एमएसएमई सेक्टर का जीडीपी में एक तिहाई से ज्यादा योगदान है और 11 करोड़ लोगों को रोजगार देता है। यह क्षेत्र कम पूंजी लागत में अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराता है। देश में एमएसएमई सेक्टर 6 हजार से अधिक उत्पादों के उत्पादन के लिए जाना जाता है। अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए एमएसएमई सेक्टर का फलना फूलना आवश्यक है। देश में एमएसएमई उद्यमों की संख्या बहुत अधिक हैं। इस क्षेत्र में कुल 3.6 करोड़ इकाइयाँ शामिल हैं। इनमें से 96 प्रतिशत प्रोपराइटरी प्रकृति के हैं। असंगठित क्षेत्र की कुल 18 करोड़ की श्रमशक्ति में एमएसएमई की हिस्सेदारी 40 फीसदी है। देश में लगभग 6.34 लाख करोड़ गैर कृषि असंगठित एमएसएमई हैं। इनमें से 99 फीसदी सूक्ष्म, 3.3 लाख लघु और करीब 5 हजार मझौले आकार के उद्यम हैं। सरकार ने जिस प्रकार गरीबी दूर करने के लिए गरीबी रेखा को नीचे कर दिया था, ठीक उसी तरह एमएसएमई की परिभाषा में ही बदलाव करके सूक्ष्म और लघु इकाइयों के लिए बहुत बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। अब नई परिभाषा के अनुसार पंजीकृत कम्पनियाँ और शेयर बाजार में सूचीबद्ध करीब 70 फीसदी कम्पनियाँ एमएसएमई क्षेत्र में आ जायेंगी। इन बड़ी कंपनियों को एमएसएमई क्षेत्र के लिए घोषित सम्पूर्ण लाभ का फ़ायदा मिलेगा। एमएसएमई की नई परिभाषा के अनुसार सूक्ष्म इकाइयों के लिए निवेश सीमा को 25 लाख से बढ़ाकर 1 करोड़ रूपये और टर्नओवर सीमा को 5 करोड़ रूपये, लघु उद्यमों के लिए निवेश सीमा को 10 करोड़ रूपये और टर्नओवर 50 करोड़ रूपये, मध्यम उद्यमों के लिए निवेश सीमा 50 करोड़ रूपये और टर्नओवर सीमा 250 करोड़ रूपये कर दी गई हैं।
मोदी सरकार ने “आत्मनिर्भर भारत पैकेज” के माध्यम से एमएसएमई सेक्टर में जान फूंकने का प्रयास किया है। सरकार ने एमएसएमई सेक्टर के उद्यमों को 3 लाख करोड़ रूपये मूल्य का ऋण बिना गारंटी देने की घोषणा की है। इसके अतिरिक्त जो एमएसएमई काफी दबाव में हैं और जिनके ऋण खाते बैंक में एनपीए हैं उनको अतिरिक्त ऋण उपलब्ध करवाने के लिए सरकार ने 20 हजार करोड़ रूपये के गारंटी कवर की योजना की घोषणा की है। परन्तु इसका लाभ बड़ी कंपनियों को ही मिलेगा, सूक्ष्म और लघु इकाइयाँ इसका फ़ायदा नहीं उठा पाएंगी क्योंकि वे असंगठित क्षेत्र में हैं। सरकार ने अभी तक इस सेक्टर की असली समस्या को समझा ही नहीं है। इस सेक्टर में कार्यशील पूंजी की कमी, नोटबंदी, वस्तु एवं सेवा कर, घरेलु और वैश्विक प्रतिस्पर्धा, समय पर भुगतान नहीं मिलना इत्यादि समस्याएँ हैं। केंद्र और राज्य सरकार के सरकारी विभाग इन छोटे उद्यमों के भुगतान में आनाकानी करते हैं। सरकारी विभागों पर सूक्ष्म और लघु उद्योगों की 11 हजार करोड़ रूपये से भी अधिक की राशि बकाया है।
