By नीरज कुमार दुबे | Sep 07, 2024
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में अब बुलडोजर की एंट्री भी हो गयी है। नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भाजपा पर बुलडोजर संस्कृति को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा है कि इसके जरिये मुसलमानों को डराया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर चुनावों में खुद हार के डर से दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे उमर अब्दुल्ला ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हर दिन मुस्लिमों के घरों और दुकानों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है, उसकी समीक्षा की और कहा कि यह गैरकानूनी है। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यूपी में जिस तरह से हमारी मस्जिदों, दरगाहों और दुकानों पर ताले लगाए जा रहे हैं, वह भी हमसे छिपा नहीं है।''
देखा जाये तो हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेलने वाले उमर अब्दुल्ला को लगता है कि वह अनुच्छेद 370 हटने के बाद हो रहे विकास को सराह रही जनता को एक बार फिर धर्म के नाम पर गुमराह कर चुनाव जीत सकते हैं। इसलिए उन्होंने इस चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास करते हुए कहा है कि 'जिस तरह से असम में भाजपा के शासन में हर बार किसी को अपमानित करने की कोशिश की जाती है वह मुसलमान होते हैं। उन्होंने कहा कि जब असम में बाढ़ आती है, तो कहा जाता है कि यह जिहादी बाढ़ है क्योंकि इसका उद्देश्य मुसलमानों को अपमानित करना है। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जब कर्नाटक में भाजपा का शासन था तो हमारी माताओं और बहनों से कहा जाता था कि हिजाब हटाओ, घूंघट हटाओ और फिर कॉलेज और स्कूलों के अंदर जाओ। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि हम जम्मू-कश्मीर को उन ताकतों से बचाना चाहते हैं जो यहां यूपी जैसे हालात बनाना चाहते हैं। दूसरी ओर, भाजपा ने उमर के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा है कि अब्दुल्ला परिवार की राजनीतिक जमीन अब खिसक चुकी है इसलिए वह बेतुके बयान दे रहे हैं।
हम आपको यह भी बता दें कि नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने यह भी दावा किया है कि भाजपा शासित केंद्र सरकार उन्हें चुप कराने के प्रयास के तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में उनके खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार उतार रही है। उमर ने कहा, “मुझे हमेशा से पता था कि दिल्ली किसी तरह से मुझे चुप कराना चाहेगी, लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि वे इस हद तक जाएंगे। उन्होंने कहा कि बारामूला (लोकसभा चुनाव) में, जब एक व्यक्ति (शेख अब्दुल रशीद) जेल में रहते हुए नामांकन दाखिल करने के बाद मेरे खिलाफ चुनाव में खड़ा हुआ, तो उसने जेल से अपना संदेश रिकॉर्ड किया और भावनाओं के आधार पर वोट मांगे। उसने मुझे चुनाव में हरा दिया।” उमर ने कहा कि बारामूला लोकसभा सीट के नतीजों के बाद उन्हें लगा कि किस्मत रशीद के पक्ष में थी और “यह मेरी बदकिस्मती थी।” उन्होंने पूछा, “लेकिन जब मैंने गांदरबल से (विधानसभा) चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो खबरें आने लगीं कि एक अन्य नागरिक (सर्जन अहमद वागय उर्फ बरकती) जो जेल में है, मेरे खिलाफ चुनाव लड़ने जा रहा है। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि ये लोग मेरे पीछे क्यों पड़े हैं। क्या कोई साजिश है?” अब्दुल्ला ने कहा कि वह समझ सकते हैं कि रशीद उनके खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़े, क्योंकि वह उसी निर्वाचन क्षेत्र के स्थानीय निवासी हैं।
उन्होंने कहा, “जब उन्हें जेल में कोई स्थानीय व्यक्ति (गांदरबल) नहीं मिला, तो वे जैनापोरा-शोपियां से एक व्यक्ति (बरकती) को ले आए। मुझे अब भी लगा कि शायद यह एक संयोग था। मैंने अपने कुछ सहकर्मियों से सलाह ली और उनसे कहा कि मैं यह साबित करना चाहता हूं कि यह मेरे खिलाफ दिल्ली से एक साजिश है।” नेकां उपाध्यक्ष ने दावा किया कि यह घटना दिखाती है कि दिल्ली जम्मू-कश्मीर में किसी भी राजनेता को चुप कराने की उतनी कोशिश नहीं कर रही है, खासकर कश्मीर में, जितना वे उमर अब्दुल्ला के साथ करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “क्योंकि जब मैं बोलता हूं तो मैं लोगों के लिए बोलता हूं, मैं उनके मुद्दे उठाता हूं, मैं हमारी गरिमा की बात करता हूं जो हमसे छीन ली गई है। जब मैं अपनी टोपी उतारता हूं तो यह सिर्फ मेरी गरिमा नहीं होती। यह सबकी गरिमा होती है।” अब्दुल्ला ने कहा कि जब वह दिल्ली के खिलाफ लड़ते हैं तो यह केवल अपने या अपने परिवार के लिए नहीं बल्कि पूरे जम्मू-कश्मीर के लिए होता है।