By अभिनय आकाश | Oct 29, 2021
क्या कोई देश ऐसा है जो संसद में कानून पास करके विस्तारवाद पर वैधता की मुहर लगा सकता है। क्या कोई देश कानून बनाकर अतिक्रमण का समर्थन कर सकता है। जवाब है नहीं, कोई भी लोकतांत्रिक देश ऐसा नहीं करेगा। लेकिन जो दुनिया में कहीं नहीं होता है वो सब चीन में हो सकता है। माओ जब भी अपने देश में कमजोर होते थे, तो वह पड़ोसी देशों के साथ विवाद या युद्ध की स्थिति पैदा कर देते थे। उन्हीं के समय ईस्ट तुर्कमेनिस्तान पर कब्जा कर लिया गया था, जो आज शिनचियांग कहलाता है। और वहां के उइगर मुस्लिम लोगों पर भारी अत्याचार के मामले सामने आते रहते हैं। इसी तरह तिब्बत को कब्जे में लिया गया। अब शी जिनपिंग भी उन्हीं के नक्शे कदम पर अपने कदम बढ़ा रहे हैं। आंतरिक स्तर पर शी जिनपिंग के खिलाफ पीएलए में नाराजगी है। इसके अलावा शी जिनपिंग का एकाधिकारवादी रवैया भी उनके खिलाफ नाराजगी की वजह बन रहा है। इसे नाराजगी से ध्यान भटकाने के लिए ही शी जिनपिंग ने एक अहम फैसला किया है। दरअसल, चीन ने एक नया सीमा कानून पास किया है जिसमें कहीं भी विस्तारवाद शब्द का जिक्र नहीं है। लेकिन इस कानून के जरिये चीन की सेना को अतिक्रमण की छूट दे दी है। जिससे वो अपनी सीमाओं की रक्षा के नाम पर सैन्य कानून कार्रवाई कर सकती है। ये कानून चीन की सरकार और सेना को ये अधिकार देता है कि वो अतिक्रमण रोकने के नाम पर एक्शन ले सकता है। लेकिन सच्चाई ये है कि चीन खुद अतिक्रमण और विस्तारवाद की नीति पर चलता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या चीन का कानून भारत के लिए चिंता का विषय है, कब से ये कानून लागू होगा और इसका असर भारत-चीन सीमा विवाद पर कितना पड़ेगा। चीन को इस कानून की जरूरत आखिर क्यों पड़ गई। चीन के इस कानून की पूरी जानकारी लेना या समझना बहुत जरूरी है। तो सबसे पहले समझिए कि चीन का ये नया कानून आखिर है क्या?
क्या है नया सीमा कानून
चीन की सेना और सरकार दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों को एक ही डोर बांधती है वो है चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और दोनों का एक ही मकसद है विस्तावाद करना। चीन की सरकार पड़ोसी देशों की जमीन को हड़पने का प्लान बनाती है और चीन की सेना उसे अमल में लाती है। एलएसी से लेकर तिब्बत और ताइवान तक चीन इसी नीति पर चल रहा है। दक्षिण चीन सागर से एशिया प्रशांत क्षेत्र तक चीन विस्तारवादी और अतिक्रमणवादी एजेंडे पर काम कर रहा है। इसकी सबसे ताजा मिसाल है चीन का नया सीमा कानून। चीन के नए भूमि सीमा कानून में सीमा की रक्षा को चीन की संप्रभुता और क्षेत्रिय अखंडता के साथ जोड़ दिया गया है। यानी जो जमीन चीन के कब्जे में है वो चीन की मानी जाएगी। उससे पीछे हटने का मतलब कानून का उल्लंघन होगा और देश की संप्रभुता से समझौता करना। नया चीनी कानून कहता है कि सीमा सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाले किसी सैन्य टकराव या युद्ध कि स्थिति में चीन अपनी सीमाएं बंद कर सकता है। इस कानून में सीमा से जुड़े इलाकों में निर्माण कार्य को बेहतर करने पर भी जोड़ दिया गया है। नए कानून में सीमा के साथ-साथ सीमावर्ती इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर वर्क ऑपरेशनल कैपीसिटी या कैपेब्लिटी में सुधार और इनके लिए हर जरूरी कदम उठाने को भी शामिल किया गया है। कानून कहता है कि सीमा से जुड़े इलाकों में चीन सीमा सुरक्षा मजबूत करने और आर्थिक और सामाजिक विकास में सहयोग और सार्वजनिक सेवाओं व आधारभूत ढांचे में सुधार के लिए कदम उठा सकता है। इस कानून में चीनी सरकार और सेना को अपनी जमीन की रक्षा के लिए युद्ध तक के लिए खुली छूट दी गई है। बताया जा रहा है कि चीन का ये नया कानून अगले साल 1 जनवरी से लागू होने वाला है। इस कानून के जरिये चीन ने पिछले साल भारत के साथ हुए सैन्य संघर्षों को कानूनी वैधता भी दी है। इसमें एलएसी और भूटान सीमा के निकट नए सीमांत गांव बसाने की भी अनुमति है। चीन वहां रहने वालों को नागरिक सेना बनाएगा। जिनका इस्तेमाल फस्ट लाइन ऑफ डिफेंस के रूप में किया जाएगा। चीन का ये नया कानून ऐसे समय में सामने आया है जब भारत चीन का पूर्वी लद्दाख और पूर्वोत्तर के जो राज्य हैं उनमें लंबे समय से विवाद चल रहा है। कमांडर स्तर की कई दौर की वार्ता के बावजूद पूर्वी लद्दाख में एक साल से भी ज्यादा समय से बने गतिरोध का हल अभी तक नहीं निकल पाया है।
