लेखक संतोष उत्सुक द्वारा प्रेषित कविता बंदर मामा में दर्शाया गया है कि किस तरह बंदर नाना बनने की खुशी प्रकट कर रहा है।
नाना बन गया हूं अब मैं
खोंखों कर बोले बंदर मामा
नाना ही कहना सब मुझको
न कहना अब मुझको मामा
नहीं चढ़ सकता अब वृक्षों पर
दिन भर दुखी सा रहता हूं
कोई ला दे खाना बिस्तर पर
बस यही सोचता रहता हूं
आई बंदरिया घूंघट भी ओढ़े
बोली कुछ शर्म करो जी तुम
दिन भर पसरते हो निखट्टू
कुछ तो काम करो भी तुम
खाने को कुछ मिलता नहीं है
कोशिश तो मैं भी करता हूं
इंसानों ने सब उजाड़ा हमारा
बस अब तो उदास रहता हूं
-संतोष उत्सुक