By डॉ.शंकर सुवन सिंह | Nov 08, 2021
करोड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी एक तपता (आग) हुआ गोला थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया तपते हुए गोले से सागर, महाद्वीपों आदि का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर अनुकूल जलवायु ने मानव जीवन तथा अन्य जीव सृष्टि को जीवन दिया जिससे इन सबका जीवन-अस्तित्व कायम रखने वाली प्रकृति का निर्माण हुआ। मानव प्रकृति का हिस्सा है। प्रकृति व मानव एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के बिना मानव की परिकल्पना नहीं की जा सकती। प्रकृति दो शब्दों से मिलकर बनी है- प्र और कृति। प्र अर्थात प्रकृष्टि (श्रेष्ठ/उत्तम) और कृति का अर्थ है रचना। ईश्वर की श्रेष्ठ रचना अर्थात सृष्टि। प्रकृति से सृष्टि का बोध होता है। प्रकृति अर्थात वह मूलत्व जिसका परिणाम जगत है। कहने का तात्पर्य प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की गई है। प्रकृति दो प्रकार की होती है- प्राकृतिक प्रकृति और मानव प्रकृति। प्राकृतिक प्रकृति में पांच तत्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश शामिल हैं। मानव प्रकृति में मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं। प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। प्रकृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी चीजों का उपभोग स्वयं नहीं करती। जैसे- नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, फूल अपनी खुशबू पूरे वातावरण में फैला देते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है तब उसे गुस्सा आता है। जिसे वह समय-समय पर सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है।
जल, जंगल और जमीन विकास के पर्याय हैं। जल, जंगल और जमीन जब तक है तब तक मानव का विकास होता रहेगा। मानव जो छोड़ते हैं उसको पेड़-पौधे लेते हैं और जो पेड़-पौध छोड़ते हैं उसको मानव लेते हैं। जल, जंगल और जमीन से ही जीवन है। जीवन ही नहीं रहेगा तो विकास अर्थात बिजली, सड़क आदि किसी काम के नहीं रहेंगे। जल, जंगल और जमीन को संरक्षित करने लिए मन का शुद्ध होना बहुत जरूरी है। मन आंतरिक पर्यावरण का हिस्सा है। जल, जंगल और जमीन वाह्य (बाहरी) पर्यावरण का हिस्सा है। हर धर्म ने माना है कि प्राकृतिक विनाश से विकास संभव नहीं है। जलवायु पर्यावरण को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कारक है, क्योंकि जलवायु से प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी, जलराशि तथा जीव जन्तु प्रभावित होते हैं। जलवायु मानव की मानसिक तथा शारीरिक क्रियाओं पर प्रभाव डालती है। मानव पर प्रभाव डालने वाले तत्वों के जलवायु सर्वाधिक प्रभावशाली हैं क्योंकि यह पर्यावरण के अन्य कारकों को भी नियंत्रित करती है। विश्व में जलवायु परिवर्तन चिंता का विषय बना हुआ है| शहरों का भौतिक विकास जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, विकिरण प्रदूषण रूपी दैत्यों ने पृथ्वी की जलवायु को पूर्णतः बदल दिया है। दीपावली के त्यौहार में पटाखों का खूब जम कर इस्तेमाल हुआ नतीजा वायु प्रदुषण। किसी भी त्यौहार का उल्लास मनाने में यदि हमारा वातावरण दूषित होता है तो इससे मानव प्रकृति और प्राकृतिक प्रकृति दोनों ही प्रभावित होती हैं। प्रकृति का पूरे मानव जाति के लिए एक सामान व्यवहार होता है। प्रकृति का सम्बन्ध धर्म विशेष से नहीं होता। अतएव सभी मानव जाति को प्रकृति को अपना मूल अस्तित्व समझना चाहिए।
शुद्ध पेय जल मानव जाति एवं जीव जंतु सभी के लिए एक आवश्यक तत्व है। सृष्टि जीवन के प्रारम्भ में जल निर्मल था, वायु स्वच्छ थी, भूमि शुद्ध थी एवं मनुष्य के विचार भी शुद्ध थे। हरी-भरी इस प्रकृति में सभी जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे बड़ी स्वच्छन्दता से पनपते थे। चारों दिशाओं मे ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ का वातावरण था तथा प्रकृति भली-भाँति पूर्णतः सन्तुलित थी। किन्तु जैसे-जैसे समय बीता, मानव ने विकास और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शुद्ध जल, शुद्ध वायु तथा अन्य नैसर्गिक संसाधनों का भरपूर उपभोग किया। मनुष्य की हर आवश्यकता का समाधान निसर्ग ने किया है, किन्तु बदले में मनुष्य ने प्रदूषण जैसी कभी भी खत्म न होने