लालू और पासवान के बिना फीकी नजर आ रही है बिहार की चुनावी रंगत

By रमेश सर्राफ धमोरा | Oct 20, 2020

बिहार विधानसभा चुनाव का प्रचार पूरे शबाब पर है। वहां आगामी 28 अक्टूबर, 3 व 7 नवंबर को 3 चरणों में वोट डाले जाएंगे। वोटों की गिनती 10 नवंबर को होगी। कोरोना के दौर में बिहार में विधानसभा चुनाव करवाना चुनाव आयोग व राज्य सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। बिहार में आए दिन बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित मरीज मिल रहे हैं। अब तक वहां कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या दो लाख चार हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है। वहीं कोरोना से मरने वालों की संख्या 900 से अधिक हो चुकी है।

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ऐसे डर के माहौल में चुनाव करवाना व सात करोड़ 18 लाख लोगों का वोट डालना दोनों ही अपने आप में बहुत चुनौती भरा काम है। मगर बिहार विधानसभा का कार्यकाल शीघ्र ही पूरा होने जा रहा है। इसलिए वहां चुनाव करवाना चुनाव आयोग की संवैधानिक मजबूरी हो गयी है। चुनाव प्रक्रिया के दौरान ही बिहार सरकार में पंचायती राज मंत्री रहे जदयू नेता कपिलदेव कामत, अति पिछड़ा कल्याण मंत्री व भाजपा नेता विनोद सिंह, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री खुर्शीद उर्फ फिरोज की पत्नी बैबून निशा की कोरोना से मौत हो चुकी है। गया से जदयू सांसद विजय मांझी भी चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना पॉजिटिव पाये गए हैं।


बिहार विधानसभा चुनाव में जहां सभी राजनीतिक दलों के गठबंधन चुनाव जीतने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। वहीं राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव व लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान के बिना बिहार का चुनाव फीका लग रहा है। लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में रांची की जेल में सजा काट रहे हैं। वही रामविलास पासवान का पिछले दिनों निधन हो गया था। 1977 के बाद पहली बार लालू यादव व रामविलास पासवान बिहार के चुनावी परिदृश्य से ओझल हैं। चुनावों के दौरान अपने बेबाक बयानों को लेकर दोनों ही नेता चर्चित रहते थे। लालू यादव जहां माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण के बल पर वर्षों तक बिहार की सत्ता पर काबिज रहे थे। वहीं दलित वोट बैंक के दम पर पासवान लम्बे समय तक केन्द्र में मंत्री रहे।


बिहार के चुनाव में इस बार मुख्य मुकाबला एनडीए व महागठबंधन के मध्य होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 53.25 प्रतिशत वोट व 39 सीटें मिली थीं। यूपीए को 30.76 प्रतिशत वोट व एक सीट मिली थी। 2019 के चुनाव में एनडीए में शामिल लोजपा इस बार बिहार में करीब डेढ़ सौ सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही है। वहीं यूपीए में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हम पार्टी व सन ऑफ मल्लाह के नाम से मशहूर मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। वहीं राजद, कांग्रेस के साथ भाकपा, माकपा व भाकपा माले महागठबंधन बनाकर चुनाव मैदान में उतरे हैं। 

पिछले लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ रहे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट नाम से 6 दलों का एक नया मोर्चा बनाया है। इस मोर्चे में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, एआईएमआईएम, बसपा, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक और जनतांत्रिक पार्टी सोशलिस्ट शामिल हैं। मोर्चा का संयोजक पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव को बनाया गया है। एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने उपेंद्र कुशवाहा को अपने मोर्चे की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है।

