नवरात्रि में इन मंत्रों के साथ पूर्ण विधि-विधान से करें पूजन, सचमुच किस्मत के बंद दरवाजे खुल जाएंगे

By शुभा दुबे | Apr 02, 2022

नवरात्रि माँ दुर्गा के नौ रूपों के पूजन का पर्व है। भारत के विभिन्न प्रांतों में नवरात्रि बड़े धूमधाम से मनायी जाती है और अलग अलग प्रांतों में दुर्गा पूजन भिन्न तरीके से देखने को मिलता है। हालांकि विधि विधान सब जगह कमोबेश एक जैसा ही होता है लेकिन स्थानीय लोक कलाएँ या परम्पराएँ इस पर्व के साथ जुड़ जाने से पर्व का रंग हर जगह अलग अलग दिखता है। आइए जानते हैं देवी दुर्गा के पूजन की विधि।

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आराधक को पूजन के निश्चित दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर पूजन विधान का पालन करना चाहिये। आराधक ब्रह्ममुहूर्त में उठने पर बिस्तर पर बैठे−बैठे पहले दोनों हाथों की हथेलियों को एक दूसरे से रगड़कर अपने नेत्रों और मुख पर स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें−


कराग्रे वसित लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।

करमूले तु गोवन्दः प्रभाते करदर्शनम्।।


भावार्थ− मनुष्य के हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी जी का वास है, मध्य में सरस्वती और मूल भाग में ब्रह्मा स्थित हैं। प्रातः अपने हाथों में लक्ष्मी, सरस्वती और ब्रह्मा के दर्शन करते हुए हम धन, विद्या और निर्माण कार्य के लिए अर्चना कर रहे हैं।


प्राचीन ग्रंथ पुराणों में ऋषि−मुनियों ने सहस्त्रों वर्षों तक अध्ययन और मनन करने के बाद ब्रह्माण्ड के संबंध में लिखा है। प्राचीन ग्रंथों में लिखे तथ्यों को आधुनिक वैज्ञानिक भी स्वीकार कर रहे हैं। ऋषि मुनियों ने सृष्टि के पांच तत्वों को प्राचीनकाल में ही पूरी तरह से जान लिया था। तभी उन्होंने पृथ्वी की महानता का वर्णन किया था। पृथ्वी पर पांव रखने से पूर्व शास्त्रों में पृथ्वी से प्रार्थना का वर्णन है। ऋषि मुनियों ने पृथ्वी को ही जीवन का आधार वर्णित किया है क्योंकि सभी वनस्पतियां पृथ्वी पर उगती हैं। हम सब पृथ्वी पर चलते−फिरते ओर जन्म से मरण तक जीवनयापन करते हैं। निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पृथ्वी की प्रार्थना करें−


समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते।

विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।


भावार्थ− हे पृथ्वी मां! तुम हम सबके जीवन का आधार हो। हम आप पर पांव रखने से पूर्व क्षमा याचना और प्रार्थना करते हैं। पृथ्वी मां आपका वस्त्र समुद्र है और पर्वत आपके स्तन हैं। आप हम सब का कल्याण करें।


पृथ्वी को प्रणाम करके पांव बिस्तर से नीचे रखें फिर स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध व स्वच्छ वस्त्र धारण करें। आराधक को पूजन के दिन व्रत करना चाहिये। घर के किसी पवित्र स्थल पर चौकी पर वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा की मूर्ति या चित्र रखकर पूजा की सामग्री उसके समीप रखकर पूजन प्रारम्भ करें। पुरोहित की व्यवस्था हो तो शेष कार्य पुरोहित पूरे कर देगा। यदि आप स्वयं कर रहे हों तो विधिवत एक−एक कार्य पूरा करते जाएं।


घर में आपका कोई पूजास्थल हो तो वहीं पर दुर्गा पूजन करें। किसी कमरे में पूजा के समय आराधक को पूर्व की ओर तथा पुरोहित को उत्तर की ओर मुंह करके बैठना चाहिये। पूजा से पहले मां दुर्गा का मन ही मन स्मरण करके निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए शुद्ध जल से अपने पर और आसपास छींटे मारें। जल को बाएं हाथ की हथेली पर लेकर दाहिने हाथ से, मृगमुद्रा बनाकर जल सिंचन का उपक्रम करें।


ओमः अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपिवा।

यरू स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यान्तरः शुचिः।।


भावार्थ− हे देवी! हम आपका स्मरण करके अपने शरीर और विचारों को पवित्र कर रहे हैं।


मंत्र उच्चारण के बाद भगवती दुर्गा की मूर्ति या चित्र को सामने रखते समय ओम नमो दुर्गायः मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

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पूजन सामग्री को अपने पास इस तरह रखना चाहिए कि पूजा के समय आसन से आराधक को उठना नहीं पड़े। जलपात्र, धूप, दीप और घंटी बायीं ओर, घी का दीपाक, शंख दायीं ओर तथा केसर, चंदन, फूल, नैवे़द्य आदि सामने रखते हुए मधु, दूध, दही, ऋतुफल, नारियल, सरसों, राई आदि सुविधानुसार समीप ही रखें। पूजन प्रारम्भ करने पर मूर्ति के आसन को शुद्ध करने के लिए दाएं हाथ से जल के छींटे मारते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें−


ओम पृथ्वि त्वया धृमा लोका, देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरू चासनम्।।


भावार्थ− विश्व को आधार देने वाली पृथ्वी मेरा आसन पवित्र कर दो।


पूजा प्रारम्भ करने पर अंतःकरण की शुद्धि के लिए आचमन करना चाहिए। आचमन के लिए दाएं हाथ की हथेली पर जल लेकर अपने मुंह में डालना चाहिए। आचमन करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए−


ओम एं आत्मतत्त्वं शोध्यामि नमः स्वाहा।।

ओम हीं विद्यातत्तवं शोधयामि नमः स्वाहा।।

ओम क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।।


इस मंत्र के बाद अपने दाएं हाथ के अंगूठे के मूल से होंठ पोंछते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें−


ओम ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।।


इसके बाद हाथ में अक्षत और पीली सरसों लेकर दिशा बंधन करना चाहिए। दिशा बंधन करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए−


त्राहिमां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्द्धिनी।

प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता।।

दक्षिणेवतु वाराही नेऋत्यां खड्गधारिणी।

प्रतीच्यां वारुणी मे रक्षेद्धस्ताद्वेष्णवी तथा।।

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।

जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः।।


भावार्थ− हे भगवती मां दुर्गा! आप सभी दिशाओं में मेरी रक्षा करें।


इसके बाद पुरोहित या आराधक को दीप प्रज्ज्वलित करना चाहिए। सनातन धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य, अनुष्ठान में दीप जलाना महत्वपूर्ण माना जाता है। दीप अंधकार में सूर्य का प्रतीक है और मनुष्य में विवेक, बुद्धि को विकसित करता है। दीप प्रज्ज्वलित करने से पहले निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए−


ओम भो दीप देवरूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्राविघ्नकृत।

यावत्कर्म समाप्तिः स्यात् तावत्त्वं सुस्थिरो भव।।


भावार्थ− हे मेरे शुभ कार्य, पूजा अनुष्ठान के साक्षी दीप, तुम प्रज्ज्वलित रहकर अंधकार को दूर रखना।


दीप प्रज्ज्वलित करें। आराधक पुरोहित को तिलक लगाये। तिलक लगाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए−

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ओम गन्धद्वरां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपाह्वयेश्रियम्।।


पुरोहित आराधक को तिलक लगाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करे−


शतमानं भर्वात शतायुर्वै पुरुषः

शतेन्द्रयि आयुरेवेन्द्रयिं वीर्यमात्मनि्धन्ते।।


पुरोहित को मौलि बांधते समय निम्न मंत्र बोलना चाहिए−


ओम व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाप्रोति दक्षिणाम्।

दक्षिणा श्रद्धामाप्रोति श्रद्धया सत्यमाप्यते।।


भावार्थ− मैं श्रद्धा से आपको मौलि बांध रहा हूं क्योंकि श्रद्धा से ही सत्य की प्राप्ति होती है।


पुरोहित आराधक को मौलि बांधते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करे−


येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वामनुबघ्नामि रक्षे माचल माचल।।


भावार्थ− जैसे भगवान वामन ने राजा बलि को बांधा था, उसी तरह इस धार्मिक अनुष्ठान, पूजा की सफलता के लिए, आपको यह मौलि बांध रहा हूं।


विभिन्न ग्रंथ पुराणों में देवी−देवता की पूजा के समय पंचदेव पूजा का शास्त्रोक्त विधान वर्णित किया गया है। पंचदेवों में सूर्य, गणेश, शिव, विष्णु और दुर्गा की पूजा की जाती है। हनुमान पूजा से पूर्व पंचदेवों की पूजा निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ करें−


आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्र च केशवम्।

पंचदैवत्यमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत।।


भावार्थ− पांच देवों की पूजा−अर्चना सभी शुभ कार्य और धार्मिक अनुष्ठानों में करनी चाहिए।


-शुभा दुबे

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