वाली समस्या पैदा कर दी है। वर्षा के जल को प्रकृति द्वारा एक नियत समय पर, नियत मात्रा में हम प्राप्त करते हैं। अतः इसका संरक्षण करना भी हमारे लिए अति आवश्यक प्रक्रिया होनी चाहिए। वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने देश भर के ग्राम प्रधानों एवं मुखिया को पत्र लिख के वर्षा जल संग्रहित करने की अपील की थी। यह पहला मौका था जब ग्राम प्रधानों को किसी प्रधानमंत्री ने जल संचयन के लिए पत्र लिखा था। संरक्षण के अभाव में वर्षा से प्राप्त जल बह जाता है या वाष्पित हो के उड़ जाता है। हमारे देश में वर्षा पर्याप्त मात्रा में होती है। फिर भी हम पानी का संकट झेलते हैं। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के लगभग 1.4 अरब लोगों को शुद्ध-पेयजल उपलब्ध नहीं है। नीति आयोग द्वारा वर्ष 2019 में जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्लूएमआई) रिपोर्ट के अनुसार देश में 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं। करीब दो लाख लोग स्वच्छ पानी ना मिल पाने के वजह से हर साल जान गंवा देते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2030 ई. तक देश में पानी की मांग, उपलब्ध जल वितरण की दुगनी हो जाएगी। जिसका मतलब है पानी का गंभीर संकट पैदा हो जायेगा और देश में जीडीपी में 6 प्रतिशत की कमी देखी जाएगी। स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा जुटाए गए डाटा का उद्धरण देते हुए रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि करीब 70 प्रतिशत प्रदूषित पानी के साथ भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120 नंबर पर है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों की भौगोलिक स्थितियां अलग हैं। वर्षा काल में जहां भारत के एक हिस्से में बाढ़ के हालात होते हैं वहीँ दूसरे हिस्से में भयंकर सूखा की स्थिति होती है। कई क्षेत्रों में मूसलाधार वर्षा होने के बावजूद लोग एक-एक बूँद पानी के लिए तरसते हैं। कई स्थानों में तो संघर्ष की स्थिति हो जाती है। इसका प्रमुख कारण है वर्षा के जल का सही प्रकार से संचयन न करना। जिससे पानी बह कर प्रदूषित हो जाता है।
प्रकृति के संसाधनों को लेकर हम यह सोचते हैं कि यह कभी ख़त्म नहीं होगा। जिससे जल भण्डारण धीरे-धीरे ख़त्म होने की कगार पर है। इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि हम जितना पानी प्रकृति से जल भण्डारण के रूप में लेते हैं उतना उसको वापस भी करें। विश्व में प्रत्येक वर्ष के 10 नवंबर को विश्व विज्ञान दिवस मनाया जाता है। इस बार विश्व विज्ञान दिवस 2021 की थीम/प्रसंग है- जलवायु के लिए तैयार समुदायों का निर्माण (बिल्डिंग क्लाइमेट- रेडी कम्युनिटीज)। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य शांतिपूर्ण और टिकाऊ समाज के लिए विज्ञान की भूमिका के बारे में जन जागरूकता को मजबूत करना है। विश्व विज्ञान दिवस पर यूनेस्को कलिंग अवार्ड भी दिया जाता है। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में विज्ञान की अहम् भूमिका होती है। अतएव समाज को विज्ञान से जोड़ने और समाज को विज्ञान के करीब लाने की आवश्यकता है। जलवायु विज्ञान के बारे में समुदायों को जागरूक होना होगा।
जलवायु किसी स्थान के वातावरण की दशा को व्यक्त करने के लिये प्रयोग किया जाता है। यह शब्द मौसम के काफी करीब है। जलवायु और मौसम में कुछ अन्तर है। जलवायु बड़े भूखंडों के लिये बड़े कालखंड के लिये ही प्रयुक्त होता है जबकि मौसम अपेक्षाकृत छोटे कालखंड के लिये छोटे स्थान के लिये प्रयुक्त होता है। पूर्व में पृथ्वी के तापमान के बारे में अनुमान बताते हैं कि यह या तो बहुत अधिक था या फिर बहुत कम। मुख्य रूप से, सूर्य से प्राप्त ऊर्जा तथा उसका हास् के बीच का संतुलन ही हमारे पृथ्वी की जलवायु का निर्धारण और तापमान संतुलन निर्धारित करती है। यह ऊर्जा हवाओं, समुद्र धाराओं और अन्य तंत्र द्वारा विश्व भर में वितरित हो जाती है तथा अलग-अलग क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती है। जलवायु पर्यावरण को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कारक है क्योंकि जलवायु से प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी, जलराशि तथा जीव जन्तु प्रभावित होते हैं। जलवायु मानव की मानसिक तथा शारीरिक क्रियाओं