मुस्लिम देश भी नहीं आये साथ, पाकिस्तान की टूट गयी सारी आस

By विष्णुगुप्त | Aug 16, 2019

धारा 370, अनुच्छेद 35ए की समाप्ति, लद्दाख और जम्मू−कश्मीर को केन्द्रीय प्रदेश बना देने की भारतीय कार्यवाही पर पाकिस्तान की सोच और कार्यवाहियां आत्मघाती और खिल्ली पूर्ण साबित हो रही हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, पाकिस्तान की सेना के अधिकारी और पाकिस्तान का कूटनीतिक संवर्ग सिर्फ और सिर्फ तनाव बढ़ाने वाले और युद्ध को आमंत्रित करने वाली भाषा ही बोल रहे हैं। इनके हर कदम आत्मघाती ही क्यों हो रहे हैं? पाकिस्तान की सत्ता, सैनिक संवर्ग और पाकिस्तान की कूटनीति संवर्ग सच्चाई और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को दरकिनार करने में क्यों लगे हुए हैं? 

 

उदाहरण के लिए हम पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल का बयान को लेते हैं। मोहम्मद फैसल गुस्से में कहते हैं कि हम मुसलमान हैं और हमारी डिक्शनरी में डर नाम का कोई शब्द नहीं है, भारत को हम इस गुस्ताखी के लिए सजा जरूर देंगे। मोहम्मद फैसल के इस बयान पर दुनिया भर खिल्ली उड़ी है और इस बयान को खुशफहमी आधारित होने तथा युद्ध को आमंत्रित करने वाला माना गया है। खासकर विश्व सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल की जोरदार खिल्लियां उड़ी हैं और उन्हें अज्ञानी व खुशफहमी से भरा हुआ शख्त बता दिया गया।

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विश्व सोशल मीडिया में चर्चा चली कि इसी तरह के विचार तालिबान रखते थे और कहते थे कि हम मुसलमान हैं, डर नाम का शब्द हमारे लिए कोई अर्थ नहीं रखता है पर जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर तालिबान−अल कायदा के हमले के बाद अमेरिका की वीरता जागी और अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर बदला लिया तब तालिबान−अल कायदा के दहशतगर्द डर कर बिना लड़े भाग गये। जॉर्ज बुश जूनियर ने जब इराक पर कब्जा किया तो फिर ऐसी सोच का कहीं भी कोई अर्थ नहीं रहा था। दुनिया भर के मुस्लिम देश इजरायल के खिलाफ लड़ कर हार चुके हैं, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि कई मुस्लिम देश डर कर इजरायल से शांति समझौता कर चुके हैं, इन मुस्लिम देशों में सीरिया और मिस्र के नाम उल्लेखनीय हैं। 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय भारतीय सेना के डर से 90 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिक भारत के सामने आत्म समर्पण कर चुके थे। अगर डर शब्द का अर्थ नहीं होता तो फिर क्या पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक सैनिक भारत के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए विवश होते? कदापि नहीं। इन उदाहरणों के साथ पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल की खूब खिल्लियां उड़ीं और उन्हें शांति व सद्भावपूर्ण भाषा बोलने की नसीहत दी गयी है।

 

पाकिस्तान की दूसरी सोच मुस्लिम आधार पर गोलबंदी की है। पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है, पाकिस्तान का जन्म भी मुस्लिम आधार पर हुआ था। दुनिया में सिर्फ मुस्लिम देश ही हैं जिनकी मजहब आधारित गोलबंदी है, इस मजहब आधारित गोलबंदी में 57 मुस्लिम देश हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ के बाद यह सबसे बड़ी गोलबंदी है। संयुक्त राष्ट्र संघ जहां लोकतांत्रिक और मानवीय करण पर आधारित विश्व व्यवस्था है जबकि मुस्लिम देशों का संगठन 'ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन यानी ओआईसी एक मजहबी आधारित व्यवस्था है जहां पर सिर्फ मुस्लिम आधार पर ही हर मुद्दे की सुनवाई होती है। दुनिया में सिर्फ मुस्लिम देशों की ही गोलबंदी है, मुस्लिम देशों का ही संगठन है, दुनिया में ईसाई देश भी है और बौद्ध देश भी हैं पर दुनिया में बौद्ध धर्म आधारित या फिर ईसाई धर्म आधारित देशों का कोई संगठन ही नहीं है। यह भी परिलक्षित है कि दुनिया में मजहबी आधारित कोई सोच अंतिम निष्कर्ष या फिर अंतिम परिणाम और अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ती ही नहीं है। इसीलिए कभी भी मुस्लिम देशों का संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन नामक संगठन भी अंतिम लक्ष्य, अंतिम निष्कर्ष पर कभी पहुंच ही नहीं सका है। सिर्फ और सिर्फ हिंसक व अमान्य बनायबाजी और गैर मुस्लिम देशों को डराने में ही लगा रहता है। यह अलग बात है कि गैर मुस्लिम देश खासकर अमेरिका, यूरोप और इजरायल 'ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन की हर चिंता और संज्ञान को मुंह ही चिढ़ाते रहे हैं। खुद मुस्लिम देशों के अंदर मजहब आधारित दरारों, संकटों को दूर करने में यह संगठन कामयाब नहीं हुआ है। मुस्लिम देश आज खुद ही शिया−सुन्नी की लड़ाई को सुलझा नहीं सके हैं, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि शिया−सुन्नी के आधार पर मुस्लिम देश खुद ही बंटे हुए हैं। विगत में ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन ने कश्मीर पर पाकिस्तान की नीति का समर्थन किया है और भारत की आलोचना भी की है पर उसका कोई असर भारत पर नहीं पडा? आखिर क्यों? इसलिए कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और दुनिया जानती है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।