चीन की सीमा किन देशों से जुड़ी है
चीन जैसे देश का पूरी दुनिया में कोई ऐतबार नहीं कर सकता। भारत को तो उसने पीठ में खंजर कई बार घोंपा ही है। लेकिन दुनियाभर में कोई ऐसा सगा नहीं जिसे चीन ने ठगा नहीं हो। चीन कुल मिलाकर 16 देशों से जमीनी और समुद्री सीमा साझा करता है। इनमें 14 देश उससे जमीनी सीमा से जुड़े हैं। चीन भारत सहित 14 देशों के साथ अपनी 22,457 किलोमीटर की भूमि सीमा साझा करता है, जो मंगोलिया और रूस के साथ सीमाओं के बाद तीसरी सबसे लंबी है। हालांकि, इन दोनों देशों के साथ चीन की सीमाएं विवादित नहीं हैं।
समुद्री सीमा
1. ताइवान
2. फिलीपींस
3. इंडोनेशिया
4. वियतनाम
5. मलेशिया
6. जापान
7. दक्षिण कोरिया
8. उत्तर कोरिया
9. सिंगापुर
10. ब्रुनेई
जमीनी सीमा
1. भारत
2. नेपाल
3. भूटान
4. वियतनाम
5. मंगोलिया
6. म्यांमार
7. रूस
8. कजाखस्तान
9. किर्गीस्तान
10. ताजिकिस्तान
11. उत्तर कोरिया
12. अफगानिस्तान
13. पाकिस्तान (पीओके का हिस्सा)
14. लाओस
चीन का इन देशों से बढ़ेगा टकराव
अवैध कब्जे को मजबूती देने का करेगा काम
चीन के नए कानून को सात भागों में रेखांकित किया गया है। इसमें 62 खंड दिए गए हैं। कानून का अनुच्छेद 62 इसे लागू करने में सैन्य और स्थानीय क्षेत्रीय विभागों के कर्तव्यों को निर्धारित करता है। यह सीमांकन प्रक्रियाओं के लिए नियम निर्धारित करता है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के रूप में सीमाओं के रक्षा और प्रबंधन के क्षेत्रों को भी शामिल करता है। जिसके सीमाओं से जुड़े मामलों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और पीपुल्स आर्म पुलिस (पीएपी) को अतिक्रमण, घुसपैठ या किसी तरह के हमले से निपटने का अधिकार दिया गया है। इस कानून के अनुच्छेद 10 और अनुच्छेद 43 में कहा गया है कि चीन अपनी सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास कर सकेगा। इस प्रावधान को इस लिहाज से अहम माना जा रहा है कि चीन ने 2016 के डोकलाम विवाद के बाद जिन भी विवादित सीमाई इलाकों पर अब तक अवैध तौर पर कब्जा किया है, उन पर अब वह भारी निवेश के जरिए इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करेगा।
चीन के नए सीमा कानून को लेकर सवाल
चीन के इस नए सीमा कानून को लेकर सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर इसमें 'सीमा' का क्या मतलब है और इसका निर्धारण कैसे होगा? भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर की एलएसी है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली एलएसी को लेकर दोनों देशों में अंतिम सहमति अब तक नहीं बनी है। चीन की नजर अरुणाचल प्रदेश से लेकर लद्दाख के कई इलाकों पर है। ऐसे में चीन का नया सीमा कानून कई गंभीर प्रश्न खड़े करता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चिंता इस बात की नहीं कि कानून क्या कहता है, लेकिन चीन इस आधार पर क्या करता है यह मायने रखता है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 में चीन में भारत के राजदूत के रूप में कार्य करने वाले गौतम बंबावाले का कहना है कि हर देश अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने में लगा है, यह किसी भी सरकार का काम है। बड़ा सवाल यह है कि आपका क्षेत्र क्या है, और वहां हम एक-दूसरे से सहमत नहीं हैं। बंबावाले ने कहा कि सीमा विवाद को निपटाने के सवाल पर कानून का कोई प्रभाव नहीं है, जिस पर दोनों देश कई दशकों से बातचीत कर रहे हैं, “सिवाय इसके कि चीन की केंद्र सरकार इसके लिए जिम्मेदार है, और यह सच है कि इसके बिना भी सच है।
सीमा पर बसा रहा गांव
