कर्नाटक का ऐतिहासिक और प्रसिद्ध शहर मैसूर भारतीय संस्कृति के विभिन्न आयामों और समृद्ध विरासत को अपने में समेटे हुए है। मैसूर न सिर्फ कर्नाटक में पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि आसपास के अन्य पर्यटक स्थलों के लिए एक कड़ी के रूप में भी काफी महत्वपूर्ण है। शहर में सबसे ज्यादा पर्यटक मैसूर के दशहरा उत्सव के दौरान आते हैं। इस दौरान मैसूर महल एवं आसपास के स्थलों जगनमोहन पैलेस, जयलक्ष्मी विलास एवं ललिता महल पर काफी चहल पहल होती है। कर्ण झील चिड़ियाखाना इत्यादि भी यहां काफी आकर्षण का केन्द्र है। मैसूर के संग्रहालय भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। मैसूर से थोड़ी दूर कृष्णराज सागर डैम एवं उससे लगा वृंदावन गार्डन अत्यंत मोहक स्थलों में से है। इस गार्डन की साज-सज्जा, इसके संगीतमय फव्वारे इत्यादि पर्यटकों के लिए काफी लुभावने स्थलों में से हैं। ऐतिहासिकता की दृष्टि से यहीं श्रीरंग पट्टनम का ऐतिहासिक स्थल है जो मध्य तमिल सभ्यताओं के केन्द्र बिन्दु के रूप में स्थापित था। मैसूर में केन्द्रीय विद्यालय संगठन का शिक्षा एवं प्रशिक्षण आँचलिक संस्थान है।
मैसूर नगर अति सुंदर एवं स्वच्छ है, जिसमें रंग बिरंगे पुष्पों से युक्त बाग बगीचों की भरमार है। चामुंडी पहाड़ी पर स्थित होने के कारण यहां की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। यहां के भूतपूर्व महाराजा का महल, विशाल चिड़ियाघर, नगर के समीप ही कृष्णाराजसागर बाँध, वृंदावन वाटिका, चामुंडी की पहाड़ी तथा सोमनाथपुर का मंदिर आदि दर्शनीय स्थान हैं। इन्हीं आकर्षणों के कारण इसे पर्यटकों का स्वर्ग भी कहते हैं। यहाँ पर सूती एवं रेशमी कपड़े, चंदन का साबुन, बटन, बेंत एवं अन्य कलात्मक वस्तुएँ भी तैयार की जाती हैं। यहाँ प्रसिद्ध मैसूर विश्वविद्यालय भी है।
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मैसूर के प्रसिद्ध पर्यटक स्थ्लों की बात करें तो सबसे पहला स्थान महाराजा पैलेस का आता है। यह महल मैसूर में आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र है। मिर्जा रोड पर स्थित यह महल भारत के सबसे बड़े महलों में से एक है। इसमें मैसूर राज्य के वुडेयार महाराज रहते थे। जब लकड़ी का महल जल गया था, तब इस महल का निर्माण कराया गया। 1912 में बने इस महल का नक्शा ब्रिटिश आर्किटैक्ट हेनरी इर्विन ने बनाया था। कल्याण मंडप की कांच से बनी छत, दीवारों पर लगी तस्वीरें और स्वर्णिम सिंहासन इस महल की खासियत है। बहुमूल्य रत्नों से सजे इस सिंहासन को दशहरे के दौरान जनता के देखने के लिए रखा जाता है। इस महल की देखरख अब पुरातत्व विभाग करता है।
यदि आप भी इस महल में घूमना चाहते हैं तो सुबह 10 बजे से शाम 5.30 बजे तक ऐसा कर सकते हैं। महल में एंट्री के लिए शुल्क देना होता है। यहां जूते-चप्पल अंदर ले जाना मना है और कैमरा भी अंदर नहीं ले जा सकते। महल रविवार और राष्ट्रीय अवकाश के दिन शाम 7 से 8 बजे तक और दशहरा के दौरान शाम 7 बजे से रात 9 बजे तक रोशनी से जगमगाता है।