 

'ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन के रूझान और प्रतिक्रियाओं से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है जिससे यह साफ होता है कि पाकिस्तान को इस मुस्लिम गोलबंदी से कोई अधिक लाभ या समर्थन मिलने वाला है। कश्मीर में भारतीय कार्यवाही पर पाकिस्तान ने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन का दरवाजा खटखटाया है। पाकिस्तान की शिकायत पर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन ने जरूर संज्ञान लिया है और प्रतिक्रिया भी दी है। पर प्रतिक्रिया बहुत ही संयमित है और पाकिस्तान के आक्रोश को कोई ज्यादा खाद−पानी नहीं मिला है। ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन ने भारत सरकार की इस कार्यवाही पर चिंता तो जरूर व्यक्त की है पर तनाव बढ़ाने वाले या फिर युद्ध की स्थिति से बचने की भी नसीहत दी है। ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन ही नहीं बल्कि कई बड़े मुस्लिम देशों के रूझानों और प्रतिक्रियाओं से भी पाकिस्तान को झटका लगा है और पाकिस्तान की हिंसक−आक्रोश वाली कूटनीति को तरजीह नहीं मिली है। खासकर यूएई ने पाकिस्तान को एक तरह से झटका ही दिया है और भारतीय पक्ष को स्वीकार किया है। भारत में यूएई के राजदूत ने इस प्रकरण को भारत का आंतरिक प्रसंग बताया है और कहा कि धारा 370 और 35ए समाप्त होने से कश्मीर में विकास की नयी दिशा तय होगी जबकि यूएई के विदेश मंत्री ने भारत और पाकिस्तान से तनाव और युद्ध से बचने के लिए कहा है तथा संयम और संवाद के बल पर इस प्रकरण का समाधान खोजने के लिए कहा है। सऊदी अरब और ईरान ने भी संयम और संवाद से कश्मीर समस्या का समाधान करने पर बल दिया है। उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब सुन्नी देशों और ईरान शिया देशों का नेता है, ये दोनों देश कभी पाकिस्तान के निकटतम दोस्त थे पर आज आतंकवाद और हिंसा की कसौटी पर पाकिस्तान को ये दोनों देश आंख मूंद कर समर्थन देने के लिए तैयार नहीं हैं।

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आखिर मुस्लिम देशों और ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन से भी पाकिस्तान को सफलता क्यों नहीं मिली? आखिर मुस्लिम देश और मुस्लिम देशों का संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को−ऑपरेशन भारत के प्रति नरम रूख अपनाने के लिए तैयार क्यों हुए हैं ? इन दोनों प्रश्नों का उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था, भारत की कूटनीति और पाकिस्तान की आतंकवादी नीति में निहित है। सीमा पर पाकिस्तानी आतंकवाद से ईरान भी कम चिंतित और आक्रांत नहीं है। पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन ईरान के अंदर में भी सुन्नी मुस्लिम आतंकवाद को अंजाम दे रहे हैं और पाकिस्तान सिर्फ मूकदर्शक बना रहता है। इस कारण ईरान भी पाकिस्तान से खफा रहता है। जहां तक सऊदी अरब की बात है तो फिर सऊदी अरब भी पाकिस्तान से कोई खास खुश नहीं है। अफगानिस्तान प्रकरण को लेकर भी पाकिस्तान और ईरान में विवाद है। दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश इंडोनेशिया भी भारत के साथ उदार व्यवहार का सहचर बना हुआ है। तुर्की को लेकर थोड़ी बहुत आशंका है। पर तुर्की के साथ अन्य मुस्लिम देश कितना आगे तक साथ जायेंगे, यह देखना शेष है।

 

भारत ने इधर मुस्लिम देशों के साथ दोस्ती और व्यापार के नये आयाम तय किये हैं। सऊदी अरब, ईरान, इंडोनेशिया जैसे देश भारत के मित्र हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की साख बढ़ी है, भारत की धाक बनी है। तेल कूटनीति में भी भारत अहम स्थान बनाये हुए है। अमेरिका और यूरोप तेल कूटनीति में भारत की भूमिका को स्वीकार करते हैं, तरजीह देते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था भी आज मुस्लिम देशों के साथ ही साथ पूरी दुनिया को आकर्षित कर रही है। इसलिए मुस्लिम देश भारत के साथ मजबूत संबंध चाहते हैं, पाकिस्तान की कीमत पर मुस्लिम देश अपने हित और अपनी अर्थव्यवस्था को बलि नहीं चढ़ाना चाहते हैं। पाकिस्तान को हिंसा और युद्ध की स्थिति से बचने की आवश्यकता है। कश्मीर भारत का आंतरिक प्रसंग है, इस आंतरिक प्रसंग पर पाकिस्तान दुनिया की सोच नहीं बदल सकता है।

 

-विष्णुगुप्त

 

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