अनुच्छेद 370 से लेकर कोरोना तक विवादों में घिरी रही NDA 2.0 की सरकार

By अनुराग गुप्ता | May 25, 2020

देश में कोरोना संकट के बीच में मोदी सरकार 2.0 का एक साल पूरा होने वाला है। 30 मई 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी एनडीए 2.0 की सरकार अपना एक साल पूरा करने वाली है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 300 से ज्यादा सीटें जीतकर केंद्र में एक बार फिर से सत्ता हासिल की थी और अब हम आपको बताएंगे कि पूरे हो रहे एक साल के बीच में वो कौन-कौन से विवाद रहे जिसकी वजह से मोदी सरकार सुर्खियों में आई।


अनुच्छेद 370

बीते साल अगस्त के माह में केंद्र की मोदी सरकार ने अचानक से अमरनाथ यात्रा को स्थगित कर यात्रियों को वापस जाने के आदेश देते हुए जम्मू-कश्मीर में कड़े सुरक्षा प्रबंध किए। इसके बाद 5 अगस्त को एक ऐतिहासिक फैसला करते हुए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद विपक्षी पार्टियों ने मोदी सरकार को जमकर घेरा लेकिन आवाम की नजरों में गलत संदेशा न जाए इसके लिए बाद में विपक्षियों ने हटाने के तरीकों पर ऐतराज जताया।


इस दौरान जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह से ब्लैक आउट कर दिया गया था। इंटरनेट सेवाओं और जम्मू कश्मीर यात्रा पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी। एक के बाद एक घाटी के तमाम बड़े नेताओं को नजरबंद कर दिया गया।

 

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इस मुद्दे को लेकर संसद में भारी बहस हुई। पूर्व मुख्यमंत्री और जेकेएनसी प्रमुख फारुक अब्दुल्ला के स्वास्थ्य और गिरफ्तारी दोनों का मुद्दा उठा। जिसका गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में जवाब भी दिया। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि फारूक अब्दुल्ला को नजरबंद नहीं किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि अगर उनको नहीं आना है तो कनपटी पर बंदूक रखकर उन्हें बाहर नहीं ला सकते। हालांकि, बाद में फारुक अब्दुल्ला मीडिया से मुखातिब हुए और उन्होंने कहा कि मुझे मेरे घर में नजरबंद करके रखा गया था। मुझे यह देखकर काफी दुख हुआ कि गृह मंत्री इस तरह से झूठ भी बोल सकते हैं।


हालांकि 223 दिन की नजरबंदी के बाद फारुक अब्दुल्ला को रिहा कर दिया गया। जबकि प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती समेत कई नेताओं की नजरबंदी जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत बढ़ा दी गई है।


NRC और शाहीनबाग

एनडीए 2.0 की मोदी सरकार ने संसद से नागरिकता संशोधन कानून को पारित किया। इस विषय पर भाषण देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि एनआरसी तो आकर ही रहेगा। जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया। सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़कों पर दिखाई देने लगा। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन होने लगे और क्रोनोलॉजी जैसे शब्दों का चलन शुरू हो गया। हालांकि, बढ़ते हुए विरोध प्रदर्शन को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए साफ कर दिया कि अभी सरकार एनआरसी लाने का कोई विचार नहीं कर रही। पीएम मोदी के इस संबोधन के बाद विरोध प्रदर्शन थम जाना चाहिए था लेकिन वह थमा नहीं और उसके एक बड़ा रूप अख्तियार कर लिया। शाहीनबाग इलाके में मुस्लिम समुदाय के लोग धरने पर बैठ गए और दिल्ली में जगह-जगह प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया।

 

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को एनआरसी के साथ जनता ने मिला दिया। जबकि दोनों काफी अलग हैं। देश में नागरिकता अधिनियम 1955 में मोदी सरकार ने संशोधन किया। जिसके मुताबिक 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाइयों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।


इस अधिनियम के पारित होने के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन देखने को मिला और एक विवाद खड़ा हो गया। मुस्लिम और गैर-मुस्लिम के बीच नागरिकता के विषय पर बहस छिड़ गई। हालांकि सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि वह नागरिकता संशोधन कानून को वापस नहीं लेने वाली। जिसके बाद यह बहस एनआरसी पर आकर ठहर गई और शाहीनबाग जैसे इलाके का जन्म हुआ। शाहीनबाग इलाके के जन्म से मेरा मतलब विरोध प्रदर्शन से था।


जेएनयू विवाद

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में फीस बढ़ोत्तरी हुई। जिसके बाद 11 नवंबर को छात्रों मे सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दिन छात्रों ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से बढ़ी हुई फीस वापस लेने की मांग की और फिर छात्रों ने समारोह का बहिष्कार भी किया। हालांकि, बाद में मंत्रालय ने कमेटी भी बनाई और छात्रों से कक्षाओं में लौट जाने का अनुरोध भी किया था। लेकिन छात्र फीस को वापस लिए जाने के मुद्दे पर अड़ गए। धीरे-धीरे जेएनयू छात्रों को दूसरे अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों का भी साथ मिल गया और यह बहुत बड़ा आंदोलन बन गया।


जेएनयू में विरोध कर रहे छात्रों ने तो परीक्षा का भी बहिष्कार कर दिया। जिसके बाद जेएनयू प्रशासन ने दाखिला प्रक्रिया शुरू की। यह प्रक्रिया जेएनयू के सर्वर रूम से की जाती है। छात्रों ने इसका भी पुरजोर विरोध किया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों पर आरोप लगाया कि इन लोगों ने ऑनलाइन दाखिला रोकने के लिए सर्वर रूम पर कब्जा कर लिया और मास्क पहनकर कुछ छात्रों ने तोड़फोड़ भी की।


देखते ही देखते यह विरोध प्रदर्शन कब हिंसा में तब्दील हो गया इस बात का किसी को अंदाजा नहीं रहा। पहले बीवीपी और वामपंथी छात्र गुटों के बीच छुट-मुट झड़पें हुईं फिर बाद में नकाबपोश लोगों ने साबरमती और अन्य हॉस्टल में घुसकर तोड़फोड़ की और पथराव किया। जिसे वामपंथी संगठन के छात्रों ने एबीवीपी की ओर से किया गया सुनियोजित हमला बताया था।


इस दौरान दिल्ली पुलिस गेट के बाहर तैनात रही क्योंकि उनके पास विश्वविद्यालय कैंपस में जाने की अनुमति नहीं थी। धीरे-धीरे सवाल दिल्ली पुलिस पर खड़े हुए और सरकार पर भी। हालांकि दिल्ली पुलिस ने तहकीकात कर नकाबपोश हमलावरों से पर्दा उठा दिया।

 

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वहीं, जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के कैंपस में पुलिस द्वारा छात्रों को बुरी तरह पीटने का मामला सामने आया था। बता दें कि भरत नगर में स्थित सूर्या होटल के पास में स्थानीय लोग सीएए का विरोध कर रहे थे। 15 दिसंबर की रात जामिया इलाके में हिंसा भड़क गई। दिल्ली पुलिस अराजक तत्वों के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में घुसे होने के संदेह के चलते परिषद में दाखिल हो गई। छात्रों का आरोप है कि दिल्ली पुलिस ने लाइब्रेरी में आंसू गैस के गोले दागे और छात्रों के साथ मारपीट की। इतना ही नहीं छात्रों ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने परिसर की नाकेबंदी कर दी थी ताकि जख्मी छात्रों को इलाज कराने से रोका जा सके।


तड़के सुबह मुख्यमंत्री बने फडणवीस

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए। चुनाव से पहले भाजपा और शिवसेना का गठबंधन चुनाव नतीजे आने के बाद टूट गया। जिसके बाद शिवसेना, एनसीपी प्रमुख शरद पवार के संपर्क में आए और सरकार का गठन किए जाने को लेकर विचार विमर्श शुरू हो गया। इस दौरान महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू था।


शरद पवार ने शिवसेना और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने की बात भी कर ली। लेकिन मंत्रालयों के बंटवारे और मुख्यमंत्री पद को लेकर अभी भी संशय बना हुआ था कि किसे कौन सा मंत्रालय दिया जाए और मुख्यमंत्री कौन बनेगा। देखते ही देखते शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाया गया लेकिन तभी कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी की बैठक से एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार चले गए।


23 नवंबर की तड़के सुबह एक तस्वीर सामने आई जिसके महाराष्ट्र की सियासत को झगझोर दिया था। यह तस्वीर देवेंद्र फडणवीस के शपथ लेने की थी। देवेंद्र फडणवीस दोबारा सीएम बन गए और अजित पवार ने डिप्टी सीएम के तौर पर शपथ ली।


आनन फानन में तीनों दलों ने मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और भाजपा पर जबरन सरकार बनाने का आरोप लगाया। इस दौरान अजित पवार को भी निशाने पर लिया गया। देखते ही देखते मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने शक्ति परीक्षण कराए जाने का निर्देश दिया लेकिन शक्ति परीक्षण से पहले ही देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।


कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया और केंद्र सरकार को निशाने पर लिया कि किस तरह से देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने के लिए रातों ही रात आदेश जारी कर दिए गए और सुबह-सुबह उन्हें शपथ दिला दी गई।


बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों के लिए 21 अक्टूबर को चुनाव हुए थे और 24 अक्टूबर को नतीजे सामने आए। जिसमें बीजेपी को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थी। किसी भी पार्टी द्वारा सरकार बनाने का दावा नहीं पेश किए जाने की वजह से 12 नवंबर को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था।


दिल्ली हिंसा

दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाकों में नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन और विरोध करने वाले गुटों के बीच झड़प से शुरू हुई हिंसा में करीब 53 लोगों की मौत हुई थी। मौजपुर से शुरू हुआ बवाल इतना ज्यादा बढ़ गया था कि दोनों गुटों के बीच ईट-पत्थर चलने लगे। हिंसा ग्रस्त इलाकों में आवाजाही रोकने पड़ी और मोदी सरकार को अपने सबसे काफिल अफसरों में से एक एनएसए चीफ अजीत डोभाल को हिंसाग्रस्त इलाकों पर भेजना पड़ा। जिसके बाद मामला थमा और फिर दिल्ली पुलिस ने तहकीकात तेज कर दी। धीरे-धीरे गिरफ्तारियां होने लगी और अभी भी दिल्ली पुलिस इसके पीछे चल रही साजिश का पर्दाफाश करने की कोशिश में जुटी हुई है।


