शांति का संदेश लेकर नहीं, भारत का सिर झुकाने पाकिस्तान गये थे सिद्धू

By राकेश सैन | Aug 22, 2018

क्रिकेटर से बारास्ता टीवी चैनल होते हुए राजनेता बने पंजाब के स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान जाकर ऐसी गलती कर दी है जिससे यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि गुरु गुड़ थे लगता है थोहर हो गए। कोई पढ़ा लिखा विद्वान बड़ी गलती करे तो हम जैसे सामान्य लोग कहते हैं कि पढ़ा फारसी बेचे तेल, देखो ये बुद्धि का खेल। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर घोषित राष्ट्रीय शोक और अंतिम संस्कार के दिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में इस्लामाबाद पहुंचे नवजोत सिंह सिद्धू विवाद में घिर गए। इमरान खान के बुलावे पर वहां पहुंचे पंजाब के कैबिनेट मंत्री सिद्धू समारोह से पहले पाकिस्तान के जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिले। साथ ही पाक अधिकृत कश्मीर के राष्ट्रपति के बगल में बैठे नजर आए।

बात बिगड़ने के बाद अपनी गलती पर समझदारी की चाश्नी चढ़ाते हुए सिद्धू ने कहा कि जनरल बाजवा ने तो मुझे गले लगाकर कहा था कि हम शांति चाहते हैं। अगर हम एक कदम आगे बढ़ाएंगे तो पाक के लोग दो कदम आगे बढ़ाएंगे। लेकिन सिद्धू ने देशवासियों को क्रोधित कर दिया है। राजनीतिक तीरंदाजी तो होनी ही थी परंतु शहीदों के परिवार भी सिद्धू से रुष्ठ हो गए हैं। तरनतारन जिले के गांव वेईपूई के शहीद सूबेदार परमजीत सिंह के बड़े भाई रणजीत सिंह ने इसे गलत करार दिया। गत वर्ष 1 मई, 2017 में पुंछ जिले में पाक सेना बार्डर एक्शन टीम (बैट) परमजीत का सिर काटकर ले गई थी। इससे एक दिन पहले ही बाजवा ने पाक सीमा का दौरा किया था और माना जा रहा है यह सारी कार्रवाई जनरल बाजवा के इशारे पर ही हुई। शहीद के भाई रणजीत सिंह ने कहा कि सिद्धू ने पाक जनरल के गले लग उनकी भावनाओं से खिलवाड़ किया है। भाई के शहीद होने पर सिद्धू उनके घर आए थे। तब उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान दुश्मन देश है। हम उसके टुकड़े कर देंगे। आज ऐसा क्या हुआ जो पाक दोस्त बन गया। अगर सिद्धू बाजवा के गले मिल ही लिए तो कम से कम यही पूछ लेते कि शहीदों के कटे सिर कहां रखे हैं ? अगर दुश्मनों ने सिर नहीं संभाले तो पगड़ियां तो रखी ही होंगी। अगर सिद्धू पाकिस्तान से उनके भाई की पगड़ी ही ले आएं तो वह खुशी-खुशी अटारी पर अपना सिर कलम कर उनके कदमों में रख देंगे और अगर वह ऐसा नहीं कर पाते तो पाकिस्तान की नागरिकता लेकर वहीं रहें।

 

दूसरी ओर सिद्धू की इस हरकत की गूंज पूरे देश में सुनी गई। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि सिद्धू आम व्यक्ति नहीं हैं। वह पंजाब के मंत्री हैं। उनका जनरल से गले मिलना सही नहीं है। हर भारतीय ने इसे गंभीरता से लिया। पार्टी के पंजाब अध्यक्ष श्वेत मलिक ने कहा है कि सिद्धू ने निजी स्वार्थों को राष्ट्रहित से ऊपर रखा है। सस्ती लोकप्रियता के लिए उनका बाजवा से गले मिलना शर्मनाक है। सिद्धू को लेकर कांग्रेस पार्टी अपने आप को असहज स्थिति में पा रही है। पंजाब के जेल मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने स्पष्ट किया है कि सिद्धू वहां खिलाड़ी के तौर पर गए हैं। उन्हें सरकार या कांग्रेस ने नहीं भेजा। जहां तक माफी मांगने का सवाल है तो यह सिद्धू ही देखेंगे। जम्मू-कश्मीर के कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर का कहना है कि भारत पाक अधिकृत कश्मीर को मान्यता नहीं देता। सिद्धू जिम्मेदार व्यक्ति और मंत्री हैं। उन्हें ऐसा करने से बचना चाहिए था। 

 

