कोरोना नहीं, कभी बिजनौर में इन्फ्लूएंजा से आई थी कयामत, दुगुनी से ज्यादा हुई थीं मौत

By अशोक मधुप | Feb 18, 2022

इस समय हम कोरोना के आंतक में जी रहे हैं। इससे पहले हमारे पूर्वजों ने प्लेज जैसी महामारी देखी। पर इनमें इतनी मौत नही हुईं जितनी कभी बुखार से होती थीं। अबसे लगभग सौ सवा सौ साल पहले उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर में मरने वालों में 60−70 प्रतिशत व्यक्ति बुखार से मरते थे। जनपद के इतिहास में सबसे ज्यादा मौत 1918 में हुईं। इस साल में 87 हजार 703 मौत रिकार्ड हुईं। इनमें अकेले बुखार से ही 80 हजार 839 व्यक्तियों ने जान दी।

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पिछले लगभग दो साल से हम कोरोना के साए में जी रहे हैं। इसके तीन फेस बीत गए। आंकड़े कहते हैं कि बिजनौर जनपद में इस अवधि में कोरोना से मात्र 126 व्यक्तियों की मौत हुई।


जिला गजेटियर के 1924 के सप्लिमेंटरी नोट्स के अनुसार 1918 में इन्फ्लूएंजा महामारी के रूप में फैला। जनपद के इतिहास में सबसे ज्यादा मौत 1918 में हुईं। इस साल में 87 हजार 703 मौत रिकार्ड हुईं। इनमें अकेले बुखार से ही 80 हजार 839 व्यक्तियों ने जान दी। गजेटियर ने इन्फ्लूएंजा से मौत नहीं बताईं। शायद इन मौत को भी बुखार में शामिल कर लिया।


जिला गजेटियर के अनुसार 1911 में जनपद में कुल 33887 मौत हुईं। इनमें से बुखार से मरने वालों की सख्यां 23737 रही। इनमें से 2459 व्यक्ति प्लेग से मरे। 2012 में 21743 व्यक्तियों की मौत हुई। इनमें बुखार 16324 व्यक्ति मरे। इस अवधि में प्लेग से 404 और हैजे से 103 व्यक्ति मरे।


1913 में प्लेग का प्रकोप कम हुआ। स्माल पोक्स का जोर रहा। इस साल 33407 व्यक्तियों की मौत हुई। इनमें से 25863 व्यक्ति ने बुखार से जान दी। प्लेग से 157 और हैजे से 53 व्यक्तियों ने जान दी। स्माल पाक्स से 520 व्यक्तियों ने प्राण गंवाए। 1914 में मौत की संख्या बढ़ीं। इस साल पूरे जनपद में 44 हजार 204 व्यक्तियों ने प्राण गंवाए। इनमें से 34 हजार 507 व्यक्ति  बुखार से मरे। प्लेग से 376, स्माल पोक्स से 703 व्यक्तियों ने जान दी। इस साल में हैजे का प्रकोप रहा। हैजे से 1270 मौत हुईं। 1915 में फिर प्लेग से जोर दिखाया।


जिला गजेटियर कहता है कि बिजनौर में महामारी फैलने का कारण तीर्थस्थल हरिद्वार से सटा होना भी रहा। हरिद्वार में मेलों और स्नान आदि में भारी भीड़ उमडती है। इस भीड़ में फैली महामारी वहां से बहकर आ रह गंगाजल के साथ बिजनौर तक आती गईं।


प्लेग

प्लेग का पहला केस 1902 में मिला। 1904 में 1200, 1905 में 7394 और 1907 में 12732 मौत हुईं। 1901 से 1910 के बीच प्लेग से औसतन 1622 मौत हुईं। 1911 से 1920 में 658 मौत नहीं हुई। सन् 1921 से 1930 में 833 और 1931 से 1940 में प्रतिवर्ष 162 मौत हुईं। 1951 में प्लेग से पांच मौत हुईं। उसके बाद कोई मौत रिकार्ड नहीं हुई।


स्माल पोक्स

जनपद में स्माल पोक्स से भी काफी मौत हुईं। 1901 से 1910 तक प्रतिवर्ष 806, 1911 से 1920 में 342, 1921 से 1930 में 114 और 1941 से 1950 में 186 मौत प्रति वर्ष रिकार्ड हुईं। स्माल पाक्स से 1908 में 1335 और 1929 से 1061 मौत हुईं।

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हैजा  

हैजे का प्रकोप सबसे पहले जनपद में 1890 में हुआ। इससे इस साल 1570 मौत रिकार्ड हुईं। 1992 में हैजे से मौत बढ़कर 1707 पर पंहुच गईं। 1901 से 1901 के बीच हैजे से प्रतिवर्ष 608 मौत हुईं। 1906 में सबसे ज्यादा 2096 मौत पंजीकृत हुईं। 1911 से 20 के बीच औसतन 446 व्यक्तियों ने अपनी जान की। 1914 में 1270 और 1916 में हैजे से जनपद में 1759 व्यक्ति मरे।1921 से 1930 के बीच प्रतिवर्ष हैजे से 292 मौत हुईं। 1931 से 1940 के बीच इन मौत की संख्या घटकर प्रतिवर्ष 184 हो गई।


बुजर्ग बताते हैं कि पहले मलेरिया, मयादी बुखार सरस्याम का बड़ा प्रकोप होता था। उपचार की व्यवस्था थी नहीं। आज विज्ञान बहुत आगे बढ़ गया। कभी टीबी बड़ी खतरनाक बीमारी थी। अलग वार्ड में रखा जाता था। संपन्न लोग पहाड़ों पर बने सैनिटोरियम जाते थे। अब ये आम है। ऐसे की कभी मौत समझा जाने वाला बुखार दवा के बाद सामान्य बीमारी हो गया।  

 

राजकीय डिग्री काँलेज मेरठ के सेवानिवृत प्रधानाचार्य डा सुभाष शर्मा कहते हैं कि पुराने समय में बुखार की दवा ही नहीं थी। एलोपैथिक चिकित्सा का विस्तार नहीं हुआ था। बुखार की दवा पैरासीटामोल का 1955 में अमेरिका में प्रयोग शुरू हुआ। उसके बाद दूसरी जगह गई।


- अशोक मधुप 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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