By योगेश कुमार गोयल | Aug 01, 2020
लंबे इंतजार के बाद आखिरकार देश की जनता के उपभोक्ता अधिकारों को मजबूती प्रदान करने के लिए पिछले दिनों केन्द्र सरकार द्वारा ‘उपभोक्ता संरक्षण कानून-2019’ (कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट-2019) लागू कर दिया गया। ग्राहकों के साथ आए दिन होने वाली धोखाधड़ी को रोकने के लिए बने इस कानून ने अब 34 वर्ष पुराने ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986’ का स्थान ले लिया है। इस कानून के तहत उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उपभोक्ता अदालतों के साथ-साथ एक सलाहकार निकाय के रूप में केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) की स्थापना की व्यवस्था की गई है, जो उपभोक्ता अधिकारों, अनुचित व्यापार प्रथाओं और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों में पूछताछ और जांच करेगा। परिषद का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा और इसके अध्यक्ष केन्द्रीय उपभोक्ता मंत्री तथा उपाध्यक्ष केन्द्रीय उपभोक्ता राज्यमंत्री होंगे जबकि विभिन्न क्षेत्रों के 34 अन्य व्यक्ति इसके सदस्य होंगे।
नए कानून के लागू होते ही ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए कई ऐसे नए नियम भी लागू हो गए हैं. जो पुराने कानून में नहीं थे। इस कानून को क्रांतिकारी बताते हुए केन्द्रीय उपभोक्ता मंत्री रामविलास पासवान का कहना है कि पहले का उपभोक्ता कानून उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने की दृष्टि से समय खपाऊ था। नए कानून के तहत उपभोक्ताओं को किसी भी प्रकार की ठगी और धोखाधड़ी से बचाने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। पहली बार ‘उपभोक्ता मध्यस्थता सेल’ के गठन का भी प्रावधान किया गया है ताकि दोनों पक्ष आपसी सहमति से मध्यस्थता का विकल्प चुन सकें। हालांकि मध्यस्थता दोनों पक्षों की सहमति के बाद ही किया जाना संभव होगा और ऐसी स्थिति में दोनों पक्षों को उपभोक्ता अदालत का निर्णय मानना अनिवार्य होगा तथा इस निर्णय के खिलाफ अपील भी नहीं की जा सकेगी। नए कानून में प्रयास किया गया है कि दावों का यथाशीघ्र निपटारा हो। उपभोक्ता आयोगों में स्थगन प्रक्रिया को सरल बनाने के साथ राज्य और जिला आयोगों को अपने आदेशों की समीक्षा करने का अधिकार भी दिया गया है।
देश में पारम्परिक विक्रेताओं के अलावा तेजी से बढ़ते ऑनलाइन कारोबार को भी पहली बार उपभोक्ता कानून के दायरे में लाया गया है। इससे ऑनलाइन कारोबार में उपभोक्ता हितों की अनदेखी इन कम्पनियों पर भारी पड़ सकती है। अब ई-कॉमर्स कम्पनियां खराब सामान बेचकर उपभोक्ताओं की शिकायतों को दरकिनार नहीं कर सकेंगी। किसी भी उपभोक्ता की शिकायत मिलने पर अब ई-कॉमर्स कम्पनी को 48 घंटे के भीतर उस शिकायत को स्वीकार करना होगा और एक महीने के भीतर उसका निवारण भी करना होगा। अगर कोई ई-कॉमर्स कम्पनी ऐसा नहीं करती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। ई-कॉमर्स नियमों के तहत ई-रिटेलर्स के लिए मूल्य, समाप्ति तिथि, रिटर्न, रिफंड, एक्सचेंज, वारंटी-गारंटी, वितरण और शिपमेंट, भुगतान के तरीके, शिकायत निवारण तंत्र, भुगतान के तरीकों के बारे में विवरण प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है। ई-कॉमर्स