By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Oct 22, 2019
नयी दिल्ली। माकपा के वरिष्ठ नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य के विभाजन को केन्द्र सरकार की बड़ी भूल करार देते हुये आगाह किया है कि राज्य में लोग इतिहास के सबसे भयावह दौर से गुजर रहे हैं और अगर हालात काबू में नहीं किए तो व्यापक पैमाने पर अशांति फैल सकती है।
जम्मू कश्मीर विधानसभा के पूर्व सदस्य तारिगामी ने मंगलवार को संवाददाताओं को बताया कि कश्मीर की मौजूदा स्थिति देश के भविष्य के लिये भी खतरा उत्पन्न कर सकती है। उच्चतम न्यायालय की अनुमति से इलाज के लिये दिल्ली लाये गये माकपा नेता ने कहा कि पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाये जाने के 80 दिन बाद भी राज्य में लोगों के संवैधानिक मूलभूत अधिकार बहाल नहीं हो पाये हैं। इससे जनाक्रोश उबाल पर है।
तारिगामी ने स्वयं अपना उदाहरण देते हुये बताया कि उन्हें कहीं भी आने जाने की छूट दिये जाने के उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद पिछले महीने दिल्ली एम्स से वापस श्रीनगर पहुंचने के तुरंत बाद ही नजरबंद कर दिया गया। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर के लोगों के बीच विश्वास बहाली को लेकर जो प्रयास किये जाने चाहिये थे, वे नहीं हुये, इससे लोगों में न सिर्फ घोर निराशा है बल्कि नाराजगी भी है, क्योंकि शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार और आवागमन जैसी बुनियादी सुविधायें बहाल करने के सरकार के दावे, सच्चाई से कोसों दूर हैं। जम्मू कश्मीर में हिंसा प्रभावित अनंतनाग जिले से तीन बार विधायक रहे तारिगामी ने कहा कि राज्य के लोगों का दिल्ली की हुकूमत से विश्वास उठ गया है।
इस दौरान माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि तारिगामी के इलाज से जुड़ीयाचिका के मामले में वह उच्चतम न्यायालय के समक्ष हलफनामा पेश कर अदालत के आदेश के बावजूद सरकार द्वारा तारिगामी को नजरबंद रखने की कार्रवाई से अवगत करायेंगे। जम्मू कश्मीर के बारे में प्रकाशित मीडिया रिपोर्टों को भी उन्होंने सच से दूर बताते हुये कहा कि कश्मीर में अखबार सरकारी गजट बन गये हैं। अखबारों में वही सब छप रहा है जो सरकार छपवा रही है। राज्य में राजनीतिक दलों की सक्रियता के सवाल पर तारिगामी ने कहा, ‘‘सिर्फ एक राजनीतिक दल को ही काम करने की आजादी है। अगर बाकी सभी दलों के नेताओं को हाथ जोड़ कर घर में ही बैठना है, तो यह तो सैन्य शासन में ही होता है। दरअसल कश्मीर में यही हो रहा है।’’
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इस स्थिति के समाधान के सवाल पर तारिगामी ने कहा, ‘‘सरकार को पांच अगस्त का फैसला वापस लेना ही पड़ेगा। कम से कम राज्य का विभाजन करना समस्या का समाधान नहीं है।’’ कश्मीरी पंडितों की वापसी के मुद्दे पर उन्होंने स्वीकार किया, ‘‘अतीत में कुछ गलतियां हुयी हैं, कुछ लोगों की भूल के कारण कश्मीरी पंडितों को भारी कष्ट उठाना पड़ा। हम उनकी घर वापसी चाहते हैं और जिस दिन उनकी इज्जत से कश्मीर वापसी होगी, वह दिन हमारे लिये दिवाली और ईद की तरह होगा।’’