By अनुराग गुप्ता | Nov 26, 2021
नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'संविधान दिवस' के मौके पर सियासत में बढ़ रहे परिवारवाद को लेकर निशाना साधा। जिस पर कांग्रेस ने पलटवार किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा कि संविधान का और महामहीम राष्ट्रपति जी का सम्मान करते हुए यह बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि विपक्षी दलों के नेताओं की संविधान दिवस के कार्यक्रम के आयोजन में शामिल न किया जाना, केवल एक औपचारिक निमंत्रण वो भी बैठने का समारोह के अंदर स्वीकार्य नहीं है। माननीय प्रधानमंत्री जी और भाजपा नेतृत्व की विपक्ष को लेकर की गई आलोचना सही नहीं है।
आवश्यक न होने पर अध्यादेश नहीं लाना चाहिए
उन्होंने कहा कि सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि किस तरह से देश का शासन और प्रशासन चल रहा है। कोई अवसर यह सरकार नहीं छोड़ती है जब संविधान और संविधान की परंपराओं को दबाकर निर्णय न लिए जाए। संसद के हर सत्र के आरंभ होने से पहले महत्वपूर्ण कानून अध्यादेश के माध्यम से बनते हैं। जब तक ऐसी परस्थितियां न हो और सरकार के लिए अनिवार्य हो संसद का सत्र से कुछ दिन पहले नया कानून का अध्यादेश लाना, वो नहीं किया जाना चाहिए। इसीलिए देश में कई विकट परिस्थितियां पैदा हुई हैं। सरकार ने जिस तरह से कानून बनाए, उससे समाज के अंदर उत्तेजना और टकराव की परिस्थितियां पैदा हुईं। जैसे किसानों से संबंधित कृषि कानून हो, हमने उन्हें समझाया था कि जल्दबाजी न करें, कानून बनाने की एक प्रक्रिया होती है। संसद की समितियां हैं। स्टेडिंग कमेटी हैं। उनको जब कोई बिल भेजा जाता है तो उसकी जांच परख होती है।
सरकार को बदलनी चाहिए अपनी कार्यशैली
आनंद शर्मा ने कहा कि सरकार ने तमाम प्रक्रियाओं को दरकिनार कर दिया। उसी वजह से किसानों का लंबा आंदोलन चला और 700 किसान शहीद हो गए। सरकार भी उसे वापस लेने के लिए मजबूर हुई। अगर सरकार ने विपक्ष की आवाज सुनी होती तो इतना बड़ा संकट और कष्ट देश ने देखा वो नहीं होता। हम सरकार से कोई मांग तो नहीं करते हैं लेकिन यह कहना चाहते हैं कि अभी भी समय है, अपनी कार्यशैली बदले। इस मानसिकता को बदले। सदन से पहले ही सरकार कोई न कोई कदम उठाती है जिससे तनाव बने और जिससे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषयों पर जो आवश्यक है, वो सहमति न बन पाए।
वहीं, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी सरकार पर निशाना साधा और पूछा कि आज़ादी के लिए क्या किया ? अंग्रेजी हुकूमत की मदद की थी जिससे आज़ाद हिंदुस्तान न बन पाए। आज उन्हीं के द्वारा अंबेडकर की बात सुनी जा रही है। यह भूत के मुंह से राम का नाम अच्छा नहीं लगता।