जगनमोहन महल का निर्माण महाराज कृष्णराज वोडेयार ने 1861 में करवाया था। यह मैसूर की सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। यह तीन मंजिला इमारत सिटी बस स्टैंड से 10 मिनट कर दूरी पर है। 1915 में इस महल को श्री जयचमाराजेंद्र आर्ट गैलरी का रूप दे दिया गया जहां मैसूर और तंजौर शैली की पेंटिंग्स, मूर्तियां और दुर्लभ वाद्ययंत्र रखे गए हैं। इनमें त्रावणकोर के शासक और प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा तथा रूसी चित्रकार स्वेतोस्लेव रोएरिच द्वारा बनाए गए चित्र भी शामिल हैं। यदि आप इस महल की सैर करना चाहते हैं तो समय: सुबह 8.30 से शाम 5.30 बजे तक का है।
मैसूर से 13 किलोमीटर दक्षिण में स्थित चामुंडा पहाड़ी मैसूर का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है जो देवी दुर्गा को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। यह मंदिर देवी दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। मंदिर मुख्य गर्भगृह में स्थापित देवी की प्रतिमा शुद्ध सोने की बनी हुई है। यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला का एक अच्छा नमूना है। मंदिर की इमारत सात मंजिला है जिसकी कुल ऊंचाई 40 मीटर है। मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है जो 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पहाड़ की चोटी से मैसूर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा रखी हुई है। पहाड़ी के रास्ते में काले ग्रेनाइट के पत्थर से बने नंदी बैल के भी दर्शन होते हैं। इस मंदिर में पूजा का समय सुबह 7.30 से दोपहर 2 बजे तक और फिर दोपहर 3.30 से शाम 6 बजे तक और फिर शाम 7.30 से रात 9 बजे तक का होता है।
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सेंट फिलोमेना चर्च 1933 में बना था। यह चर्च भारत के सबसे बड़े चर्च में से एक है। मैसूर शहर से 3 किलोमीटर दूर कैथ्रेडल रोड पर स्थित यह चर्च निओ-गोथिक शली में निर्मित है। यहां भूमिगत कमरे में तीसरी शताब्दी के संत इन संत की प्रतिमा स्थापित है। इसकी 175 फीट ऊंची जुड़वां मीनारें मीलों दूर से दिखाई दे जाती हैं। यहां की दीवारों पर ईसा मसीह के जन्म से लेकर पुनर्जन्म तक उनके जीवन की विभिन्न घटनाओं का दर्शाती हुई ग्लास पेंटिग्स लगी हुई हैं। वर्तमान में इस चर्च को सेंट जोसेफ चर्च के नाम से जाना जाता है। यहां अगर आना चाहते हैं तो समय सुबह 5 से शाम 8 बजे तक का है।
कृष्णराजसागर बांध 1932 में बना था। यह बांध मैसूर से 12 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसका डिजाइन श्री एम. विश्वेश्वरैया ने बनाया था और इसका निर्माण कृष्णराज वुडेयार चतुर्थ के शासन काल में हुआ था। इस बांध की लंबाई 8600 फीट, ऊंचाई 130 फीट और क्षेत्रफल 130 वर्ग किलोमीटर है। यह बांध आजादी से पहले की सिविल इंजीनियरिंग का नमूना है। यहां एक छोटा-सा तालाब भी है जहां बोटिंग के जरिए बांध उत्तरी और दक्षिणी किनारों के बीच की दूरी तय की जाती है। बांध के उत्तरी कोने पर संगीतमय फव्वारे हैं। बृंदावन गार्डन नाम के मनोहर बगीचे बांध के ठीक नीचे हैं।
जीआरएस फैंटेसी पार्क भी देखने लायक जगह है। यह पार्क मैसूर का एकमात्र अम्यूजमेंट वॉटर पार्क है। 30 एकड़ में फैला यह पार्क सभी उम्र के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस पार्क के मुख्य आकर्षण पानी के खेल, रोमांचक सवारी और बच्चों के लिए तालाब हैं। जीआरएस पार्क मैसूर रलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर दूर है। पार्क के अंदर शाकाहारी खाने का एक रेस्टोरेंट भी है। बाहर से खाने-पीने का सामान लाना मना है। यहां आने के लिए समय सोमवार से शुक्रवार सुबह 10.30 से 6 बजे तक है। रविवार और सार्वजनिक अवकाश के दिन शाम 7.30 बजे तक और गर्मियों में शनिवार के दिन भी 7.30 बजे तक यह पार्क खुलता है।
मैसूर चिड़ियाघर विश्व के सबसे पुराने चिड़ियाघरों में से एक है। इसका निर्माण 1892 में शाही संरक्षण में हुआ था। इस चिड़ियाघर में 40 से भी ज्यादा देशों से लाए गए जानवरों को रखा गया है। यहां के बगीचों को बहुत ही खूबसूरती से सजाया और संभाला गया है। शेर यहां के मुख्य आकर्षण हैं। इसके अलावा हाथी, सफेद मोर, दरियाई घोड़े, गैंडे और गोरिल्ला भी यहां देखे जा सकते हैं। चिड़ियाघर में करंजी झील भी है। यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। इसके अतिरिक्त यहां एक जैविक उद्यान भी है जहां भारतीय और विदेशी पेड़ों की करीब 85 प्रजातियां रखी गई हैं। यहां आने का समय सुबह 8 बजे से शाम 5.30 बजे तक है। यह मंगलवार को बंद रहता है।
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रेल संग्रहालय कृष्णराज सागर रोड पर स्थित सीएफटी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सामने है। यहां मैसूर स्टेट रेलवे की उन चीजों को प्रदर्शित किया गया है जो 1881-1951 के बीच की हैं। 1979 में स्थापित इस संग्रहालय में एक विशेष क्षेत्र से जुड़ी हुई वस्तुओं का अच्छा संग्रह है। यहां प्रदर्शित वस्तुओं में भाप से चलने वाले इंजन, सिग्नल और 1899 में बना सभी सुविधाओं वाला महारानी का सैलून शामिल है। यहां का मुख्य आकर्षण चामुंडी गैलरी है जहां रेलवे विभाग के विकास का दर्शाती तस्वीरों का रखा गया है। यह संग्रहालय बच्चों का मनोरंजन करने के साथ-साथ उनके ज्ञान को भी बढ़ाता है। यहां आने का समय सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक और दोपहर 3 बजे से रात 8 बजे तक का है।
यूं तो दशहरा पूर देश में मनाया जाता है लेकिन मैसूर में इसका विशेष महत्व है। 10 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव चामुंडेश्वरी द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक है। इसमें बुराई पर अच्छाई की जीत माना जाता है। इस पूरे महीने मैसूर महल को रोशनी से सजाया जाता है। इस दौरान अनेक सांस्कृतिक, धार्मिक और अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उत्सव के अंतिम दिन बैंड बाजे के साथ सजे हुए हाथी देवी की प्रतिमा को पारंपरिक विधि के अनुसार बन्नी मंटप तक पहुंचाते है। करीब 5 किलोमीटर लंबी इस यात्रा के बाद रात को आतिशबाजी का कार्यक्रम होता है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी उसी उत्साह के साथ निभाई जाती है।
कैसे पहुँचें-
वायु मार्ग- मैसूर का नजदीकी हवाई अड्डा बैंगलोर (139 किलोमीटर) है। यहां से सभी प्रमुख शहरों के लिए उड़ानें मिलती हैं।
रेल मार्ग- बैंगलोर से मैसूर के बीच अनेक रेलें चलती हैं। शताब्दी एक्सप्रेस मैसूर को चेन्नई से भी जोड़ती है।
सड़क मार्ग- राज्य राजमार्ग मैसूर को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ते हैं। कर्नाटक सड़क परिवहन निगम और पड़ोसी राज्यों के परिवहन निगम तथा निजी परिवहन कंपनियों की बसें मैसूर से विभिन्न राज्यों के बीच चलती हैं।
-प्रीटी