घरेलु उद्योगों को सरकार के संरक्षण की जरूरत थी। सरकार की नीतियों में दूरदर्शिता का अभाव रहा है। छोटे और मझौले स्तर के कारोबार को सरकार के प्रोत्साहन और राहत की खुराक की आवश्यकता थी जो उन्हें मिलनी चाहिए थी, लेकिन इनके प्रति सरकार के असहायक रवैये के कारण छोटे और मध्यम स्तर के उद्योग अपनी तमाम क्षमताओं के बावजूद भी प्रगति नहीं कर सके हैं। सरकार की नीतियों (विदेश व्यापार नीति, आयात-निर्यात नीति, औद्योगिक नीति, कराधान नीति, कर्जमाफी, सब्सिडी में कटौती इत्यादि) के कारण देश में कुटीर उद्योग और लघु उद्योग दम तोड़ चुके हैं। कॉर्पोरेट जगत और एसएमई सेक्टर के अनुसार हमारे देश में कारोबार की लागत अधिक है। सरकार ने लागत का गहरा विश्लेषण करवाकर इस समस्या की जड़ों तक पहुँचकर उन बाधाओं को हटाना होगा तब ही देश में कारोबारी माहौल बनेगा। इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा।
एमएसएमई में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नए उद्योगों के प्रस्ताव को 3 महीने में मंजूरी देने के लिए एक पैनल बन रहा है। इस पैनल में एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को नियुक्त नियुक्त किया जा चुका है। नीति आयोग छोटे और मझोले उद्यमों (एसएमई) को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स से जोड़ने और भारतीय एसएमई के उत्पादों की एक ऑनलाइन रिपोजिटरी बनाने की योजना पर काम कर रहा है। कुटीर उद्योग, हथकरघा उद्योग और छोटे उद्योगों को अधिक प्रोत्साहन की जरूरत है। एमएसएमई क्षेत्र के छोटे खुदरा विक्रेता, व्यापार, दुकानदारों को ऑडिट से छूट की टर्नओवर सीमा 1 करोड़ रूपये से बढ़ाकर 5 करोड़ रूपये की गई है। एमएसएमई को देरी से होने वाले पेमेंट रोकने के लिए एप बेस्ड इनवॉयस की व्यवस्था होगी। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुसार औद्योगिकरण का चेहरा भी बदलेगा। उनके मतानुसार अब सरकार कृषि आधारित उद्योगों को भी बढ़ावा देगी। सरकार कृषि क्षेत्र पर केंद्रित एमएसएमई नीति पर काम कर रही है। कृषि आधारित उद्योग स्टार्ट अप की तर्ज़ पर शुरू होंगे, जिससे ग्रामीणों को गाँव में ही रोजगार उपलब्ध हो जायेंगे और उनका शहरों की ओर पलायन भी रूक जायेगा। प्रधानमंत्री ने सप्लाई चेन को दुरुस्त करने और देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 12 मई, 2020 को 20 लाख 97 हजार 532 करोड़ रूपये की आर्थिक पैकेज की घोषणा की। सरकार को कोष जुटाने के लिए कोविड-19 बचत पत्र योजना लानी चाहिए। वैसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छी खबर है कि लॉकडाउन के दौरान देश के विदेशी मुद्रा भंडार में बहुत बड़ी बढ़त देखने को मिली है। कच्चे तेल के दाम तेजी से घटे हैं, इसमें सरकार को विदेशी मुद्रा की काफी बचत हुई है और वित्तीय घाटा पूरा करने में मदद मिल रही है। इस बचत का लाभ जीएसटी दरों में कटौती के रूप में उद्योगों और उपभोक्ताओं को दिया जाना चाहिए, जिससे मांग में वृद्धि होगी। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को वित्तीय, नियामकीय और सरकारी समर्थन की जरूरत है। अभी बैंक बढ़ते हुए एनपीए की वजह से लघु, छोटे उद्योगों और एनबीएफसी को ऋण देने में पीछे हट रही हैं। सरकार इन उद्योगों को बैंक लोन के लिए 100 फीसदी गारंटी दे रही है। कुछ एमएसएमई एनबीएफसी से कर्ज लेते हैं और इन एनबीएफसी को बैंक कर्ज देती हैं।
