By नीरज कुमार दुबे | Apr 01, 2019
भारत ने अंतरिक्ष में एंटी-सैटेलाइट मिसाइल से एक ‘लाइव’ सैटेलाइट को मार गिराकर अपना नाम अंतरिक्ष महाशक्ति के तौर पर दर्ज करा लिया है और भारत ऐसी क्षमता हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। ‘मिशन शक्ति’ अभियान की सफलता के बाद भारत के वैश्विक अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में स्थापित हो जाने की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘‘हमारे वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में 300 किमी दूर पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) में एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराया है। यह लाइव सैटेलाइट एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था, जिसे एंटी-सैटेलाइट मिसाइल द्वारा मार गिराया गया। यह अभियान तीन मिनट में सफलतापूर्वक पूरा किया गया।’’
देखा जाये तो भारत अंतरिक्ष में निचली कक्षा में लाइव सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता रखने वाला चौथा देश बन गया है। अब तक यह क्षमता अमेरिका, रूस और चीन के ही पास थी। आइये जानते हैं भारत ने जो यह नयी क्षमता हासिल की है इसके मायने क्या हैं।
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सबसे पहले समझते हैं क्या होता है लो अर्थ ऑर्बिट (LEO)
लो अर्थ ऑर्बिट धरती के सबसे पास वाली कक्षा होती है। यह धरती से 2000 किमी ऊपर होती है। धरती की इस कक्षा में ज्यादातर टेलीकम्युनिकेशन सेटेलाइट्स को रखा जाता है।
अब समझते हैं भारत के लिए मिशन शक्ति का महत्व क्या है ?
मिशन शक्ति का उद्देश्य अंतरिक्ष में देश की संपदा को सुरक्षित रखना है। भारत को विज्ञान के मामले में लगभग आत्मनिर्भर बनाने वाले हमारे देश के कुशल वैज्ञानिकों ने इसके लिए जीतोड़ मेहनत की। आपको याद होगा कि अग्नि 5 मिसाइल के सफल परीक्षण के समय ही कई विशेषज्ञों ने यह संभावना जताई थी कि भारत के पास अंतरिक्ष में मार करने की क्षमता है। लेकिन, उस समय आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं की गई थी। हम आपको याद दिलाना चाहेंगे साल 2007 का वह वाकया जब चीन ने अपने एक खराब पड़े मौसम उपग्रह को मार गिराया था तब भारत की चिंता बढ़ गई थी। उस समय इसरो और डीआरडीओ ने संयुक्त रूप से ऐसी एक मिसाइल को विकसित करने की दिशा में अपने प्रयास तेज कर दिए थे जो अंतरिक्ष में सैटेलाइट यानि उपग्रह को मार गिराने की क्षमता रखती हो। मिशन शक्ति भारत की उपग्रह भेदी मिसाइल परीक्षण जैसी महत्वपूर्ण तकनीक विकसित करने में देश की बढ़ती क्षमताओं को दर्शाता है और यह कवच के तौर पर काम करेगा। परीक्षण के लिए उपयोग की गई तकनीक पूरी तरह स्वदेश में विकसित है और यह हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है। यकीनन इस परीक्षण से बाहरी अंतरिक्ष में अपने संसाधनों की रक्षा करने की भारत की क्षमता का पता चलता है।
कैसे चला मिशन ?
डीआरडीओ के अध्यक्ष जी. सतीश रेड्डी ने भी बताया है कि इस परियोजना के लिए मंजूरी करीब दो वर्ष पहले दी गई थी। देखा जाये तो इस परियोजना को काफी तेजी से लागू किया गया और इस तरह के कार्यक्रम को लागू करने में यह डीआरडीओ की क्षमता को भी दर्शाता है। मिशन शक्ति परीक्षण के दौरान एक बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) इंटरसेप्टर मिसाइल ने सफलतापूर्वक लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) में भारतीय उपग्रह को ‘हिट टू किल’ मोड में निशाना बना लिया। इंटरसेप्टर मिसाइल तीन चरणों का मिसाइल था जिसमें दो ठोस रॉकेट बूस्टर थे। रेंज सेंसर से निगरानी में पुष्टि हुई कि मिशन ने अपना उद्देश्य पूरा कर लिया।’’ ‘मिशन शक्ति’ अभियान के तहत परीक्षण ओडिशा में डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया। वाकई भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि है क्योंकि इससे देश अंतरिक्ष शक्तियों के चुनिंदा समूह में शामिल हो गया है।
राजनीतिक विवाद क्यों ?