कम्पनियों को सामान के ‘मूल उद्गम देश’ का विवरण भी देना होगा। उपभोक्ता अधिकारों को नई ऊंचाई देने वाले नए कानून के तहत उपभोक्ता अब देश की किसी भी उपभोक्ता अदालत में मामला दर्ज करा सकेंगे। वे किसी भी स्थान और किसी भी माध्यम के जरिये शिकायत कर सकते हैं अर्थात् उपभोक्ता को अब उस स्थान पर जाकर शिकायत करने की आवश्यकता नहीं है, जहां से उसने सामान खरीदा है। नया कानून उपभोक्ताओं को इलैक्ट्रॉनिक रूप से शिकायतें दर्ज कराने और उपभोक्ता आयोगों में शिकायतें दर्ज करने में भी सक्षम बनाता है।
खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट करने वाली कम्पनियों और भ्रामक विज्ञापनों पर निर्माता तथा सेलिब्रिटी पर जुर्माने तथा सख्त सजा जैसे प्रावधान भी एक्ट में जोड़े गए हैं। कम्पनी अपने जिस उत्पाद का प्रचार कर रही है, वह वास्तव में उसी गुणवत्ता वाला है या नहीं, इसकी जवाबदेही अब सेलिब्रिटी की भी होगी क्योंकि अगर विज्ञापन में किए गए दावे झूठे पाए गए तो उस पर भी कार्रवाई होगी। शरीर को आकर्षक बनाने वाले झूठे विज्ञापन दिखाने पर एक लाख रुपये तक जुर्माना और छह माह तक की कैद हो सकती है। इसके अलावा ऐसे उत्पादों से कोई नुकसान होने या मौत हो जाने पर बड़ा जुर्माना और लंबी सजा हो सकती है। भ्रमित करने वाले विज्ञापनों पर अब सीसीपीए को अधिकार दिया गया है कि वह जिम्मेदार व्यक्तियों को 2-5 वर्ष की सजा के साथ कम्पनी पर दस लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सके। यही नहीं, बड़े और ज्यादा गंभीर मामलों में जुर्माने की राशि 50 लाख रुपये तक भी संभव है। सीसीपीए के पास उपभोक्ता अधिकारों की जांच करने के अलावा वस्तु और सेवाओं को वापस लेने का अधिकार भी होगा।
संसद द्वारा पिछले साल ही ‘उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019’ को मंजूरी दे दी गई थी और यह नया कानून पहले इसी वर्ष जनवरी में और फिर बाद में मार्च में लागू किया जाना तय किया गया किन्तु मार्च में कोरोना प्रकोप और लॉकडाउन के कारण लागू नहीं किया जा सका। अब इसके लागू हो जाने के बाद उपभोक्ताओं की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई शुरू हो जाएगी। नए कानून के तहत अब कैरी-बैग के पैसे वसूलना कानूनन गलत होगा और सिनेमा हॉल में खाने-पीने की वस्तुओं पर ज्यादा पैसे लेने की शिकायत पर भी कार्रवाई होगी। पुराने उपभोक्ता कानून में पीआईएल या जनहित याचिका उपभोक्ता अदालतों में दायर करने का प्रावधान नहीं था लेकिन नए कानून के तहत अब ये याचिकाएं भी उपभोक्ता अदालतों में दायर की जा सकेंगी। नए कानून के तहत कन्ज्यूमर फोरम में एक कराड़ रुपये तक के मामले जबकि राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (स्टेट कन्ज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन) में एक करोड़ से 10 करोड़ तक के और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में 10 करोड़ रुपये से ऊपर के मामलों की सुनवाई हो सकेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि नया उपभोक्ता कानून देश के उपभोक्ताओं को और ज्यादा ताकतवर बनाएगा तथा इसके तहत उपभोक्ता विवादों को समय पर और प्रभावी एवं त्वरित गति से सुलझाने में मदद मिलेगी।
-योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं)