By अभिनय आकाश | Apr 11, 2025
भारत सरकार ने कच्चा तेल को एक स्ट्रैजिक हथियार बना दिया है। अमेरिका के साथ ट्रेड डेफेसिट कम करने और अरब देशों पर साइलेंट प्रेशर बनाने के लिए एक नया ही खेल शुरू कर दिया है। अमेरिका का व्यापार घाटा यानी ट्रेड डेफेसिट ट्रंप का अभी का सबसे बड़ा मुद्दा है। भारत सरकार की सबसे अच्छी बात ये है कि जब पूरी दुनिया डोनाल्ड ट्रंप से टकराव की स्ट्रैर्जी बना रही है। हमारी सरकार ने एक ऐसा रास्ता निकाल लिया है। जिससे ट्रंप न नाराज होंगे और न भारत का नुकसान होगा, न अमेरिका का नुकसान होगा। बल्कि इसमें दोनों को फायदा भी होगा। लेकिन अगर किसी का नुकसान होना है तो वो मीडिल ईस्ट के अरब देश हैं।
अमेरिका दूसरे देशों से ज्यादा सामान खरीदता है, मगर बेचता कम है। अमेरिका एक साल में 10 अरब डॉलर का सामान खरीदता है। लेकिन सिर्फ पांच अरब डॉलर का सामान बेचता है। उदाहरण के लिए ऐसे समझ सकते हैं कि किसी देश से 100 रुपए का सामान खरीदता है और उस देश को 60 रुपए की चीजें बेचता है। तो 40 रुपए का ट्रेड डेफेसिट हो गया। 2024 में अमेरिका का कुल ट्रेड डेफेसिट 982 बिलियन डॉलर था। गुड्स में अमेरिका को 2 ट्रिलियन डॉलर का घाटा हुआ जबकि सर्विस सेक्टर 287 बिलियन डॉलर का फायदा हुआ। चीन, मैक्सिको और वियतमान के साथ अमेरिका को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ।
लेकिन भारत के साथ अमेरिका को केवल 5 बिलियन डॉलर का घाटा हो रहा था। अब भारत सरकार इस घाटे को खत्म करने की तैयारी में है। अमेरिका के इस घाटे को कम करने के लिए भारत सरकार ने जो रास्ता चुना है वो क्रूड ऑयल है। मार्च 2025 में भारत ने अमेरिका से कच्चा तेल आयात 67 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। फरवरी के मुकाबले मार्च में भारत ने अमेरिका को क्रूड के ज्यादा आयात किया। फरवरी में भारत ने अमेरिका से प्रतिदिन 146,000 बैरल कच्चा तेल आयात किया था। इसी समय, भारत ने रूस से भी तेल की खरीद बढ़ा दी। भारतीय रिफाइनर कंपनियों ने मार्च में रूसी तेल के आयात को 480,000 बैरल बढ़ाकर 1.9 मिलियन बैरल प्रतिदिन कर दिया, जबकि एक महीने पहले यह 1.47 मिलियन बैरल प्रतिदिन था।
मार्च में भारत ने इराक से 17 प्रतिशत कम क्रूड लिया। सऊदी अरब से 16 प्रतिशत कम, यूएई से 1 प्रतिशत कम और ये कटौती अमेरिका को फायदा देने के लिए की गई। पिछले एक साल में कच्चे तेल की कीमत में बहुत उतार-चढ़ाव रहा है। ब्रेंट क्रूड का 52-सप्ताह का उच्चतम स्तर 92.18 डॉलर प्रति बैरल से अधिक था, जबकि 52-सप्ताह का न्यूनतम स्तर 68.33 डॉलर था, जो मौजूदा कीमत से 8% से थोड़ा अधिक है।