी शुरू कर दी है। बसपा मुखिया लगातार पार्टी के नेताओं को नगर निगम चुनाव की तैयारी के टिप्स भी दे रही हैं। इनके साथ आम आदमी पार्टी भी इस बार मोर्चे पर डटेगी। लब्बोलुआब यह है कि उत्तर प्रदेश में नगर निकाय के चुनाव में एक बार फिर विभिन्न राजनैतिक दल अपनी ताकत का आकलन करेंगे। फिलहाल भारतीय जनता पार्टी का ही पलड़ा भारी लग रहा है। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी को कभी शहरी पार्टी की तौर पर देखा जाता था और नगर निकाय चुनाव शहरी वोटरों का ही चुनाव माना जाता है।
स्वदेश कुमार
लेखक उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्य सूचना आयुक्त हैं