उत्तर प्रदेश के चुनावी जंगल में इस बार हिंदुस्त्व हावी है। भाजपा हिंदू मतदाताओं का धुर्वीकरण में लगी है, तो सपा सुप्रिमो अखिलेश यादव इस धुर्वीकरण को रोकने के प्रयास में हैं। इस बार चुनावी दंगल से मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की बात नहीं हो रही। चुनावी पटल से मुस्लिम मतदाता गायब है। मुस्लिम मददाताओं को रिझाने के लिए गैर भाजपाई दलों के पास कोई महत्वपूर्ण मुस्लिम नेता भी नही हैं। गोल टोपी लगाकर चुनाव प्रचार करने वाले गायब हैं, तो मत देने की अपील करने वाले मस्जिदों के पेश इमाम भी नजर नहीं आ रहे। चुनाव से मुस्लिमों के मुद्दे गायब हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती लगभग चुप हैं। प्रदेश में पहले और दूसरे चरण का प्रचार चल रहा है। इसमें भाजपा के पास प्रचार के लिए एक मुस्लिम चेहरा केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी जरूर हैं। सपा के कभी आजम खां स्टार प्रचारक होते थे। इस बार वह चुनाव मैदान में तो हैं किंतु प्रचारक में उनका कहीं नाम नहीं। सपा ने तीस स्टार प्रचार के नाम की सूची जारी की है। इसमें सपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य जावेद अली खान का एक मात्र नाम है। ये नाम भी उत्तर प्रदेश के मददाताओं के लिए अनजाना और नया है।
बसपा ने पहले चरण के प्रचार के 18 स्टार प्रचारक की सूची जारी की है इनमें मुनकाद अली और समसुद्दीन राईन का ही नाम है। मुनकाद अली जरूर बसपा का बड़ा नाम है। कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची में पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद और सलमान खुर्शीद का नाम जरूर है, पर ये वह हैं तो कांग्रेस के नेतृत्व के रवैये से नाराज है। वैसे भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत कोई ज्यादा अच्छी नही है। लगता है कि वह सिर्फ वह हाजरी लगाने के लिए चुनाव लड़ रही है। वह और उसके प्रत्याशी कुछ करिश्मा कर सकेंगे, ऐसा नही लगता।
बसपा और कांग्रेस और सपा दावा कर रहे हैं कि उन्होंने ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशियों का मैदान में उतारा है किंतु कोई मुस्लिम के मुद्दे नही उठा रहा। ये मुस्लिम युवाओं के रोजगार और शिक्षा आदि की बात पर चुप है। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान प्रदेश के हजारों मुस्लिम युवाओं के विरूद्ध मुकदमें दर्ज हैं। मुस्लिम वोटों का दावा करने वाला कोई इन मुकदमों की वापसी की बात नहीं कर रहा।उनको डर है कि मुस्लिमों की बात की तो उनका बेस वोट भाजपा के साथ जा सकता है।
बसपा ने ब्राह्णों की बात कर उनको मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका में ला दिया, वरन अब तक कोई उनकी ओर देखता भी नहीं था। ये ही कारण है कि सभी महत्वपूर्ण राजनैतिक दल ये बता रहे है कि उन्होंने कितने ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में उतारे।
सब दल चुनाव में मतदाताओं को अगड़े−पिछड़ों में बांटकर देख रहे हैं। कोशिश भी है कि कोई समाज यह न कह सके कि उनकी उपेक्षा की गई है, जबकि भाजपा पूरे हिंदू वोटर को एक जुट करने की कोशिश कर रही है। अब तक उसका मुद्दा राम मदिंर, काशी−वाराणसी का विकास रहा है। उसी को वह मुद्दा बनाकर हिंदू को एकजुट करना चाहती थी, अब उसने अपने इस अजेंडे में मथुरा को और शामिल कर दिया। उधर हाल ही में भाजपा के प्रदेश प्रभारी अमित शाह ने कैराना का दौरा करके वहां हुए दंगों के घाव कुरेद कर वोटर को एकजुट करने की कोशिश की। वोटर को बताया कि उनकी सरकार में दंगे नही हुए। जबकि सपा सरकार में ये आम था।
विपक्ष जानता है कि प्रदेश का मुसलमान मतदाता भाजपा को पसंद नही करता। वह भाजपा को हराने वाले दल को एकजुट होकर वोट करेगा। इसलिए उसकी कोशिश तो है कि उसे मुस्लिम वोट मिले, पर वह खुलकर उनके पक्ष में घोषणाएं नही कर रहा, वायदे नहीं कर रहा, सभी दलों को डर यह है कि ऐसा करने से कहीं उनका बेस हिंदू वोट न भाग जाए।
सपा का प्रयास है कि मुस्लिम, यादव और पिछड़ों को जोड़ा जाए। चुनाव की घोषणा से पहले जहां भाजपा रैली करने, सपा यात्रा निकालने में लगी थी, वहीं बसपा चुपचाप प्रत्याशी घोषित कर रही थी। भाजपा–सपा गठबंधन के दलों से सीटों के बंटवारें के हल निकलने में लगी थी और बसपा के प्रत्याशी चुनाव संपर्क में लग गए थे। दलित उसका बेस वोट हैं ही, उसने प्रत्याशी को मुस्लिम वोटर को संपर्क के लिए लगाया। जब तक सपा और कांग्रेस के प्रत्याशी तय हुए तब तक बसपा के प्रत्याशी काफी संपर्क कर चुके थे। बसपा का प्रयास है कि दलित–मुसलिम ब्राह्मण उसे मिल जाए। इसका वह लाभ ले सकती है।
भाजपा हिंदुत्व के बूते पर चुनावी समर फतह करने में हैं। उसने अयोध्या काशी के बाद अपने एजेंडे में मथुरा को शामिल करके अपने इरादे साफ कर दिए हैं। विपक्ष के पास इसकी कोई काट नहीं लग रही। हिंदू धर्म प्रचारक और जागरण मंडली राम मंदिर बनाने वालों को वोट देने की अपील करती घूम रही हैं। ऑल इंडियां मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमान के असदुद्दीन औवेसी भी अपने उम्मीदवारों को लेकर चुनाव मैदान में हैं। उन्होंने पार्टी के प्रत्याशी भी मैदान में उतारे हैं किंतु वह मुस्लिमों को अपने से जोड़ पांएगे, ऐसा अभी नही लगता।
सपा−रालोद गठबंधन किसानों की बात कर पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट मतदाताओं को रिझाने के प्रयास में है, वह किसान की बात कर रहा है, उनके मुद्दे उठा रहा है। अभी चुनावी समर शुरू हुआ है। सभी दल राजनीति की शतरंज पर अपनीदृअपनी चाल चल रहे हैं। सब दल दूसरे को हराने के लिए गोटी चल रहे हैं। अभी शुरूआत है, क्या होगा, कहा नही जा सकता।
- अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)