By अंकित सिंह | Jul 03, 2023
शरद पवार की राजनीति को समझना आसान नहीं है। उन्हें राजनीति का चाणक्य माना जाता है। हालांकि, जिस पार्टी का उन्होंने गठन किया, आज उन्हीं के भतीजे अजित पवार ने उनकी पार्टी में बगावत कर दी है। शरद पवार राजनीति के एक शानदार खिलाड़ी रहे हैं। वह इन चुनौतियों से निपटना आसानी से जानते हैं। शरद पवार के लिए यह सब चीजें नई बात नहीं है। शरद पवार कभी कांग्रेस के बेहद ही वरिष्ठ सदस्य हुआ करते थे। लेकिन उन्होंने सोनिया गांधी के ही खिलाफ बगावत कर दी थी जिसके बाद कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया था। आखिर पूरा मामला क्या है, हम आपको बताते हैं।
शरद पवार लगातार राजनीति में आगे बढ़ते रहे। 38 से कम उम्र में वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए थे। पवार केंद्रीय रक्षा मंत्री बने और बाद में एक बार फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और फिर महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। बाद में उन्होंने कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की कोशिश की लेकिन सीताराम केसरी से हार गए। 1999 में, लोकसभा चुनाव से पहले, जब केसरी की जगह सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष बनीं, तो पवार ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया। उन्होंने प्रस्ताव दिया कि पार्टी में सोनिया के अलावा एक प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होना चाहिए क्योंकि वह विदेश में जन्मी थीं। अंततः पवार को संगमा और तारिक अनवर के साथ कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया। एनसीपी का गठन किया, जिस पार्टी का वह दो दिन पहले तक नेतृत्व कर रहे थे।
महाराष्ट्र की राजनीति में पवार का उदय तेजी से हुआ, 1958 में युवा कांग्रेस में शामिल होने से लेकर 27 साल की उम्र में नौ साल के भीतर बारामती से कांग्रेस विधायक चुने जाने तक। और सिर्फ 10 साल बाद, वह 38 से कम उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए। पवार राजनीति में काफी चतुराई से आगे बढ़ें। 1978 में, जब उनके गुरु यशवंतराव चव्हाण ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) छोड़कर कांग्रेस (यू) की स्थापना की, तो उन्होंने भी ऐसा ही किया। यह इंदिरा के खिलाफ पवार का पहला कदम था। अगले विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लेकिन पवार के गुट ने कांग्रेस (आई) के साथ गठबंधन किया और सरकार बनाई जिसमें पवार उद्योग और श्रम मंत्री बने। पवार के लिए खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ था। उन्हें एक बड़ा मौका मिला और उन्होंने कांग्रेस (यू) छोड़ दी, जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया और परिणामी गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में अप्रत्याशित टूट से न केवल महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल आया है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसका असर पड़ेगा। रविवार को हुए इस घटनाक्रम से जुड़े कुछ पहलू : विपक्ष की एकता पर सवाल : एकनाथ शिंदे नीत सरकार में शामिल होने के लिए अजित पवार द्वारा अपने चाचा एवं राकांपा प्रमुख शरद पवार का साथ छोड़ने से विपक्षी एकता कायम करने के 15 पार्टियों के कदम को बड़ा झटका लगा है। इन विपक्षी दलों ने पिछले महीने पटना में एक बैठक की थी। हालांकि, रविवार के घटनाक्रम से पहले ही विपक्ष में एकता कायम करने की कोशिशें बड़े विपक्षी दलों के बीच मतभेदों से प्रभावित हुईं। इनमें आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के बीच खुला बैर तथा पश्चिम बंगाल में तृणमूल और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप शामिल हैं।