पंडित नेहरू की गलतियों को सुधारने की इच्छाशक्ति और साहस सिर्फ मोदी ने ही दिखाया

By नीरज कुमार दुबे | May 25, 2023

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ देश को हर मोर्चे पर आगे बढ़ाने का काम ही नहीं कर रहे हैं बल्कि वह इतिहास की कई गलतियों खासकर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की गलतियां भी सुधार रहे हैं। मोदी ने देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल को समर्पित विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बनाकर उन्हें वह सम्मान दिया जोकि नेहरू और कांग्रेस ने उन्हें नहीं दिया था। मोदी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर नेहरू की सबसे बड़ी गलती को सुधारा। अब मोदी उस राजदंड को देश के नये संसद भवन में स्थापित करने जा रहे हैं जो आजादी के समय नेहरू को अभिमंत्रित कर सौंपा गया था। लेकिन नेहरू ने उसका सही सम्मान नहीं किया और उसे दिल्ली से दूर प्रयागराज के एक संग्रहालय में भेज दिया। लेकिन अब उस ऐतिहासिक सेंगोल यानि राजदंड को वापस लाया गया है और उसे ससम्मान लोकसभा अध्यक्ष के आसन के समीप स्थापित किया जायेगा। देखा जाये तो 28 मई को 14 अगस्त 1947 का दृश्य दोहराया जायेगा। जैसे मंत्रोच्चारण के बाद पवित्र सेंगोल नेहरू को सौंपा गया था, ठीक उसी तरह यह प्रधानमंत्री मोदी को सौंपा जायेगा।


अब तक कहां था सेंगोल?


बताया जा रहा है कि अगस्त 1947 में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया रस्मी राजदंड (सेंगोल) इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू दीर्घा में रखा गया था और इसे संसद के नये भवन में स्थापित करने के लिए दिल्ली लाया गया है। रस्मी राजदंड को इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू गैलरी के हिस्से के रूप में जवाहरलाल नेहरू से जुड़ी कई अन्य ऐतिहासिक वस्तुओं के साथ रखा गया था। संग्रहालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि संग्रहालय के वर्तमान भवन की आधारशिला 14 दिसंबर, 1947 को नेहरू द्वारा रखी गई थी और इसे 1954 में कुंभ मेले के समय जनता के लिए खोला गया था। हम आपको बता दें कि दो मंजिला इमारत प्रयागराज में कंपनी बाग क्षेत्र के चंद्रशेखर आजाद पार्क (पहले अल्फ्रेड पार्क) में स्थित है।


मोदी सरकार का पक्ष


दूसरी ओर, सरकार ने बताया है कि चांदी से निर्मित और सोने की परत वाले इस ऐतिहासिक राजदंड को 28 मई को लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास स्थापित किया जाएगा। उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नये संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा। सरकार का कहना है कि 28 मई को प्रधानमंत्री तमिलनाडु के एक अधीनम से ‘सेंगोल’ को ग्रहण करेंगे और बहुत सम्मान के साथ, इसे लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास स्थापित करेंगे। हम आपको बता दें कि अधीनम के नेता ने 'सेंगोल' (पांच फीट लंबाई) बनाने के लिए जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को नियुक्त किया था। वुम्मिदी बंगारू ज्वैलर्स की आधिकारिक वेबसाइट में राजदंड के बारे में उल्लेख है और नेहरू की एक दुर्लभ तस्वीर भी है, जिसे ‘सेंगोल’ पर जारी की गयी लघु फिल्म में भी दिखाया गया है। 1947 में मूल राजदंड के निर्माण में शामिल दो व्यक्तियों- 96 वर्षीय वुम्मिदी एथिराजुलु और 88 वर्षीय वुम्मिदी सुधाकर के नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल होने की उम्मीद है।


