घड़ियालों की अठखेलियां देखनी है तो चले आइए चम्बल के किनारे

By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Jan 08, 2020

रेत पर, चट्टान पर धूप सकते, छोटे- बच्चों की अठखेलियां, नदी के जल में तैरते, मछली को मुंह से पकड़ते घड़ियाल एवं मगरमच्छ को देखने का आनंद लेना है तो आपको ले चलते हैं भारत में बहने वाली चम्बल नदी की सैर पर। चम्बल में घड़ियालों के अलावा डॉल्फिन, ऊदबिलाव, कछुए, मछली एवं अन्य जलीय जंतु पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। आपको बता दें दुनिया में घड़ियालों का यह अकेला सबसे बड़ा अभयारण्य है। घड़ियालों को प्रजनन करते, अंडों से नन्हे-नन्हे बच्चे निकलते, उनकी अठखेलियां देख खास कर विदेशी सैलानी भी आनन्दित होते हैं।

 

घड़ियाल के साथ-साथ चम्बल के किनारे कराईयो में और वनों में चैसिंगा, जरख, काले हिरण, चिंकारा, चितकबरा हिरन, लोमड़ी, नीलगाय, भालू, पैंथर, टाइगर, साम्भर, नेवला, खरगोश, सियघोष, जंगली लंगूर, लाल मुह के बंदर, बिल्ली, सियार, भालू, जंगली बिल्ली, नेवला, खरगोश आदि वन्यजीव भी सैलानियों को लुभाते हैं। यहां एवियन जाती के पक्षियों की विविधता असाधारण है। 

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चम्बल के किनारे और आसपास के जलाशयों में स्तानीय एवं ग्रीष्म-पथ प्रवास वाले पक्षियों में सारस,टिकड़ी, नकटा, छोटी डूबडूबी, सींगपर, जाँघिल, घोंघिल, चमचा, लोहरजंग, हाजी लगलग, सफेद हवासील, गिर्री बतख, गुगलर बतख, छोटी सिलही बतख, सफेद बुज्जा, कौआरी बुज्जा, कला बुज्जा, सिलेटी अंजन, नरी अंजन, गजपाँव, बड़ा हँसावर, टिटहरी, जर्द टिटहरी, अंधा बगुला, करछीया बगुला, गाय बगुला, गुडेरा, यूरेशियाई करवान, बड़ा करवान, छोटा पनकोवा, जल कूकरी, जीरा बटन, मोर, हीरामन तोता, कांटीवाल तोता, टुईयां तोता, सामान्य पपीहा, हरा पतरंग, अबलक चातक, कबूतर, धवर फाखता, चितरोया फाखता, ईट कोहरी फाखता, टूटरुं, कुहार भटतीतर, कोयल, करेल उल्लू,हुदहुद, नीलकंठ, मैना, अबलकी मैना, गुलाबी मैना, अबाबील,  रामगंगरा, सफेद भौंह खंजन, बैंगनी शक्कर खोरा, मुनिया, बयां, चित्रित तीतर, सफेद तीतर, सिलेटी दुम फुदकी, गौरैया आदि प्रजातियों के पक्षी पाये जाते हैं।

 

शीत ऋतु के दौरान अनेक प्रवासी पक्षी भी बड़ी संख्या में देखने को मिलते हैं। राजहंस, सरपट्टी सवन, नीलसर, छोटी मुर्गाबी, छोटी लालसिर बतख, तिधलरी बतख, पियासन बतख, अबलख बतख, सुर्खाब, गेड़वाल, जमुनी जलमुर्गी, जल पीपी, जलमुर्गी, पीहो, छोटी सुरमा चैबाहा, चुटकन्ना उल्लू, कला शिरशिरा एवं सफेद खंजन आदि प्रमुख प्रवासी पक्षी देखे जाते हैं। चम्बल नदी क्षेत्र में लगभग 150 प्रकार की पक्षी प्रजातियां पायी जाती हैं।

 

घड़ियाल अभयारण्य में पर्यटन के लिए अक्टूबर से मार्च तक का समय सर्वाधिक उपयुक्त है। राजस्थान में जवाहर सागर से कोटा बैराज तक या तो नदी में नाव के माध्यम से या फिर नदी के तट पर जीप के द्वारा यात्रा की जा सकती है। चम्बल घड़ियाल अभयारण्य को नजदीक से देखने के लिए अनेक स्थानों पर व्यू पॉइंट्स बनाये गए हैं। कई व्यू पॉइंट से गाइड के साथ जलचर, किनारे के पक्षी एवं लैंड्सकैप का आनन्द और फोटोग्राफी के लिए बोट सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है। पिनाहट, नंदगांव घाट, सेहसों एवं भरच तक वाहन से भी जाया जा सकता है। वन्यजीव संरक्षण अधिकारी के माध्यम से बोटिंग की व्यवस्था की जा सकती है।

