By नीरज कुमार दुबे | Jun 11, 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोबारा देश की कमान संभालने के बाद अपने पहले विदेशी दौरे के लिए पड़ोसी देश मालदीव और श्रीलंका को चुना। मुस्लिम बहुल देश मालदीव और बौद्ध बहुल श्रीलंका की यात्रा का एक महत्वपूर्ण संदेश चीन को भी देना था कि इस क्षेत्र में भारत ही शक्तिशाली है और अपने पड़ोसियों के सुख-दुख की चिंता भी करता है तथा उनकी मुश्किलों का हल भी निकालता है। आगामी दिनों में प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात एससीओ सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति के साथ भी होनी है। पिछले दिनों मालदीव जिस आंतरिक राजनीतिक संकट और श्रीलंका जिस आतंकवादी घटना से मिले बड़े दर्द से गुजरा है, ऐसे कठिन समय में भारत ने अपने पड़ोसियों का हर तरह से पूरा साथ दिया। प्रधानमंत्री की इस यात्रा से भारत द्वारा ‘‘पड़ोस पहले’’ नीति को दिया जाने वाला महत्व भी प्रतिबिंबित होता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित देशों में मालदीव और श्रीलंका भी शामिल थे। दस दिनों के भीतर दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ मोदी की यह दूसरी मुलाकात थी। श्रीलंका में तो प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे मोदी के स्वागत के लिए एअरपोर्ट पहुँचे और उनकी पूरी यात्रा के समय उनके साथ ही मौजूद रहे। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के साथ भी उनकी मुलाकात काफी अच्छी रही और दोनों नेता इस बात पर सहमत हुए कि आतंकवाद संयुक्त खतरा है और इसके खिलाफ संयुक्त कार्रवाई की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी जब श्रीलंका के राष्ट्रपति आवास पहुँचे उस दौरान बारिश हो रही थी। यह देख श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना हाथ में छाता लेकर सामने आये और वह खुद को तथा प्रधानमंत्री मोदी को बारिश से बचा रहे थे। भारत के प्रधानमंत्री का श्रीलंका के लिए क्या महत्व है यह इसी बात से पता लग जाता है कि मोदी के सम्मान में दिये गये दोपहर भोज के दौरान पूरी श्रीलंका कैबिनेट मौजूद थी, जिनको प्रधानमंत्री ने संबोधित किया। इसके अलावा श्रीलंका के सभी नौ राज्यों के मुख्यमंत्री भी मोदी से मिले। श्रीलंका में भी सबका साथ... के नारे पर आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री ने विपक्ष के नेता महिंदा राजपक्षे और कुछ तमिल संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की।
इसे भी पढ़ें: क्यों बनाई जाती हैं मंत्रिमंडलीय समितियाँ ? क्या होते हैं इनके अधिकार ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी श्रीलंका यात्रा के दौरान कोलंबो में कैथोलिक चर्च भी गये। मोदी ने चर्च पर हुए घातक हमले के शिकार लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘‘मुझे विश्वास है कि श्रीलंका फिर उठ खड़ा होगा। कायराना आतंकी कृत्य श्रीलंका के हौसले को परास्त नहीं कर सकते। श्रीलंका के लोगों के साथ भारत एकजुटता से खड़ा है।’’ ईस्टर के दिन श्रीलंका में हुए हमलों के बाद इस देश की यात्रा करने वाले मोदी पहले विदेशी नेता हैं। गौरतलब है कि श्रीलंका में ईस्टर के दिन नौ आत्मघाती बम हमलावरों ने कोलंबो स्थित सेंट एंथनीज चर्च, पश्चिमी तटीय नगर नेगोम्बो स्थित सेंट सेबेस्टियन्स चर्च और पूर्वी शहर बट्टीकलोवा स्थित एक अन्य चर्च तथा तीन आलीशान होटलों को निशाना बनाया था। देश में वर्ष 2009 में गृहयुद्ध के खात्मे के बाद यह सबसे भीषण हिंसा थी। आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने हमले की जिम्मेदारी ली थी, लेकिन सरकार ने इसके लिए स्थानीय