By अभिनय आकाश | Sep 18, 2024
वैसे तो भारत में चुनाव को लोकतंत्र का उत्सव कहा जाता है। ऐसे में क्या पांच साल में एक बार ही जनता को इस उत्सव में शरीक होने या फिर कहे मनाने का मौका मिले या फिर देश में हर वक्त हर हिस्से में उत्सव का माहौल बना रहना चाहिए? वन नेशन वन इलेक्शन वो वादा जिसका जिक्र बीजेपी के घोषणापत्र में था। मतलब भारत में लोकसभा और विधानसभा के सभी चुनाव एक साथ करा लिए जाए। अब मोदी सरकार का संकल्प अब 2024 में पूरा होने की दिशा में अपने कदम बढ़ाने लगा है। पीएम मोदी लाल किले की प्राचीर से वन नेशन वन इलेक्शन का जिक्र कर चुके हैं। बीजेपी का तर्क है कि इस तरह बार बार चुनाव की वजह से विकास का काम बाधित नहीं होगा। चुनाव साथ होंगे तो समय और धन की बचत होगी। ये हर कुछ महीने में देश चुनाव के मोड में चला जाता है, इससे फारिक हो जाएंगे। लेकिन कांग्रेस और दूसरे क्षेत्रीय दल मानते हैं कि ऐसा बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। बीजेपी चाहती है कि उसके केंद्रीय नेतृत्व के नाम पर वो राज्यों में भी चुनाव जीत जाए। मार्च में कोविंद कमेटी इसकी सिफारिश कर चुकी है। अब मोदी सरकार 3.0 के 100 दिन पूरे होने के बाद अब मोदी कैबिनट की तरफ से बड़ा ऐलान कर दिया गया। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक राष्ट्र एक चुनाव के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। बताया जा रहा है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए विधेयक संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली समिति ने 18 हजार पन्नों की अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। वन नेशन वन इलेक्शन पर 47 राजनीतिक दलों ने कमेटी को अपनी राय सौंपी। जिसमें 32 से पक्ष में और 15 ने विपक्ष में मत रखा। बीजेपी पक्ष में रही और कांग्रेस विपक्ष में।
कमेटी में कौन कौन थे
रामनाथ कोविंद (अध्यक्ष)
अर्जुन राम मेघवाल (स्पेशल मेंबर)
अमित शाह, गुलाम नबी आजाद, एनके सिंह, सुभाष कश्यप, हरीश साल्वे, संजय कोठारी (सदस्य)
कोविद कमेटी के सुझाव
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने 14 मार्च को जो रिपोर्ट सौंपी उसमें कई सुझाव दिए। उसमें कहा गया कि सभी राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी लोकसभा 2029 तक बढ़ाया जाए।
हंग असेंबली, नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
पहले फेज में लोकसभा विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं।
दूसरे फेज में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं।
एक देश एक चुनाव से क्या होगा
साल 2018 में लॉ कमीशन ने एक ड्राफ्ट तैयार किया था। इसमें एक देश एक चुनाव के समर्थन में कई तर्क आए। एक तर्क ये कि अगर देश को लगातार इलेक्शन मोड से आजाद करना है तो लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ हो। इसके अलावा कहा गया कि एक बार में चुनाव कराने से पैसे और संसाधन दोनों की बचत होगी। वहीं सरकारी नीतियां बेहतर तरीके से लागू होंगी। इसरे अलावा सरकारी मशीनरी पूरा साल चुनावों की तैयारियों में रहने की बजाए विकास के कार्यों पर फोकस कर सकेगी। राजनीतिक रूप से एक देश एक चुनाव को प्रधानमंत्री मोदी का चक्रव्यूह बताया जाता है।
बदल जाएगा चुनावी शेड्यूल
लोकसभा के साथ ही खत्म होगा इन राज्यों का कार्यकाल
आंध्र प्रदेश, अरुणाचल, ओडिशा और सिक्कम विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के साथ ही खत्म होगा। इसके अलावा हरियाणा और महाराष्ट्र का कार्यकाल 6 महीने बाद खत्म होगा। इन दो राज्यों में लगभग साढ़े छह महीने पहले विधानसभा भंग करनी होगी। जम्मू कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल भी करीब साढ़े छह महीने पहले खत्म हो जाएगा।
झारखंड, बिहार और दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 4 साल का ही होगा। झारखंड में 8 महीने, दिल्ली में 9 महीने और बिहार में 16 महीने पहले विधानसभा को भंग करना होगा।
2026 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में चुनाव होंगे. यानी कि इन राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल 3 साल ही रहेगा।
साल 2027 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होंगे। इन राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल 2 साल ही रहेगा।
बाकी दस राज्य- हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, तेलंगाना, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा का कार्यकाल एक साल या उससे भी कम का होगा। ये भी हो सकता है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा का कार्यकाल छह महीने बढ़ा दिया जाए, क्योंकि यहां दिसंबर 2028 में चुनाव होंगे।
3 संवैधानिक शर्त
एक देश एक चुनाव को लागू कराने के लिए कुछ संवैधानिक शर्तों को पूरा करना जरूरी है।
1. संविधान में कम से कम पांच संशोधन करने होंगे।
2. कम से कम 50 % राज्यों को भी संवैधानिक संशोधनों पर रजामंदी देनी होगी।
3. संवैधानिक संशोधन के बाद संसद में बहुमत से बिल को पास करवाना।
संविधान के पांच अनुच्छेदों में बदलाव की जरूरत क्यों?
एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की प्रक्रिया के नियमों में संशोधन अनिवार्य है। इस कानूनी ढांचे में समकालिक मतदान की विशिष्ट आवश्यकताओं को समायोजित किया जाना चाहिए। देश में वननेशन-वन इलेक्शन की जरूरत है जो अनुच्छेद 83, 172, 174, 327 में बदलाव के बिना संभव नहीं। पहले 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट में भी वन-नेशन वन इलेक्शन के लिए इन अनुच्छेदों में बदलाव की सिफारिश की गई थी।
10 देशों में है लागू
स्वीडन में पिछले साल सितंबर में आम चुनाव, काउंटी और नगर निगम के चुनाव एकसाथ कराए गए थे। इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, स्पेन, हंगरी, स्लोवेनिया, अल्बानिया, पोलैंड, बेल्जियम भी एक बार चुनाव कराने की परंपरा है।
दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव एक साथ पांच साल के लिए होते हैं और नगरपालिका चुनाव दो साल बाद होते हैं।
स्वीडन में राष्ट्रीय विधायिका (रिक्सडैग) और प्रांतीय विधायिका/काउंटी परिषद (लैंडस्टिंग) और स्थानीय निकायों/नगरपालिका विधानसभाओं (कोमुनफुलमकटीज) के चुनाव हर चौथे वर्ष सितंबर में एक निश्चित तिथि यानी दूसरे रविवार को होते हैं।
ब्रिटेन में ब्रिटिश संसद और उसके कार्यकाल को स्थिरता और पूर्वानुमेयता की भावना प्रदान करने के लिए निश्चित अवधि संसद अधिनियम, 2011 पारित किया गया था। इसमें प्रावधान था कि पहला चुनाव 7 मई, 2015 को और उसके बाद हर पांचवें वर्ष मई के पहले गुरुवार को होगा।
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