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चम्बल नदी में अस्सी के दशक के मध्य अलग-अलग स्थानों पर तीन से चार वर्ष की आयु के लगभग एक से दो मीटर तक की लम्बाई वाले 1287 शिशु घडियाल छोड़े गए। ये शिशु घडियाल मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के देवरी घडियाल प्रजनन केन्द्र से लाये गये थे। घड़ियाल प्रजनन के लिए राजस्थान में धौलपुर के निकट गुड़ला में उत्तर प्रदेश की इटावा रेंज में खेड़ा अजब सिंह, कसऊआ, पिनाहट रेंज के रेहा घाट, विप्रवली, चम्बल की रेतिया, बाह केन्जरा, हरलालपुरा एवं नंदगवां में मध्य प्रदेश के मुरैना में घड़ियाल की प्रजनन साइटस है। इनका प्रजनन काल 15 जून तक होता है जब अंडों से बच्चे निकलते हैं। एक मादा घड़ियाल एक समय में अपने घोंसले जिसे बिल भी कहते है 40 से 60 अंडे देती हैं। अक्सर 15 जून के बाद मानसून का मौसम शुरू हो जाता है। बरसात से और नदी में पानी के तेज वेग से काफी अंडे बह कर नष्ट हो जाते हैं और 10 प्रतिशत बच्चे ही बच पाते हैं। रेत का अवैध खनन भी इनके जीवन को प्रभावित करता है। 

 

चम्बल नदी के किनारे राजस्थान के धौलपुर शहर के समीप 20 किमी दूरी पर मध्य प्रदेश के मुरैना में ईको सेंटर घड़ियाल प्रोजेक्ट स्थापित किया गया है। यहां घड़ियाल हेचरी में चम्बल से हर वर्ष मई के महीने में करीब 200 अंडों को लाकर पोटेशियम परमेगनेट के घोल में धोते हैं एवं अंडों को हेचरी की रेत में दबकर रख देते है। जन्म से पहले अंडे से आवाज आती है और कुछ देर में अंडा फोड़ कर नन्हा घड़ियाल का बच्चा बाहर निकल आता है। इन बच्चों को चार वर्ष तक देवरी सेंटर के विभिन्न पूलों में पूर्ण देखरेख में पल जाता है। इन पुलों में घड़ियाल के बच्चों की अठखेलियां देखते ही बनती है। नदी में घड़ियाल को नजदीक से देखने का यह एक सुंदर स्थल है। नदी में छोड़ते समय इनकी पूंछ पर टैग लगा देते हैं।

 

यह ईको सेंटर पर्यटकों के आकर्षण का प्रबल केंद्र है। यहां हजारों पर्यटक प्रतिवर्ष इसे देखने आते है। घड़ियाल के छोटे-छोटे बच्चों को देख कर न केवल बड़े वरण बच्चे विशेष रूप से खुश होते हैं। चम्बल में नोकायन का लुफ्त उठाने के लिए यहां चम्बल सफारी की व्यवस्था भी की गई है। केंद्र के केयर टेकर आपको घड़ियाल के प्रजनन से लेकर अंडे बनने एवं बच्चों के पालन, जीवन चक्र, विशेषताएं आदि की सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कर जिज्ञासा शांत कर ज्ञान बढतें हैं।

 

भिंड जिले के बॉर्डर पर चंबल नदी किनारे  इसे मुरैना के देवरी घड़ियाल केंद्र की तरह बरही में कछुआ संरक्षण केंद्र विकसित किया गया है। पिछले दिनों सेंक्चुरी से पहली बार कछुओं को केंद्र में शिफ्ट किया गया है। फिलहाल 269 कछुए शिफ्ट किए गए हैं। इनमें 70 बाटागुर डोंगोका, 4 पंगसुरा टेंटोरिया, 195 बाटागुर कछुगा प्रजाति के कछुए हैं। यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय श्रेणी के हैं। मध्य नेपाल, उत्तरपूर्वी भारत, बांग्लादेश और बर्मा में पाया जाता है। दुनियाभर में इसका अंतिम व्यवहार आवास चंबल सेंक्चुरी हे। भिंड के बरही गांव में चंबल नदी किनारे बनाए गए कछुआ संरक्षण केंद्र परियोजना के अंतर्गत सेंक्चुरी में 4 स्थान बरौली-कतरनीपुरा घाट, बटेश्वरा घाट, उसैद घाट और कनकपुरा घाट पर कछुओं के प्राकृतिक आवास हैं।

