By सुयश भट्ट | Dec 09, 2021
भोपाल। मध्य प्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव मामले में अन्तरिम राहत देने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने ग्वालियर बेंच में जस्टिस रोहित आर्या की अध्यक्षता वाली युगलपीठ द्वरा पूर्व में अन्तरिम राहत की अर्जी खारिज करने के बिंदु को ध्यान में रखते हुए मांग नामंजूर कर दी। इससे पूर्व वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने बहस की। उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता खुला होने का मत व्यक्त किया।
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दरअसल राज्य के पंचायत चुनाव को लेकर दायर विभिन्न याचिकाओं की गुरुवार 9 दिसंबर को एक साथ सुनवाई हुई। इस मामले में सर्वप्रथम अधिवक्ता महेंद्र पटेरिया फिर ब्रम्हेंद्र पाठक वुर वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा, शशांक शेखर और अंत में आदर्शमुनि त्रिवेदी एसोसिएट की ओर से याचिकाएं दायर की गई थीं। वहीं राज्यपाल द्वारा अध्यादेश जारी कर पंचायत अधिनियम में किए गए संशोधन की संवैधानिक वैधता काे हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार राज्यपाल के समक्ष ऐसी कोई तात्कालिक आपात परिस्थितियां विद्यमान नहीं थीं जिसके कारण पूर्ववत आरक्षण की स्थिति को निरंतर किया गया है। दूसरी ओर चुनाव आयोग के द्वारा पूर्व के आरक्षण के आधार पर पंचायतों के निर्वाचन की प्रक्रिया प्रारंभ की गई है। याचिकाओं में यह भी आधार दिया गया है कि भारत के संविधान के 73वें संशोधन के पीछे निहित उद्देश्य यह था कि पंचायती राज निकायों में विभिन्न कमजोर वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व संभव हो सके और इसी कारण अनुच्छेद 243 दी में रोटेशन की व्यवस्था की गई है।
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आपको बता दें कि याचिकाकर्ता रोहिणी प्रसाद शर्मा सहित अन्य की ओर से अधिवक्ता आशीष त्रिवेदी, असीम त्रिवेदी, संजय कुमार शर्मा, जयंत पटेल, अपूर्व त्रिवेदी पैरव करेंगे। उन्होंने अवगत कराया कि याचिका में प्रश्न खड़ा किया गया है। उन्होंने कहा कि जब अध्यादेश जारी करने संबंधी आपातकालीन परिस्थितियां विद्यमान नहीं थीं तो अध्यादेश क्यों जारी किया गया। बिना नवीन आरक्षण पंचायतों के निर्वाचन की प्रक्रिया भी असंवैधानिक मानी जानी चाहिए।
इसी कड़ी में हाईकोर्ट ने भी अनुच्छेद 243 डी की व्याख्या करते हुए अपने एक फैसले में प्रतिपादित किया है कि रोटेशन का उद्देश्य है कि आरक्षण एक निर्वाचन क्षेत्र में स्थाई न बने और विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व बना रहे। पूर्व के निर्वाचन की आरक्षण की स्थिति पर निर्वाचन कराना संवैधानिक मंशा के विपरीत है।