By एकता | Mar 23, 2025
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ा झटका लगा है। दरअसल, बिहार के सात प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने नीतीश की इफ्तार पार्टी का बहिष्कार करने का ऐलान किया है। संगठनों का कहना है कि यह फैसला पूरी सूझबूझ और रणनीति के साथ लिया गया है। बता दें, नीतीश की इफ्तार पार्टी आज पटना में होनी थी। ऐसे में मुस्लिम संगठनों के इस फैसले ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
इमारत-ए-शरिया, जमात-ए-इस्लामी, जमात अहले हदीस, खानकाह मोजिबिया, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और खानकाह रहमानी ने रविवार को नीतीश द्वारा पटना में आयोजित की जा रही इफ्तार से दूरी बनाई है। मुस्लिम संगठनों ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 'मुंह में राम और बगल में छुरी' वाली राजनीति कर रहे हैं।
इमारत शरिया के जनरल सेक्रेटरी मुफ्ती सईदुर्रहमान ने आजतक से बातचीत में कहा, 'केंद्र सरकार की तरफ से लाए गए वक्फ संशोधन बिल पर जेडीयू ने समर्थन का फैसला लिया है, उस नजरिए से हमने मुख्यमंत्री की इफ्तार पार्टी का बायकॉट किया है।' जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने एक बयान में आरोप लगाया कि ये नेता सरकार के 'संविधान विरोधी कदमों' का समर्थन कर रहे हैं।
बिहार की राजनीति में मुस्लिम मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो राज्य की 17% से अधिक आबादी हैं। यह मतदाता वर्ग परंपरागत रूप से राजद, कांग्रेस और वाम दलों की ओर झुका रहता है, लेकिन जदयू ने भी वर्षों से एक विशेष वर्ग का समर्थन हासिल किया है।
हालांकि, जदयू की भाजपा के साथ बढ़ती नजदीकियों और सीएए, तीन तलाक कानून जैसे मुद्दों पर उनके रुख ने मुस्लिम मतदाताओं को असमंजस में डाल दिया है। अब सात बड़े मुस्लिम संगठनों द्वारा नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी के बहिष्कार की घोषणा के बाद, मुस्लिम समुदाय में उनके प्रति भारी असंतोष पनप रहा है।
इस बदलाव के परिणामस्वरूप, 10 से 15% मुस्लिम मतदाता जदयू को समर्थन देते थे, वे पूरी तरह से राजद के पक्ष में शिफ्ट हो सकते हैं। यह बदलाव आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में साफ दिखाई दे सकता है। मुस्लिम और यादव (एमवाई) समीकरण पहले से ही राजद की राजनीति की रीढ़ रहा है। अगर मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से जदयू से कटकर राजद के पक्ष में चला जाता है, तो यह जदयू के लिए एक बड़े सियासी झटके से कम नहीं होगा।