चरमपंथी समूह नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) को जिम्मेदार ठहराया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका को विश्वास दिलाया है कि द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने के लिए श्रीलंका की जनोन्मुखी परियोजनाओं को भारत की तरफ से पूरा समर्थन मिलेगा। श्रीलंका से स्वदेश रवाना होने से पहले मोदी ने कहा, ‘‘हमारे दिल में श्रीलंका का विशेष स्थान है। मैं श्रीलंका के अपने भाईयों एवं बहनों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि भारत हमेशा आपके साथ है और आपके देश की प्रगति में समर्थन करेगा। आपके यादगार स्वागत के लिए धन्यवाद।’’
मालदीव यात्रा
प्रधानमंत्री की मालदीव यात्रा इस मायने में महत्वपूर्ण रही कि इस यात्रा के दौरान देश के सर्वोच्च सम्मान ‘रूल ऑफ निशान इज्जुद्दीन’ से मोदी को सम्मानित किया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने मालदीव की संसद ‘मजलिस’ को भी संबोधित किया जो कि पड़ोस में भारत को दिये जाने वाले महत्व का एक संकेत है। मोदी की यात्रा के दौरान भारत और मालदीव ने रक्षा और समुद्री सुरक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने के लिए छह समझौतों पर हस्ताक्षर किये। मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलेह ने एक तटीय निगरानी राडार प्रणाली और मालदीव के रक्षा बलों के लिए एक समग्र प्रशिक्षण केंद्र का संयुक्त तौर पर उद्घाटन भी किया। सम्पर्क बढ़ाने के तहत भारत और मालदीव केरल के कोच्चि से मालदीव के लिए एक ‘नौका सेवा’ शुरू करने पर सहमत हुए हैं जिससे एक बड़े वर्ग को लाभ होगा।
मालदीव दौरे के दौरान जब प्रधानमंत्री ने संसद 'मजलिस' को संबोधित किया तो पाकिस्तान पर परोक्ष हमला भी बोला। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि सरकार प्रायोजित आतंकवाद मानवता के लिए आज सबसे बड़ा खतरा है और उन्होंने इससे निपटने के लिए वैश्विक नेताओं से एकजुट होने की अपील की। दक्षिण एशिया ने खासतौर पर आतंकवाद का जो दंश झेला है उसको देखते हुए प्रधानमंत्री का यह कहना एकदम सही था कि ‘‘वैश्विक समुदाय ने जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों पर सम्मेलन और बैठकें की हैं, अब उसे आतंकवाद के मुद्दे पर भी साथ आना चाहिए। अब आतंकवाद पर वैश्विक सम्मेलन करने का समय है।’’
इसे भी पढ़ें: इन योजनाओं की बदौलत मोदी सरकार दोबारा सत्ता में लौटने में सफल रही
वाकई प्रधानमंत्री मोदी ने एक यक्ष प्रश्न उठाया है कि आतंकवादियों के पास न तो बैंक हैं, न नोट छापने वाली मशीनें और न ही हथियार बनाने वाली फैक्ट्रियां...लेकिन फिर भी न तो उनके पास पैसों की कमी होती है और न ही हथियारों की। मोदी ने परोक्ष रूप से पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘सरकार प्रायोजित आतंकवाद आज दुनिया के सामने सबसे बड़ा खतरा है।’’ प्रधानमंत्री ने मालदीव को भरोसा दिलाया है कि उसकी आजादी, लोकतंत्र, समृद्धि और शांति के लिए भारत उसके साथ खड़ा है।
पिछले साल जून में सिंगापुर में आयोजित शंगरी-ला संवाद में प्रधानमंत्री मोदी ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में खुलेपन, एकीकरण और संतुलन बनाने के लिए मिलकर काम करने पर जोर दिया था। दअरसल भारत, अमेरिका और कई अन्य वैश्विक शक्तियां क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य प्रयासों की पृष्ठभूमि में मुक्त एवं खुले हिन्द-प्रशांत क्षेत्र की जरूरत की बात कर रही हैं। अब देखना होगा कि भारत की नयी सरकार अपने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर चीन को कैसे 'नियंत्रित' रख पाती है।
-नीरज कुमार दुबे