क्यों और कैसे जला दिल्ली ? क्या सोची समझी रणनीति के तहत हुई थी हिंसा ? इस तरह के सवालों के साथ दिल्ली पुलिस एसआईटी जांच में जुट गई। जांच के लिए पुलिस ने निवासियों और मीडिया कर्मियों से भी मदद मांगी और कहा कि जिनके पास भी हिंसा से जुड़ी हुई तस्वीरें, वीडियो फुटेज या फिर अन्य सबूत हों वह दिल्ली पुलिस को मुहैया कराएं।


राजधानी के उत्तरपूर्वी इलाकों में हुई हिंसा को लेकर विपक्षी दलों ने सरकार की जमकर आलोचना की थी। इतना ही नहीं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल दंगा ग्रस्त इलाकों का दौरा करने पहुंचा था। उस वक्त राहुल ने कहा था कि इस हिंसा से भारत माता को कोई फायदा नहीं है। हर समय हर किसी को एक साथ काम करके भारत को आगे ले जाना होगा।


हालांकि, विपक्ष द्वारा उठाए गए सभी सवालों का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि दिल्ली दंगा को राजनीतिक रंग देने का प्रयास हुआ है। जिन लोगों की जान गई है उनके लिए दिल से दुख व्यक्त करता हूं।


गृह मंत्री ने कहा था कि दिल्ली पुलिस के सिर पर पहली जिम्मेदारी हिंसा को रोकना थी। 24 फरवरी 2020 को 2 बजे के आस-पास पहली सूचना प्राप्त हुई थी और अंतिम सूचना 25 फरवरी को रात 11 बजे प्राप्त हुई। दिल्ली पुलिस ने 36 घंटे में दंगे को समाप्त करने का काम किया है। अमित शाह ने कहा था कि फेस आइडेंटिफिकेश सॉफ्टवेयर के माध्यम से 1100 से ज्यादा लोगों की पहचान हो चुकी है। 40 टीमें दंगाइयों को खोजने में लगी हैं। जिनका दंगों में कोई रोल है उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार नहीं बख्शेगी। इस दौरान सरकार ने विपक्ष पर तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने का भी आरोप लगाया था।


कोरोना महामारी

चीन के वुहान शहर से फैली महामारी के प्रसार को रोकने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी और अब लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू हो चुका है। देशवासियों को एक तरफ संक्रमण का खतरा खाए जा रहा है तो दूसरी तरफ पेट पर मार पड़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कम्पनियों से अपील किए जाने के बावजूद कम्पनियों ने कर्मचारियों को निकाल दिया तो दूसरी तरफ बहुत से ऐसे कर्मचारी हैं जिन्हें तनख्वाह तक नहीं मिली है।


इस बीच देश ने आजादी के बाद का सबसे बड़ा पलायन भी देखा। यह पलायन शहरों से गांवों की तरफ हो रहा था। बेवस लाचार प्रवासी मजदूर अपने घरों की तरफ जाने की आस लगाए बैठे रहे तो कुछ ने पैदल जाने का ही निर्णय किया। प्रवासी मजदूरों के घर वापसी के मुद्दों पर ध्यान खींचते हुए विपक्ष ने रेल किराया देने का मुद्दा उठाया। जिसके बाद सरकार का स्पष्टीकरण भी आया और 85:15 के अनुपात से केंद्र और राज्य द्वारा किराया देने की बात कही गई।


सरकार के स्पष्टीकरण के बावजूद विपक्ष ने प्रवासियों से किराया वसूले जाने का आरोप लगाया। वहीं इस संकट से उबरने के लिए और अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लाने के लिए सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए आर्थिक पैकेज का ऐलान किया जो भारत की जीडीपी का 10 फीसदी है। इस विषय पर भी कांग्रेस सरकार से पुर्नविचार करने का अनुरोध कर रही है और गरीबों-मजदूरों के खाते में सीधे वित्तीय सहायता देने की अपील कर रही है। इतना ही नहीं पी चिदंबरम ने दावा किया कि सरकार की ओर से घोषित पैकेज में सिर्फ 1,86,650 करोड़ रुपए की वित्तीय प्रोत्साहन राशि है जो भारत की जीडीपी का सिर्फ 0.91 फीसदी है। तो यह रहे वो तमाम विवाद जिनका एनडीए 2.0 की सरकार ने सामना किया और कर भी रही है। फिलहाल केंद्र सरकार प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की हर मुमकिन कोशिश कर रही। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार के बीच आपसी तालमेल के चलते ट्रेनें और बसों की सुविधाएं चलाई गईं हैं। हालांकि इन सुविधाओं के बावजूद प्रवासियों की संख्या इतनी अधिक है कि वह पैदल जाने के लिए मजबूर हैं। 


अनुराग गुप्ता

 

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