By अनन्या मिश्रा | Nov 08, 2024
देवी भागवत पुराण में 108 तंत्र चूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है। लेकिन सामान्य तौर पर 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं। जहां-जहां पर देवी सती के अंग गिरे थे, वहां-वहां पर शक्तिपीठ बन गए। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको कन्याकुमारी शक्तिपीठ के बारे में बताने जा रहे हैं। यह शक्तिपीठ तमिलनाडु के कन्याकुमारी केप पर स्थित है।
यह देवी कन्याकुमारी का प्रमुख मंदिर है। इसको कुमारी अम्मन के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि देवी सती की रीढ़ की हड्डी यहां गिरी थी। कन्याकुमारी शक्तिपीठ में भगवती देवी की पूजा की जाती है। दुनियाभर में इस मंदिर को कन्या कुमारी, कन्या देवी और भद्रकाली के नामों से जाना जाता है।
हजारों साल पुराना है कन्याकुमारी शक्तिपीठ
बता दें कि कन्याकुमारी शक्तिपीठ के मंदिर का इतिहास करीब 3,000 साल पुराना है। इस मंदिर परिसर में कई और भी मंदिर हैं, जो भगवान गणेश, भगवान सूर्यदेव, भगवान अयप्पा, देवी बाला सुंदरी और देवी विजया सुंदरी को समर्पित हैं। मंदिर का मुख्य प्रवेश उत्तरी द्वार से होता है। वहीं मंदिर का पूर्वी द्वार अधिकतर बंद रहता है। पूर्वी द्वार सिर्फ विशेष अवसरों पर ही खुलता है।
अद्भुत है प्राकृतिक सौंदर्य
कन्याकुमारी शक्तिपीठ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए काफी ज्यादा फेमस है। वहीं मंदिर की बनावट आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। यहां पर तीन समुद्रों का संगल भी होता है। मंदिर के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तो दक्षिण में हिंद महासागर है। वहीं पश्चिम में अरब सागर आकर मिलता है। यह स्थान आपको एक अलग शांति का एहसास कराएगा। समुद्र में होने वाले सूर्योदय और सूर्यास्त को भी आप मंदिर से देख सकते हैं। समुद्र के इस संगम की वजह से यह जगह एक प्रमुख तीर्थ स्थल भी है।
कन्या देवी के रूप में मां पार्वती ने लिया जन्म
पौराणिक कथा के मुताबिक बाणासुर नामक राक्षस को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त था। असुर का अंत सिर्फ एक कुंवारी कन्या ही कर सकती है। इस वरदान को पाकर बाणासुर सभी देवताओं को परेशान करने लगा था। असुर से परेशान होकर देवताओं ने मां भगवती से प्रार्थना की थी। तब मां भगवती ने कुंवारी कन्या का रूप धारण कर लिया। मां पार्वती ने राजा भरत के घर कन्या के रूप में जन्म लिया। जब कन्या बड़ी हुई तो वह भगवान शिव के अलावा किसी अन्य से विवाह नहीं करना चाहती थी। तब राजा भरत ने अपनी पुत्री को राज्य के दक्षिण में रहने के लिए स्थान दिया। यहीं पर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या करने लगी। वहीं एक दिन बाणासुर घूमते हुए कन्यारूपी देवी भगवती के पास पहुंच गया।
बाणासुर का अंत
बता दें कि बाणासुर कन्या की सुंदरता पर मुग्ध होकर उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। तब कन्या ने राक्षस से युद्ध में बाणासुर के जीतने की शर्त रखी। कन्या ने कहा कि यदि वह युद्ध में उनसे जीत जाते हैं, तो वह विवाह कर लेंगी। इसके बाद कन्या और बाणासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में कन्यारूपी देवी भगवती ने बाणासुर का अंत दे। बाणासुर की मृत्यु के बाद कन्या ने विवाह न करने और कुंवारी रहने का फैसला लिया। वहीं देवर्षि नारद और भगवान परशुराम ने देवी से कलियुग के अंत तक पृथ्वी पर रहने का अनुरोध किया। फिर परशुराम ने समुद्र के किनारे कन्याकुमारी शक्तिपीठ मंदिर का निर्माण किया और इस मंदिर में देवी कन्याकुमारी की मूर्ति स्थापित की।
मंदिर की मान्यता और रहस्य
मंदिर के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव और कन्या के विवाह के लिए जितना भी अनाज एकत्र किया गया था, वह बाद में कंकड़ बन गा। इस पत्थर को आज भी कन्याकुमारी में देखा जा सकता है और आप इसको खरीद भी सकते हैं। आपको कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल के आकार के कंकड़ देखने को मिलेंगे।
कन्याकुमारी शक्तिपीठ में स्थापित कुमारी अम्मन की मूर्ति काले पत्थर की बनी है। मंदिर के अंदर 11 तीर्थ स्थल हैं। वहीं मंदिर परिसर में तीन गर्भ गृह गलियारे और मुख्य नवरात्रि मंडप है। लेकिन इन सभी को ध्यान से देख पाना और समझ पाना इतना आसान नहीं है। इस मंदिर की बनावट भूलभुलैया जैसी लगती है। मंदिर परिसर में मूल गंगठीर्थम नामक कुआं है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांड्या सम्राटों द्वारा 8वीं शताब्दी में किया गया था।