आज अन्नपूर्णा जयंती है, इस दिन पृथ्वी की रक्षा हेतु मां पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप धारण किया था। अन्नपूर्णा जयंती के दिन अन्न का दान महत्वपूर्ण माना जाता है तो आइए हम आपको अन्नपूर्णा जयंती का महत्व तथा व्रत की विधि के बारे में बताते है।
जानें अन्नपूर्णा जयंती के बारे में
अन्नपूर्णा जयन्ती मागर्शीष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है। इस दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा होती है। पंडितों का मानना है कि इस दिन मां की कृपा से घर में कभी भी अन्न की कोई कमी नहीं होती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन जो भी भक्त दान देता है उसे अगले में किसी प्रकार के अन्न की कमी नहीं होती है।
अन्नपूर्णा जयंती से जुड़ी पौराणिक कथा
हिन्दू धर्म में अन्नपूर्णा जयंती से सम्बन्धित एक रोचक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक बार धरती पर अन्न तथा जल सब कुछ खत्म हो गया। सभी लोग पृथ्वी पर मरने लगे। ऐसे में लोग ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी की आराधना करने लगे तथा ऋषियों ने देवताओं को इसका हल निकालने को कहा। इस पर ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी ने भगवान शिव के पास जाकर प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनकर शिव जी ने आंखे खोली तथा कारण पूछा। तब समस्या को जानकर भगवान शिव ने पृथ्वीवासियों को धीरज रखने को कहा तथा माता पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप धारण किया। अन्नपूर्णा रूप में मां पार्वती तथा भिक्षु रूप धारण किए हुए शिव ने सम्पूर्ण पृथ्वी का भ्रमण कर भिक्षा मांगी। प्राप्त भिक्षा को सभी लोगों को वितरित कर दिया जिससे सम्पूर्ण लोक में मां अन्नपूर्णा की जयकार होने लगी।
अन्नपूर्णा जयंती के दिन ऐसे करें पूजा
अन्नपूर्णा जयंती का दिन बहुत खास होता है, इसलिए इस दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं और सूर्य को जल अर्पित कर व्रत और पूजा का संकल्प लें। इसके बाद घर में स्थित पूजा घर की सफाई कर गंगाजल का छिड़काव कर लें। अन्नपूर्णा जयंती के दिन रसोईघर की स्नान से पहले अच्छे से सफाई कर लें और वहां भी गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद गुलाबजल छिड़कें। अब जिस चूल्हे पर आपको भोजन बनाना है उस पर हल्दी, कुमकुम, चावल, पुष्प, धूप और दीपक से पूजन कर लें। इसके बाद मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा या तस्वीर को किसी चौकी पर स्थापित करें। फिर एक सूत का धागा लेकर उसमें 17 गांठे लगा लें तथा उस धागे पर चंदन और कुमकुम लगाकर मां अन्नापूर्णा की तस्वीर सामने रखें। इसके बाद मां अन्नापूर्णा की धूप व दीप आदि से विधिवत पूजा करें तथा प्रार्थना करें। पूजा के पश्चात पुरुष इस धागे को दाएं हाथ की कलाई पर और महिला इस धागे को बाएं हाथ की कलाई पर बाधें। इसके बाद मां अन्नपूर्णा की कथा सुनें। फिर बनाए गए प्रसाद का भोग लगाएं। अंत में किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को अन्न का दान अवश्य करें।
अन्नपूर्णा जयंती का महत्व
अन्नपूर्णा जयंती का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। यह जयंती मनुष्य के जीवन में अन्न के महत्व को बताती है। जब पृथ्वी पर लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था तो मां पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप रखकर पृथ्वीं को इस संकट से निकाला था। इस दिन रसोई की सफाई और अन्न का सदुपयोग बहुत जरूरी होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन रसोई की सफाई करने और अन्न का सदुपयोग करने से मनुष्य के जीवन में कभी भी धन धान्य की कमीं नही होती।
अन्नपूर्णा जयंती के दिन मां पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप की आराधना करने से घर में कभी भी अन्न की कोई कमीं नही होती। जो भी व्यक्ति इस दिन मां अन्नपूर्णा का पूजा करता है। उसे मां का आर्शीवाद अवश्य प्राप्त होता है। इस दिन अन्न दान को भी विशेष माना जाता है। यदि इस दिन कोई व्यक्ति अन्न का दान करता है तो उसे न केवल इस जन्म में बल्कि अगले जन्म में भी धन और धान्य की कभी कोई कमीं नही होती। इसलिए यह दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा के लिए विशेष माना जाता है।
- प्रज्ञा पाण्डेय