शिक्षा की मंडी बन चुके Kota में दो और छात्रों की आत्महत्या से उपजा सवाल- मानसिक दबाव के लिए माता-पिता दोषी हैं या संस्थान?

By नीरज कुमार दुबे | Aug 28, 2023

राजस्थान का कोटा शहर अपने कोचिंग संस्थानों के लिए देशभर में मशहूर है लेकिन प्रतियोगिता इस कदर हावी हो गयी है कि छात्रों का मनोबल टूटने लगा है और वह आत्महत्या जैसा कदम उठाने में जरा भी हिचक नहीं कर रहे हैं। देखा जाये तो कोचिंग की मंडी बन चुका राजस्थान का कोटा शहर अब आत्महत्याओं का गढ़ बनता जा रहा है। ऐसा लगता है कि यहां शिक्षा की बजाय मौत का कारोबार हो रहा है। कोटा को वैसे तो मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में बेहतर परिणाम देने के लिए जाना जाता है। लेकिन आजकल यह शहर छात्रों द्वारा आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आया हुआ है। प्राधिकारियों के अनुसार, 2023 में अभी तक कोटा जिले में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयार कर रहे 22 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की है, जो किसी भी वर्ष में आत्महत्या के सबसे अधिक मामले हैं। पिछले साल यह आंकड़ा 15 था। रविवार को ही चार घंटे के भीतर दो छात्रों ने अपनी जान ले ली। इसके बाद कोटा जिले के प्राधिकारियों ने कई छात्रों की आत्महत्या के मद्देनजर कोचिंग संस्थानों से अगले दो महीने तक नीट और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के नियमित टेस्ट नहीं कराने को कहा है।


दो और छात्रों ने आत्महत्या की


जहां तक दो छात्रों द्वारा आत्महत्या किये जाने की बात है तो आपको बता दें कि पुलिस के मुताबिक, अविष्कार संभाजी कासले (17) ने रविवार अपराह्न करीब 3.15 बजे जवाहर नगर में अपने कोचिंग संस्थान की इमारत की छठी मंजिल से छलांग लगा दी। संभाजी कासले ने कुछ मिनट पहले ही कोचिंग संस्थान की तीसरी मंजिल पर एक परीक्षा दी थी। पुलिस के अनुसार, संभाजी कासले की मौत के चार घंटे बाद नीट की ही तैयारी कर रहे आदर्श राज (18) ने शाम करीब सात बजे कुन्हाड़ी थाना क्षेत्र स्थित अपने किराये के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। दोनों छात्रों के आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाने के पीछे की वजह कोचिंग संस्थानों द्वारा लिए जाने वाले नियमित टेस्ट के दौरान कम अंक पाने के कारण अभ्यर्थियों का दबाव में होना बताया जा रहा है।


विज्ञान नगर के क्षेत्राधिकारी (सीओ) धर्मवीर सिंह ने कहा कि कोचिंग संस्थान के कर्मचारी संभाजी कासले को अस्पताल ले गए, लेकिन रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। धर्मवीर सिंह के मुताबिक, महाराष्ट्र के लातूर जिले का रहने वाला और 12वीं कक्षा का छात्र कासले तीन साल से शहर में नीट की तैयारी कर रहा था और अपने नाना-नानी के साथ तलवंडी इलाके में एक किराये के कमरे में रह रहा था। कासले के माता-पिता महाराष्ट्र में सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं। हम आपको यह भी बता दें कि पुलिस के मुताबिक, संभाजी कासले की मौत के चार घंटे के बाद नीट की ही तैयारी कर रहे आदर्श राज ने शाम करीब सात बजे कुन्हाड़ी थाना क्षेत्र स्थित अपने किराये के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। कुन्हाड़ी के क्षेत्राधिकारी के.एस. राठौड़ ने बताया कि जब आदर्श की बहन और चचेरा भाई लगभग 7.30 बजे फ्लैट पर पहुंचे, तो उन्होंने उसके कमरे को अंदर से बंद पाया। उन्होंने जब कमरा खोला तो आदर्श को छत से फंदे से लटका हुआ पाया। क्षेत्राधिकारी के.एस. राठौड़ ने बताया कि जब आदर्श को नीचे लाया गया तो वह कथित तौर पर सांस ले रहा था, लेकिन अस्पताल ले जाते समय उसने दम तोड़ दिया। पुलिस के मुताबिक, बिहार के रोहतास जिले का रहने वाला आदर्श पिछले एक साल से कोटा में रहकर नीट की तैयारी कर रहा था और वह एक किराये के फ्लैट में अपनी बहन और चचेरे भाई के साथ रहता था।


नियमित टेस्ट पर रोक

इस बीच, कोटा के जिलाधीश ओपी बंकर ने रविवार रात जारी एक आदेश में कोचिंग संस्थानों से अगले दो महीने के लिए नियमित टेस्ट पर रोक लगाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि छात्रों को ‘‘मानसिक सहयोग’’ देने के लिए यह निर्देश जारी किया गया है।

इसे भी पढ़ें: राजस्थान: आत्महत्या रोकने के लिए कोटा के छात्रावासों की बालकनी में जाल लगाए गए

आत्महत्या के कारण क्या हैं?