पर प्रभाव डालती है। मानव पर प्रभाव डालने वाले तत्वों के जलवायु सर्वाधिक प्रभावशाली है क्योंकि यह पर्यावरण के अन्य कारकों को भी नियंत्रित करती है। पृथ्वी का वातावरण सूर्य की कुछ ऊर्जा को ग्रहण करता है, उसे ग्रीन हाउस इफेक्ट कहते हैं। पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है। इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। ये गैसें सूर्य की ऊर्जा का शोषण करके पृथ्वी की सतह को गर्म कर देती है इससे पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन हो रहा है। गर्मी की ऋतु लम्बी अवधि की और सर्दी की ऋतु छोटी अवधि की होती जा रही है। ग्रीन हाउस गैस के लगातार वृद्धि से भी ओजोन मात्रा घटती है। ग्रीन हाउस गैस प्रजनन के लिए उत्तरदायी स्रोत- लकड़ी के दहन से कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन, पशु, मानव-विष्टा एवं जैव सड़ाव से मीथेन उत्सर्जन और हाइड्रोकार्बन एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड के प्रभाव में ट्रोपोस्फियर के भीतर मीथेन गैस का निर्माण। लम्बी तरंग धैर्य विकिरण का कुछ भाग वायुमंडल के ऊपरी ठन्डे भाग में उपस्थित ट्रेस गैसों द्वारा अवशोषित हो जाता है। इन्हीं ट्रेस गैसों को ग्रीन हाउस गैस कहते हैं। पृथ्वी की प्राकृतिक जलवायु निरन्तर बदलती रही है। ग्रीन हाउस प्रभाव के द्वारा पृथ्वी की सतह गर्म हो रही है।
ग्रीन हाउस प्रभाव- सूर्य की किरणें, कुछ गैसों और वायुमण्डल में उपस्थित कुछ कणों से मिलकर होने की जटिल प्रक्रिया है। कुछ सूर्य की ऊष्मा वायुमण्डल से परावर्तित होकर बाहर चली जाती हैं। लेकिन कुछ ग्रीन हाउस गैसों के द्वारा बनाई हुई परत के कारण बाहर नहीं जाती हैं। अतः पृथ्वी का निम्न वायुमंडल गर्म हो जाता है। ग्रीन हाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा यह जीवन को प्रभावित करती है। पर्यावरण में बढ़ी हुई ऑक्सीजन, ओजोन परत को मोटी रखने में सहायक होती है। यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ओजोन परत और ऑक्सीजन दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। अतएव जल जंगल और जमीन तीनों को ध्यान में रख कर पृथ्वी का विकास करना चाहिए। ओजोन की मोटी परत सभी हानिकारक तत्वों को पृथ्वी पर आने से रोकती हैं।
विश्व विज्ञान दिवस-2021 में हम सभी को ग्रीन हाउस गैसों के निष्कासन में कमी की आवश्यकता पर ध्यान देना होगा। ग्रीन हाउस गैसों के निष्कासन में कमी करना कठिन है परन्तु असंभव नहीं है। कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य जिनके द्वारा इसके निष्कासन को कम किया जा सकता है, वो इस प्रकार हैं- खपत तथा उत्पादन में ऊर्जीय क्षमता की बढ़त होनी चाहिएए वाहनों में पूर्ण रूप से ईंधन का दहन होना चाहिए जोकि ठीक रख-रखाव से संभव है। नई स्वचलित वाहन तकनीक पर जोर देने की आवश्यकता है, ऊर्जा के नए स्रोतों का प्रयोग करना चहिए जैसे- सौर ऊर्जा, जल विद्युत ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा इत्याद। इसके अलावा उद्योगों से निकलने वाले जहरीले पदार्थों के निष्कासन को कम करन चाहिए, हैलोकार्बन के उत्पादन को कम करना चाहिए जैसे- फ्रिज, एयरकन्डीशन में पुनः चक्रीय रसायनों का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा ईंधन वाले वाहनों का प्रयोग कम करना चाहिए। वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए तथा जंगलों को कटने से रोकना चाहिए। इसके अलावा समुद्रीय शैवाल बढ़ाना चाहिए ताकि प्रकाश संश्लेषण के द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग किया जा सके। ये सारे तथ्य पर्यावरण संरक्षण में सहायक साबित होते हैं। इन तथ्यों को अपनाकर ग्रीन हाउस प्रभाव को कम करके उसके द्वारा उत्पन्न जटिल समस्याओं को रोका जा सकता है। जिससे पर्यावरण बचाव मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से निपटा जा सकता है, ताकि एक बेहतर भविष्य बने। पृथ्वी को ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव से बचाना होगा तभी हमारी पृथ्वी स्वस्थ्य और निर्भीक बनेगी। अतएव हम कह सकते हैं कि जलवायु विज्ञान की जागरूकता, जलवायु परिवर्तन की मार से बचा सकती है।
-डॉ. शंकर सुवन सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक
असिस्टेंट प्रोफेसर, शुएट्स, नैनी, प्रयागराज (यूपी)