खिलाड़ी रहते हुए संयम से बल्लेबाजी करने वाले नवजोत सिंह सिद्धू के बारे में कहा जाता है कि वे बोलते समय अपने इस गुण का सदुपयोग नहीं करते। बोलते समय वे हर बाल पर छक्का मारने की कोशिश करते हैं, बहुत बार सफल होते हैं तो कई बार फंस भी जाते हैं। भारत में राष्ट्रीय शोक की घड़ी पर पाकिस्तान में अपने मित्र के ताजपोशी समारोह में जा कर और वहां सेनाध्यक्ष को गले लगा कर केवल वे ही कैच आऊट नहीं हुए बल्कि पूरी कांग्रेस को ही डेंजर जोन में खड़ा कर दिया दिख रहा है। जैसा कि सभी जानते हैं कि देश के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव और आम चुनाव दहलीज पर खड़े हैं। सर्जिकल स्ट्राईक के सबूत मांगने वाले संजय निरुपम, भारतीय सेनाध्यक्ष को गली का गुंडा कहने वाले संदीप दीक्षित, पाकिस्तानी प्रेम के लिए कुख्यात मणिशंकर अय्यर जैसे नेताओं के चलते कांग्रेस पार्टी पहले ही पाक को लेकर रक्षात्मक मुद्रा में रहती है और अब सिद्धू ने कांग्रेस विरोधियों को एक और हथियार उपलब्ध करवा दिया है। जिस तरह से देश के मीडिया व राजनीतिक दलों ने सिद्धू के मुद्दे को पूरी शिद्दत के साथ लपका है उससे इस बात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि सिद्धू ने अपने व पार्टी के लिए हिट विकेट जैसी स्थिति पैदा कर दी है।

 

वैसे पंजाब कांग्रेस में यह महसूस किया जाने लगा है कि सिद्धू अब पार्टी पर बोझ बनते जा रहे हैं। राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह उन्हें कितना पसंद करते हैं यह किसी से छिपा नहीं है। कहा जाता है कि कैप्टन तो सिद्धू को पार्टी में लेना ही नहीं चाहते थे परंतु उन्हें हाईकमान के आदेश का कड़वा घूंट पी कर सम्मान करना पड़ा। कैप्टन अब भी सिद्धू को इतना अधिमान नहीं देते जितना कि गुरु उनसे अपेक्षा रखते हैं। उनके द्वारा समय-समय पर दिए जाने वाले ब्यान पर पार्टी में कई बार असहज स्थिति पैदा हो चुकी है। जालंधर में कथित अवैध निर्माणों को लेकर जिस तरह से उन्होंने आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल की शैली में छापामारी की उससे कांग्रेस के विधायकों को ही उनके खिलाफ मोर्चा खोलना पड़ा। उनके बारे में यह प्रसिद्ध होता जा रहा है कि कैबिनेट मंत्री के रूप में सिद्धू जुबानी बल्लेबाजी तो खूब करते हैं परंतु काम की पिच पर उनका प्रदर्शन नौसिखिए बल्लेबाज जैसा ही है।

 

देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि पाक सेना ही भारत के साथ अच्छे संबंधों के बीच सबसे बड़ी बाधा है। पाक सेना हर दिन सीमा पर फायरिंग कर घुसपैठियों को इस ओर धकेलने का प्रयास करती है। पाकिस्तान से आयतित आतंकी जम्मू-कश्मीर में आम नागरिकों व हमारे सुरक्षा बलों का खून बहाते हैं। पाकिस्तान के साथ की जाने वाली दोस्ती के हर प्रयास को पाक सेना व वहां की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ही असफल करती रही है। इतना होने के बावजूद कोई भारतीय नेता पाक सेनाध्यक्ष को गले लगाता है तो यह हरकत उसकी राजनीतिक आत्महत्या ही कही जा सकती है। सिद्धू दावा करते हैं कि पाक सेनापति ने भारत से दोस्ताना संबंधों की बात की है तो कौन इस पर विश्वास करेगा। आम कहावत है कि डाकिन बेटे लेती है देती नहीं अर्थात् पाकिस्तानी सेना कभी नहीं चाहेगी कि उनके देश के भारत के साथ अच्छे संबंध हो। भारत का भय दिखा कर ही तो पाक सेना के अधिकारी वहां की राजनीति को नियंत्रित करते और माल बटोरते हैं।

 

सभी जानते हैं कि जिस दिन भारत-पाक के संबंध अच्छे हो गए उस दिन पाक के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाएगा। दूसरा सिद्धू ने अपने आप को भारत का शांतिदूत बताया जो तथ्यों से परे है। किसने उन्हें शांतिदूत बना कर वहां भेजा इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है। पाक अधिकृत कश्मीर के राष्ट्रपति की बगल में बैठ कर उन्होंने संवैधानिक रूप से गलती कर दी है। कहा जाता है कि बिन विचारे जो करे सो पाछे पछताए। अब सिद्धू ने गलती कर दी है और देखना है कि देश की जनता उन्हें व कांग्रेस पार्टी को क्या सजा देती है।

 

-राकेश सैन

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