कोटा में आत्महत्याओं के कारणों पर गौर करें तो स्पष्ट होता है कि दरअसल परीक्षा में असफल होने का डर नहीं बल्कि विफलता के बाद होने वाला अपमान और तिरस्कार जीवन लीला समाप्त करने पर मजबूर करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि छात्रों को अक्सर पढ़ाई की बजाय भावनात्मक तनाव से जूझना मुश्किल लगता है। अक्सर दूसरों की उम्मीदों का बोझ उनकी खुद की उम्मीदों के साथ जुड़ जाता है, जो छात्रों को हतोत्साहित करता है।


इसके अलावा कोटा के कोचिंग संस्थानों में एक के बाद एक व्याख्यान, परीक्षा श्रृंखला, अपने साथियों से आगे निकलने की निरंतर दौड़ और पाठ्यक्रम के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करते करते कई छात्र हार मान जाते हैं। ऐसी भी रिपोर्टें सामने आई हैं कि कई छात्र खुद को थोड़ी राहत देने के लिए वेब सीरीज देखने लगते हैं, लेकिन वेब सीरीज़ की लत बहुत बुरी है क्योंकि यह रुकने नहीं देती और ऐसे में छात्र पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं। रिपोर्टों में बताया गया कि अक्सर छात्रों को सूजन और लाल आंखों के साथ इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन सिंड्रोम से पीड़ित पाया जाता है जो दर्शाता है कि वह वेब सीरीज़ के चंगुल में फंस चुके हैं। वहीं कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इसके लिए कोचिंग संस्थानों से ज्यादा माता-पिता जिम्मेदार हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता को अपने बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाने के लिए दबाव बनाने के बजाय अपने बच्चों का अभिवृत्ति (एप्टीट्यूड) टेस्ट कराना चाहिए और फिर तय करना चाहिए कि उनके लिए सबसे अच्छा क्या है। विशेषज्ञों का कहना है कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि जेईई और एनईईटी बहुत कठिन परीक्षाएं हैं और इसलिए शिक्षण और सीखने को भी समान स्तर का माना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ माता-पिता अपने बच्चों को जबरन कोटा भेजते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे डॉक्टर या इंजीनियर बनें। इसके चलते बच्चे अक्सर इस चिंता में रहते हैं कि परीक्षा में सफल नहीं होने पर वह क्या मुंह दिखाएंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों और माता-पिता को यह सलाह देने की जरूरत है कि इंजीनियरिंग और चिकित्सा से परे भी जीवन है और चुनने के लिए कॅरियर के कई विकल्प उपलब्ध हैं।


विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि ज्यादातर माता-पिता को लगता है कि उनके बच्चे के कोचिंग सेंटर में दाखिला लेने के बाद उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है क्योंकि उन्होंने फीस का भुगतान कर दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, छात्रावास में रहने वाले केवल 25 फीसदी छात्रों के माता-पिता हॉस्टल के ‘केयरटेकर’ से बात करके अपने बच्चों के बारे में नियमित पूछताछ करते हैं, जबकि बाकी 75 फीसदी 2-3 महीने में एक बार पूछताछ करते हैं।


सुरक्षा के उपाय किये जा रहे

बहरहाल, कोचिंग का केंद्र कहे जाने वाले कोटा के छात्रावासों में आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है जिसके तहत यहां बालकनियों और लॉबी में जाल लगाए जा रहे हैं। छात्रावास मालिकों ने बताया कि वे इस तरह की दुखद घटनाओं से बचने के लिए अपने परिसर को ‘आत्महत्या रोधी’ बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। इससे पहले पंखों में स्प्रिंग उपकरण लगाने का कदम भी उठाया गया था।


इसके अलावा कोटा के उपायुक्त ओपी बुनकर ने कहा, ‘‘हम बच्चों के नियमित मनोवैज्ञानिक परीक्षण से लेकर माता-पिता के साथ लगातार बातचीत करने जैसे कई उपाय कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, पंखे में स्प्रिंग उपकरण लगाने जैसे उपाय किसी छात्र द्वारा किए गए ऐसे प्रयास को विफल करने में सहायक हो सकते हैं। अगर एक बार जब वह प्रयास में असफल हो जाता है, तो छात्रों को परामर्श देना आसान हो जाता।’’ 


हम आपको यह भी बता दें कि इंजीनियरिंग के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए हर साल दो लाख से अधिक छात्र कोटा आते हैं।

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