विशेषज्ञों और पूर्व वैज्ञानिकों ने कहा है कि ऐसा परीक्षण करने के लिए भारत 2012 में ही जरूरी क्षमता से लैस था, लेकिन तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने इसकी मंजूरी नहीं दी थी जिसको लेकर नया विवाद भी खड़ा हो गया है। डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख वीके सारस्वत के मुताबिक, भारत के पास इस परीक्षण के लिए 2012-13 में ही क्षमता थी, लेकिन कोई राजनीतिक मंजूरी नहीं दी गई थी। इसरो के पूर्व अध्यक्ष और अब भाजपा में शामिल हो चुके जी माधवन नायर ने कहा कि भारत के पास एंटी-सैटेलाइट मिसाइल क्षमता एक दशक पहले से थी, लेकिन उस वक्त इसे प्रदर्शित करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव था। गौरतलब है कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए 2004 से 2014 तक सत्ता में थी। विशेषज्ञों के इस बयान के बाद भाजपा ने सत्ता में होने के दौरान एंटी-सैटेलाइट मिसाइल क्षमता प्रदर्शित नहीं करने को लेकर यूपीए पर निशाना भी साधा है। परीक्षण के समय को लेकर उठायी गई आपत्तियों के संदर्भ में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि विपक्ष ‘लिपिकीय आपत्तियां’’ दर्ज करा रहा है और उसे राष्ट्रीय सुरक्षा की कोई चिंता नहीं है।
मिशन शक्ति के अंतरराष्ट्रीय मायने क्या हैं ?
चीन की बात करें तो यह माना जाता है कि दक्षिणी चीन सागर में बढ़ते अमेरिकी प्रभाव और अपनी सामरिक क्षमता की वृद्धि के लिए चीन ने वर्ष 2007 में यह क्षमता हासिल की थी। चूँकि अमेरिका का अधिकतर संचार कार्य उपग्रह के माध्यम से ही होता है तो चीन ने यह सोचा था कि स्थिति विकट होने पर अमेरिकी उपग्रहों को निशाना बनाकर उसे युद्ध में हराया जा सकता है। अब जब भारत ने यह परीक्षण कर लिया है तो हमारी सरकार ने साफ कर दिया है कि शांति एवं सुरक्षा का माहौल बनाने के लिए एक मजबूत भारत का निर्माण जरूरी है और हमारा उद्देश्य शांति का माहौल बनाना है, न कि युद्ध का माहौल बनाना। भारतीय विदेश मंत्रालय ने 10 बिंदुओं के जरिए स्पष्ट किया कि भारत ने अंतरिक्ष में अपने साजो-सामान की सुरक्षा करने की काबिलियत परखने की खातिर एंटी-सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण किया और यह किसी देश को निशाना बनाकर नहीं किया गया। मंत्रालय ने कहा कि यह परीक्षण निचले वायुमंडल में किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतरिक्ष में मलबा इकट्ठा नहीं हो। जो भी मलबा पैदा होगा वह कुछ ही हफ्तों में क्षरित होकर धरती पर गिर पड़ेगा।
इससे पहले, प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि इससे किसी अंतरराष्ट्रीय कानून या संधि का उल्लंघन नहीं हुआ है। भारत हमेशा से अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ के विरूद्ध रहा है और इससे (उपग्रह मार गिराने से) देश की इस नीति में कोई परिवर्तन नहीं आया है।
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उधर, चीन ने भारत के उपग्रह रोधी मिसाइल परीक्षण पर सतर्कतापूर्वक प्रतिक्रिया जताते हुए उम्मीद जतायी कि सभी देश बाहरी अंतरिक्ष में शांति बनाये रखेंगे। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘हमने खबरें देखी हैं और उम्मीद करते हैं कि प्रत्येक देश बाहरी अंतरिक्ष में शांति बनाये रखेंगे।’’ इस बीच अमेरिका ने कहा है कि वह अंतरिक्ष एवं तकनीकी सहयोग में नयी दिल्ली के साथ अपने साझा हितों के लिए काम करता रहेगा, हालांकि उसने अंतरिक्ष में मलबे के मुद्दे पर चिंता व्यक्त की।
पाकिस्तान की बात करें तो उसे अब यह खतरा सताएगा कि यदि भारत के साथ स्थिति कभी तनावपूर्ण होती है और युद्ध जैसी स्थिति बनती है तो जमीन पर लड़ाई बाद में होगी भारत पहले अंतरिक्ष में पाकिस्तानी उपग्रह को निशाना बनाएगा ताकि उसका संचार नेटवर्क ठप हो सके। ऐसा ही खतरा अब चीन को भी हो गया है। इसीलिए कहा जा सकता है कि भारत ने जमीन पर और फिर हवा में सर्जिकल स्ट्राइक करने के बाद अंतरिक्ष में स्ट्राइक कर दी है।
अब यह अंतरिक्ष का मलबा क्या होता है यह आपको समझाते हैं
2018 में UNIDIR ने ASATपरीक्षण के लिए तीन दिशानिर्देश प्रस्तावित किये थे। इसमें यह भी शामिल था कि यदि कोई ASAT परीक्षण करना चाहता है तो कोई मलबा नहीं बनना चाहिए। यदि कोई मलबा बनता है कि उसे एक ऐसी कम ऊंचाई पर लाया जाए ताकि मलबा बहुत अधिक समय तक अस्तित्व में नहीं रहे। इसमें यह भी सुझाव है कि परीक्षण करने वाले को अन्य को अपनी गतिविधि के बारे में सूचित करना चाहिए। हालांकि दिशानिर्देशों पर अंतरिक्ष के क्षेत्र में सक्रिय देशों के बीच आम सहमति नहीं है।
-नीरज कुमार दुबे