देश के राजमार्गों को सर्वश्रेष्ठ बनाकर भारत मार्ग विधाता बन गये हैं नितिन गडकरी

By तरुण विजय | May 27, 2022

यह उस समय की बात है जब झंडेवाला में पाञ्चजन्य का कार्यालय था और झंडेवाला शब्द ही संघ कार्यालय का पर्याय हुआ करता था। केंद्रीय अधिकारी जब प्रवास से लौटते तो प्रायः उनसे सहसा अनौपचारिक राम राम होती और उनके प्रवास के अनुभव भी सुनने को मिलते। तब भाऊराव जी पांचजन्य के प्रभारी अधिकारी थे। उनसे मैंने बस यूँ ही बालसुलभ प्रश्न किया- आपके पास इतने लोग मिलने आते हैं, आप किसी को ना नहीं करते, सबकी बात, अक्सर कितनी ही उबाऊ क्यों न हो सुनते रहते हैं। ऐसा क्यों ?

वे हंस पड़े। शायद उनसे ऐसा सवाल किसी ने किया भी न हो। बोले- जो लोग मुझसे मिलने आते हैं, उनके भीतर एक इच्छा होती है। कोई हमारी बात सुन ले। संघ कार्य भाषण से नहीं, सामान्य कार्यकर्ता के मन की बातें सुनने और उनके साथ अपनापन स्थापित करने के बल पर इतना बढ़ा है। यह अपनापन ही संघ कार्य की मूल पूंजी है। फिर बोले तुम तो पांचजन्य देखते हो, बताओ भगवान राम के कितने गुण थे ?

मैंने कहा- सोलह।

इनमें सबसे प्रिय गुण जो स्वयंसेवक अपना सकते हैं वह है धैर्य से सुनने का। श्री राम धैर्य के आगार हैं। वे 'सुनते' हैं। 

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संघ का स्वयंसेवक सुनता ज्यादा है। कहता कम है। सुन लिया तो मन जीत लिया। मैं जानता हूँ भाऊराव के पास आने वाला हर व्यक्ति संतुष्ट होकर निकलता था। एक ही वाक्य उसके जीवन का सहारा बनता था- मैंने भाऊराव को सब कुछ बता दिया। भाऊराव ने सब कुछ धैर्य से सुन लिया।

बस इतना ही बाकी झंझावात झेलने के लिए पर्याप्त होता था। काम होगा या नहीं होगा, मन पसंद आग्रह पूर्ण होगा या नहीं होगा, इसकी चिंता किये बिना यदि कार्यकर्ता काम में लगा रहे तो यही संघ की पुण्याई है।

क्योंकि मन में जो कुछ था, बेहिचक, बिना किसी भय के, बिना प्रतिशोध की आशंका लिए कार्यकर्ता जिसके सामने कह सके वही हेडगेवार का पन्थानुयाई कहा जा सकता है।

नितिन गडकरी के साथ मेरा तीस से पैंतीस वर्ष पुराना सम्बन्ध है। मुझे याद है नागपुर भाजपा कार्यकारिणी के समय मैं और रमेश पतंगे जी उनके साथ बाहर निकल एक प्रसिद्ध पान की दुकान पर गए थे और पान के साथ बिंदास बातचीत की, खूब हँसे और लौटे। उन्होंने कभी भी अपने व्यक्तित्व की महानता का बोझ कार्यकर्ताओं पर नहीं पड़ने दिया। वे कार्यकर्ता के अधिकारी हैं, उसके सुख दुःख में रात एक बजे भी सहायता करने वाले हैं, जोखिम उठाकर भी अपने कार्यकर्ता की मान रक्षा और भविष्य की चिंता करने वाले 'धैर्यवान श्रोता' और सम्बल प्रदाता अग्रज हैं। यह बहुत बहुत और बहुत (तीसरी बार पुनरावृत्ति) दुर्लभ गुण है। सहायता कब चाहिए होती है ? जब मगर के मुंह में पाँव हो और सामने मृत्यु अवश्यम्भावी दिख रही हो। तब सहायता चाहिये। उस समय एक क्षण की देरी या 'तुम चलो मैं आता हूँ' का भाव रक्षा और अंत का अंतर मिटा देता है। नितिन गडकरी उन नेताओं में हैं जो अपनी जान पर भी खेल कर कार्यकर्ता की रक्षा करते हैं।