 

चंबल में हैं खास प्रजाति के लाल मुकुट वाला कछुआ दक्षिण एशिया के मीठे पानी में रहने वाली प्रजाति का बाटागुर कछुआ पाया जाता है। मादा की लंबाई 56 सेमी तक होती है। वजन 25 किलो ग्राम तक होता है। नर काफी छोटे होते हैं। बाटागुर डोंगोका लुप्तप्राय प्रजाति का कछुआ है। यह तीन धारीवाला होता है। पंगसुरा टेंटोरिया कूबड़ निकला होता है और मेहराबदार होता है। चित्रा इंडिका लुप्तप्राय प्रजाति है। यह छोटे सिर और कोमल कवच वाला होता है। निल्सोनिया गैंगेटिका ऊपरी हिस्सा कालीन की तरह होता है। यह 94 सेमी तक लंबा है। यह खुशी की बात है कि चम्बल सेंक्चुरी में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर खतरे में घोषित बाटागुर कछुगा प्रजाति का कुनबा भी बढ़ रहा है। इस से चम्बल को नई पहचान मिली है।

 

घड़ियाल पूरे विश्व में केवल गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, सिन्ध तथा चम्बल में ही पाये जाते थे। 1974 में सिन्ध नदी में लगभग 70 घडियाल थे किन्तु अस्सी के दशक में सिन्ध नदी में एक भी घड़ियाल शेष नहीं रहा। वैज्ञानिकों ने बताया कि इन जलचरों की प्रजातियों के समाप्त होते जाने का प्रमुख कारण उनके नैसर्गिक निवास स्थलों का नष्ट होना, चमड़े के लिए शिकार किया जाना तथा मछली पकड़ने के जालों में फंस जाने के कारण डूबने से मर जाना बताया। अत: भारत सरकार ने घड़ियाल के पुनर्वास की व्यापक योजना बनाई जिसके तहत घडियालों एवं मगरमच्छों के अण्डों से बच्चे तैयार कर उन्हें फिर से नदियों में छोड़ा जाना सम्मिलित था। चम्बल नदी घडियालों के लिए बेहतर प्राकृतिक आवास है।

 

घड़ियालों के संरक्षण के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा 30 सितम्बर 1978 को रास्ट्रीय चम्बल अभ्यारण्य के लिए प्रशासनिक स्वीकृति जारी की गई। यह अभयारण्य तीन राज्यों की सीमा क्षेत्र में आने से मध्य प्रदेश राज्य क्षेत्र की अधिसूचना 20 दिसम्बर 1978 को की गई। इसी प्रकार की अधिसूचना उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा 20 जनवरी 1979 को एवं राजस्थान राज्य द्वारा 7 दिसम्बर 1979 को जारी की गई। लगभग 600 किलोमीटर लम्बे तथा नदी तट के दोनों ओर 1000 मीटर चैड़े क्षेत्र को अभयारण्य घोषित कर दिया।  

 

चम्बल घड़ियाल अभयारण्य का दक्षिणी छोर कोटा शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर जवाहर सागर बांध से प्रारम्भ होता है। कोटा बैराज के केशोरायपाटन तक के 18 किलोमीटर के मुक्त क्षेत्र को छोड़कर यह अभयारण्य  पालीघाट, बटेसुरा होते हुए पंचनदा में चम्बल, पहूंज, कुंवारी और सिंध नदियों के यमुना में मिलन स्थल तक फैला हुआ है। अभयारण्य की देखरेख एवं प्रशासनिक कार्य के लिए वन विभाग के अधीन परियोजना अधिकारी का कार्यालय मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थापित किया गया। चम्बल नदी में घड़ियाल संरक्षण परियोजना 1979 से प्रारंभ की गई और 1980 में इसकी स्थापना की गई। 

 

अभयारण्य परियोजना क्षेत्र में नदी की गहराई में गेपरनाथ महादेव का स्थल है। केशोरायपाटन में भगवान कृष्ण के प्राचीन मंदिर हैं, जहाँ पर्यटक ग्रामीण मेलों का आनन्द उठा सकते हैं। पालीघाट से रणथम्भौर का ऐतिहासिक किला, बाघ परियोजना क्षेत्र और अभयारण्य अधिक दूर नहीं हैं। 

 

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

लेखक एवं पत्रकार

 

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