सेंगोल का इतिहास


देखा जाये तो नये संसद भवन में स्थापित किए जाने वाले राजदंड (सेंगोल) का संबंध तमिल इतिहास से है जो लगभग 2,000 साल पुराने संगम काल का है। तमिल विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एस. राजावेलु ने कहा है कि राजाओं के राज्याभिषेक का नेतृत्व करने और सत्ता के हस्तांतरण को पवित्र करने के लिए समयाचार्यों (आध्यात्मिक गुरुओं) के लिए यह एक पारंपरिक चोल प्रथा थी, जिसे शासक को मान्यता देने के तौर पर देखा जाता था। उन्होंने कहा, ‘‘तमिल राजाओं के पास यह सेंगोल (राजदंड के लिए तमिल शब्द) था, जो न्याय और सुशासन का प्रतीक है। दो महाकाव्यों- सिलपथिकारम और मणिमेकलई में सेंगोल के महत्व का उल्लेख किया गया है।’’ राजावेलु ने कहा कि संगम काल से ही ‘राजदंड’ का उपयोग खासा प्रसिद्ध रहा है। उन्होंने कहा कि तमिल काव्य ‘तिरुक्कुरल’ में सेंगोल को लेकर एक पूरा अध्याय है। राजावेलु ने बताया कि प्राचीन शैव मठ थिरुववदुथुराई आदिनम मठ के प्रमुख ने नेहरू को 1947 में सेंगोल भेंट किया था। प्रमुख शैव मठों से जुड़े पीटी चोकलिंगम का इस बारे में कहना है कि यह हमारे राजाजी (सी राजगोपालाचारी, भारत के अंतिम गवर्नर जनरल) थे जिन्होंने नेहरू को आश्वस्त किया कि इस तरह के समारोह की आवश्यकता है क्योंकि भारत की अपनी परंपराएं हैं और संप्रभु सत्ता के हस्तांतरण की अगुवाई एक आध्यात्मिक गुरु द्वारा की जानी चाहिए।

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बताया जा रहा है कि 14 अगस्त, 1947 को सत्ता के हस्तांतरण के समय, तीन लोगों को विशेष रूप से तमिलनाडु से लाया गया था- अधीनम के उप मुख्य पुजारी, नादस्वरम वादक राजरथिनम पिल्लई और ओथुवर (गायक) जो सेंगोल लेकर आए थे और कार्यवाही का संचालन किया था। तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के 2021-22 नीति नोट के अनुसार: ‘‘सिंहासन के समय, पारंपरिक गुरु या राजा के उपदेशक नए शासक को औपचारिक राजदंड सौंप देंगे।’’ इस परंपरा का पालन करते हुए, जब ओथुवमूर्तियों ने कोलारू पाथिगम-थेवारम से 11वें छंद की अंतिम पंक्ति का गायन पूरा किया, तो थिरुववदुथुरै अदीनम थंबीरन स्वामीगल ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को सोने की परत चढ़ा चांदी का राजदंड सौंप दिया था।


देश में जगा उत्साह


उस समय पंडित नेहरू ने इस राजदंड को भले संग्रहालय में भेज दिया था लेकिन अब प्रधानमंत्री मोदी इसे संसद में ला रहे हैं। इस बात की देशभर में तारीफ हो रही है। भारत के पहले भारतीय गवर्नर-जनरल सी. राजगोपालाचारी के परपोते सीआर केसवन ने इस बारे में कहा है कि यह राजदंड पहले माउंटबेटन को दिया गया जिसे बाद में पुजारी को दिया गया। पुजारी ने इसे गंगाजल से पवित्र किया और बाद में नेहरू को इसे प्रदान किया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी। इसके बार में किसी को नहीं पता था। इस राजदंड को इलाहाबाद संग्रहालय में यह कहकर रखा गया कि यह एक गोल्डन वॉकिंग स्टिक है जो पंडित नेहरू को दी गई थी। सीआर केसवन ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने इस पवित्र राजदंड सेंगोल को फिर से जीवंत किया। 


बहरहाल, सरकार ने एकदम सही कहा है कि पवित्र 'सेंगोल' को संग्रहालय में रखना अनुचित है। 'सेंगोल' की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक मुनासिब, पवित्र और उपयुक्त कोई अन्य स्थान नहीं हो सकता है। साथ ही यह देखना भी सुखद है कि नये संसद भवन में प्राचीन और आधुनिक भारत की तमाम विशेषताओं के साथ ही हमारी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और इतिहास की झलक देखने को मिलेगी।

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