चीन सभी क्षेत्रों में एलएसी के पास गांवों का निर्माण कर रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस साल जुलाई में अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास तिब्बत के एक गांव का दौरा किया था। कानून की घोषणा से पहले ही, पूर्वी क्षेत्र में 1,300 किलोमीटर से अधिक लंबी एलएसी पर भारतीय सेना की अभियानगत तैयारियों को देख रहे कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडे ने कहा कि सीमा पर चीन की तरफ कुछ क्षेत्रों में नए गांव स्थापित किए गए हैं और भारत ने अपनी अभियानगत रणनीति में इसका संज्ञान लिया है क्योंकि आवासों को सैन्य उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। लोग वहां कितनी मात्रा में बसे हैं, यह अलग सवाल है। लेकिन हमारे लिए यह चिंता का विषय है कि वे आवासों को सैन्य उद्देश्यों के लिए कर सकते हैं। लेफ्टिनेंट जनरल हुड्डा ने कहा कि चीन हमेशा अपने दावों को मजबूत करने के लिए नागरिक आबादी का इस्तेमाल करता रहा है। उन्होंने डेमचोक की स्थिति का उल्लेख किया, जहां कुछ "तथाकथित नागरिकों" ने एलएसी के भारतीय हिस्से में तंबू गाड़ दिए और इस मुद्दे का समाधान होना बाकी है।
भारत ने जताई आपत्ति
भारत ने चीन पर ‘एकतरफा’ ढंग से नया भूमि सीमा कानून लाने के लिये निशाना साधते हुए कहा कि वह उम्मीद करता है कि चीन कानून के परिप्रेक्ष में ऐसा कोई कदम उठाने से बचेगा जिससे भारत चीन सीमा क्षेत्रों में स्थिति में एकतरफा ढंग से बदलाव आ सकता हो। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि चीन का कानून लाने का निर्णय चिंता का विषय है क्योंकि इस विधान का सीमा प्रबंधन पर वर्तमान द्विपक्षीय समझौतों तथा सीमा से जुड़े सम्पूर्ण प्रश्नों पर प्रभाव पड़ सकता है। बागची ने कहा, ‘‘ चीन का एकतरफा ढंग से कानून लाने के निर्णय का सीमा प्रबंधन पर हमारी वर्तमान द्विपक्षीय व्यवस्थाओं तथा सीमा से जुड़े सवालों पर प्रभाव पड़ेगा जो हमारे लिये चिंता का विषय है।’’ उन्होंने कहा कि ऐसे ‘एकतरफा कदम’ का दोनों पक्षों के बीच पूर्व में हुई व्यवस्थाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए चाहे सीमा का सवाल हो या वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर अमन एवं शांति बनाये रखने का विषय हो। बागची ने कहा कि इसके साथ ही नया कानून पारित होने का हमारे विचार से तथाकथित रूप से 1963 के चीन पाकिस्तान सीमा समझौते को कोई वैधता नहीं मिलती है जिसे भारत सरकार लगातार अवैध और अमान्य कहती है।
सफाई देते हुए इसे बताया सामान्य घरेलू कानून
कानून पर भारत द्वारा आपत्ति जताए जाने के एक दिन बाद चीन ने पूरे मामले पर अपनी सफाई दी है। चीन ने कहा कि उसका नया भूमि सीमा कानून मौजूदा सीमा संधियों के कार्यान्वयन को प्रभावित नहीं करेगा और संबंधित देशों को सामान्य कानून के बारे में अनुचित अटकलें लगाने से बचना चाहिए। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, “यह एक सामान्य घरेलू कानून है जो हमारी वास्तविक जरूरतों को पूरा करता है और अंतरराष्ट्रीय परिपाटी की पुष्टि भी करता है। विदेश मंत्रालय के नियमित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, इस कानून में अपने पड़ोसी देशों के साथ चीन के सहयोग और भूमि सीमा मुद्दों से निपटने के लिए स्पष्ट शर्तें हैं। भारत की चिंताओं के स्पष्ट संदर्भ में, वांग ने कहा, यह चीन की मौजूदा सीमा संधियों के कार्यान्वयन को प्रभावित नहीं करेगा और न ही यह पड़ोसी देशों के साथ हमारे सहयोग में मौजूदा परिपाटी को बदलेगा। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि सीमा संबंधी मुद्दे पर हमारे रुख में बदलाव आया है। भारत द्वारा कानून की आलोचना किए जाने से संबंधित एक सवाल के जवाब में वांग ने कहा, मैंने अभी आपको कानून के पीछे के विचारों के बारे में जानकारी दी है। हमें उम्मीद है कि संबंधित देश चीन में सामान्य कानून के बारे में अनुचित अटकलें लगाने से बचेंगे।
बहरहाल, एक खास जानवर की दुम सीधी हो सकती है लेकिन चीन की फितरत नहीं। वो समझौते तोड़ देता है। वो बातचीत करता है और उसको उसी वक्त भुला देता है। लेकिन चीन को नहीं भूलना चाहिए कि एलएसी पर तैनात भारत के सुरक्षा बल ड्रैगन के हर दांव को नाकाम करने की ताकत रखते हैं। भारतीय सेना को भी इस बात का इल्म अच्छी तरह से है कि चीन की कथनी और करनी में फर्क हमेशा से रहा है।
-अभिनय आकाश