देश में कृषि आधारित उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं के बराबर है। सरकार को सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय फसल को ध्यान में रखते हुए कृषि आधारित ऐसे उद्योगों की स्थापना करनी होगी जिसमें किसानों की फसलों की खपत हो सके जैसे फ्लोर मिल, तेल मिल, राइस मिल, कॉटन मिल एवं छोटे कुटीर उद्योग जैसे टमाटर सॉस, जैम, पापड़, मोमबत्ती, अगरबत्ती, चिप्स, सिवईयां, अचार-मुरब्बा इत्यादि और इन उद्योगों में स्थानीय ग्रामीण युवाओं को रोज़गार भी देना होगा। इससे एक तरफ़ किसानों को उनकी फसल के उचित दाम भी मिल जाएँगे और कृषि आधारित उद्योगों में उनके युवा बच्चों को रोज़गार भी उपलब्ध हो जाएँगे। इन ग्रामीण उद्योगों में जो अंतिम उत्पाद तैयार होंगे उनकी विपणन की सारी व्यवस्था भी इन ग्रामीण युवाओं के हाथों में ही देने से किसानों की आर्थिक हालत में सुधार हो पाएगा जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिल पाएगी। राष्ट्रीय कृषि बाजार के निर्माण की दिशा में सरकार द्वारा सार्थक पहल की जानी चाहिए।
देश में नवाचार को बढ़ावा नहीं मिल रहा है। सरकारी अधिकारी अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों और तकनीकविदों से सलाह-मशविरा नहीं करते हैं। सरकार को देश में अर्थशास्त्रियों और आर्थिक, बैंकिंग पेशेवरों की फौज तैयार करनी होगी तभी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत बेहतर हो पाएगी। एक नया कारोबार या नया स्टार्टअप शुरू करने के मामले में आवश्यक परमिटों एवं निबंधनों की एक लम्बी-चौड़ी सूची से पाला पड़ता है और उस सूची का अनुपालन एक जटिल और बोझिल प्रक्रिया है। मोदी सरकार ने बड़े जोर-शोर से स्टार्टअप इंडिया शुरू किया लेकिन स्टार्टअप इंडिया का लाभ सिर्फ 18 फीसदी स्टार्टअप्स को ही मिल रहा है। नौकरशाही की वजह से नए उद्यमी परेशान हैं। यह कहना सरासर गलत है कि बेरोजगार युवाओं में कौशल और तकनीकी गुणवत्ता की कमी है। रिजर्व बैंक ने एमएसएमई सेक्टर को गति देने के लिए ब्याज दरों में और कमी करनी होगी। आर्थिक वृद्धि और निवेश में तेजी लाने के लिए सरकार द्वारा छोटे उद्योगों को मौद्रिक प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए विचार करना होगा और साथ ही देश में उचित और पारदर्शी व्यावसायिक परिवेश का निर्माण करना होगा। व्यावसायिक परिवेश में सुधार के लिए सरकार द्वारा प्रभावी नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है जैसे भूमि अधिग्रहण कानूनों में सुधार, प्राकृतिक संसाधनों के आबंटन में निष्पक्षता, कर्ज़ की लागत को कम करना, विदेशी विनिमय दर में स्थिरता, मुद्रास्फीति को निम्नस्तर पर रखना, व्यापार घाटे पर नियंत्रण, सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों का संवर्धन, टैक्सेशन और औद्योगिक नीतियों का सरलीकरण, मुद्दों को तय सीमा में निपटाना, राज्य सरकारों के साथ बेहतर समन्वय। मनरेगा को एमएसएमई सेक्टर से जोड़ा जाना चाहिए। इस क्षेत्र की सारी समस्याओं के निस्तारण के लिए एकल खिड़की व्यवस्था होनी चाहिए। छोटे और मझले उद्योगों को बढ़ावा देने से रोजगार सृजन में बढ़ोतरी और देश में समावेशी विकास संभव है।
-दीपक गिरकर
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)