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पूर्व सांसद व जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के अध्यक्ष पप्पू यादव ने प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन (पीडीए) बनाया है। जिसमें एमके फैजी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, उत्तर प्रदेश के चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी शामिल है। इस मोर्चे की तरफ से पप्पू यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है। रामविलास पासवान के देहांत के बाद उनके पुत्र चिराग पासवान लोजपा के सर्वेसर्वा नेता हैं। उन्होंने चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ ताल ठोक रखी है तथा उनकी आलोचना का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। उन्होंने एनडीए गठबंधन में शामिल जनता दल यू के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को चुनाव लड़वाने की घोषणा की है। भाजपा व जदयू में टिकट से वंचित रहे नेताओं को चिराग पासवान लोजपा में शामिल कर अपनी पार्टी का प्रत्याशी बना रहे हैं। चिराग खुले आम कह रहे हैं कि मैं आज भी एनडीए में शामिल हूँ। मेरी लड़ाई भाजपा से नहीं नीतीश कुमार के जदयू से है।


बिहार में विधानसभा के चुनाव बहुत ही रोचक स्थिति में पहुंच गये हैं। एनडीए की तरफ से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि एनडीए दो तिहाई से अधिक सीटों पर चुनाव जीतेगा। एनडीए गठबंधन में शामिल दलों को कितनी भी सीटें मिलें अगले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे।


महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार लालू यादव के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव को बनाया गया है। उनके नेतृत्व में कांग्रेस सहित सभी वामपंथी दल चुनाव लड़ रहे हैं। महागठबंधन के नेता बनने के बावजूद तेजस्वी यादव को चुनावी प्रबंधन का अनुभव नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। उस वक्त जनता दल (यूनाईटेड) भी महागठबंधन में शामिल था। इस कारण महागठबंधन को दो तिहाई सीटों पर जीत मिली थी। अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिर से एनडीए में शामिल हो गये हैं। लालू प्रसाद यादव जेल में हैं। इस कारण मुकाबला तेजस्वी यादव बनाम नीतीश कुमार में हो गया है। नीतीश कुमार की पढ़े लिखे, अनुभवी व साफ छवि के मुकाबले कम पढ़े-लिखे तेजस्वी यादव बहुत हल्के नजर आ रहे हैं। महागठबंधन में शामिल कांग्रेस में भी कोई ऐसा नेता नहीं है जो नीतीश कुमार के मुकाबले कहीं ठहरता हो। वामपंथी दल तो लालू प्रसाद यादव के उदय के बाद से ही बिहार में अप्रासंगिक होते चले गए। भाकपा, माकपा ने तो महागठबंधन के भरोसे ही अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। भाकपा माले का जरूर कुछ विधानसभा क्षेत्रों में असर है।

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बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 24.42 प्रतिशत वोट व 53 सीटें, कांग्रेस को 6.66 प्रतिशत वोट व 27 सीटें, जदयू को 16.83 प्रतिशत वोट व 71 सीटें, आरजेडी को 18.35 प्रतिशत वोट व 81 सीटें, एलजेपी को 4.86 प्रतिशत वोट व 2 सीटें, हम को 2.27 प्रतिशत वोट व एक सीट, आरएलएसपी को 2.56 प्रतिशत वोट व 2 सीटें मिली थीं। वही सीपीआई माले को 1.54 प्रतिशत वोट व तीन सीटें मिली थीं। उस वक्त भाकपा को 1.36 प्रतिशत वोट, माकपा को 0.61 प्रतिशत वोट, एनसीपी को 0.49 प्रतिशत वोट मिले थे। मगर इन तीनों ही दलों के सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।


बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार हर कोई मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जता रहा है। नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान के बाद अब पप्पू यादव भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बन गये हैं। विधानसभा चुनाव में इस बार प्रायः सभी पार्टियां गठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ रही हैं। इसलिये चुनाव में असली परीक्षा तो गठबंधनों की होगी। विधानसभा चुनावों के दौरान सीटों पर बात नहीं बनने पर कई दलों के नेताओं ने अपने पुराने साथी बदल लिये हैं। ऐसे मे अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या ये गठबंधन चुनाव परिणाम के बाद भी कायम रहेंगे या पिछली बार की तरह नये राजनीतिक समीकरण बनेंगे। खैर..इस बात का पता तो चुनाव परिणाम के बाद ही चल पायेगा।


रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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