राष्ट्र निर्माण और कार्यकर्ता निर्माण भौतिक सुख सुविधाओं के अम्बार लगा देने से न हुआ है न होगा।

इसके लिए मन चाहिए, अपनेपन की गोंद चाहिए।

गडकरी जी को मैंने सुबह के ढाई बजे भी आगंतुकों, कार्यकर्ताओं, सांसदों, विधयकों, पार्टी के पदाधिकारियों और पुराने निवृत्त हताश थके हुए लोगों के मन में आशा की किरण जागते और उन्हें संगठन के साथ जोड़े रखने में पूरी मदद करते स्वयं देखा है, वे इस देश के अकेले ऐसे महापुरुष नेता हैं जिन्होंने अपने स्वयं के खर्चे पर हज़ारों रोगियों की चिकित्सा करवाई, हज़ारों के हृदय ऑपरेशन निःशुल्क करवाकर उनको नवीन जीवन दान दिया लेकिन कभी भी उसका प्रचार नहीं किया, उसके बारे में बताया नहीं।

भारत में ग्रीन टेक्नोलॉजी जब केवल भद्र और एलीट वर्ग के सेमिनारों तथा फाइव स्टार होटलों में विचार का विषय हुआ करती थी तब गडकरी जे ने जमीन पर एथेनॉल की गाड़ियां चलवा दी थीं- माननीय सुदर्शन जी स्वयं इसका जिक्र करते थे कि छत्तीसगढ़ में रमन सिंह जी की गाड़ी एथेनॉल से चल रही है, यही वह मार्ग है कि भारत पेट्रोल, डीज़ल के बंधन से मुक्त हो सकता है।

जब मुंबई पुणे एक कष्टकारी मार्ग हुआ करता था। तब गडकरी जे ने देश के सामने सुपर राजमार्गों का सफल उदहारण प्रस्तुत किया और माननीय अटल जी को स्वर्णिम चतुर्भुज की कल्पना दी जो उन्होंने तुरंत स्वीकार की और परिणाम स्वरूप देश एक नए प्रगति पथ पर चला। 

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गडकरी नई नवीन मार्ग अन्वेषक, समस्त जगत को अपना मानने वाले राजपुरुष, चिर तारुण्य की भूमिका से नवीन प्रयोगों से कभी भी न हिचकने वाले भारत मार्ग विधाता हैं। आज प्रतिदिन श्री केदारनाथ की यात्रा करने वाले अस्सी हज़ार तक तीर्थ यात्री आ रहे हैं और प्रत्येक यात्री और उनके परिवार नरेंद्र मोदी जी और गडकरी जी का नाम लेकर धन्यवाद देता दिखता है। असम हो या अरुणाचल, लद्दाख हो या अंडमान, महाराष्ट्र हो या ओडिशा- देश का ऐसा एक इंच मार्ग भी नहीं है जो गडकरी स्पर्श से स्वर्णिम मार्ग में परिवर्तित न हुआ हो।

उनके कार्यालय में बहुत महत्वपूर्ण उक्ति लगी है- जिस पर लिखा है कि अमेरिका महान है इसलिए वहां के राजमार्ग श्रेष्ठ हैं ऐसा नहीं है। वहां के राजमार्ग सर्वश्रेष्ठ हैं इसलिए अमेरिका महान है। मार्ग वर्तमान और भविष्य बदल देते हैं। मार्ग राष्ट्र की रक्तवाहिनियां होते हैं। मार्ग न हों और अच्छे सुपर राजमार्ग न हों तो देश न युद्ध जीत सकता है न ही आर्थिक विकास कर सकता है। भारत मार्ग विधाता गडकरी जी भारत के नवीन सूर्योदय के विनयी, सरल सहज आराधक हैं। उनके जन्मदिवस पर कोटि कोटि प्रणाम एवं उनके सशक्त स्वस्थ सुदीर्घ जीवन हेतु भगवन केदारनाथ जी से प्रार्थना।

-तरुण विजय

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं और वर्तमान में राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण के अध्यक्ष हैं।)

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