By दिनेश शुक्ल | Apr 24, 2020
मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के 29 वें दिन गठिन हुए शिवराज मंत्रिमंडल को लेकर सियासी गलियारों में सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इस मंत्रिमंडल पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने अपने राजनीतिक धर्म का पालन करते हुए पहले ही दिन तंज कस दिया था। कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और मीडिया प्रभारी जीतू पटवारी ने भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने पर तंज कसते हुए कहा कि, पंडित गोपाल भार्गव की वरिष्ठता और उनकी अयोग्यता इतनी बड़ी थी कि उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। कांग्रेस के पास मौका भी है और दस्तूर भी, क्योंकि उनकी ही पार्टी से बगावत कर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों का इस मंत्रिमंडल में दबदवा है। तीन-दो के समीकरण के साथ शिवराज मंत्रिमंडल में शामिल किए गए सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत के जरिए सियासी समीकरण भी साधने के प्रयास बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व ने किए है।
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कांग्रेस इसे सिंधिया के दवाब की राजनीति बता रही है। तो दूसरी ओर मंत्रिमंडल गठन के बाद सियासी गलियारों से जो खबरें निकलकर बाहर आ रही है वह यह कह रही है कि गोपाल भार्गव जैसे वरिष्ठ नेता को मंत्रिमंडल में शामिल न करके पार्टी के संकटमोचन कहे जाने वाले नरोत्तम मिश्रा को साधने के प्रयास किए गए है। दरआसल शिवराज सिंह चौहान जैसे चतुर राजनीतिज्ञ यह भली भांति जानते है कि नरोत्तम मिश्रा का पार्टी में जिस तरह से पिछले दिनों में कद बढ़ा है। उससे उन्हें आने वाले दिनों में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। यही वजह रही कि उन्होनें केन्द्रीय नेतृत्व के सामने मंत्रिमंडल में ब्राह्मण नेता के नाम पर पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव का नाम आगे किया था। जैसे उन्होनें एक साल पहले प्रदेश में सरकार न बन पाने के बाद नेता प्रतिपक्ष को लेकर नरोत्तम मिश्रा का पत्ता काटने हुए गोपाल भार्गव के नाम का प्रस्ताव किया था। बाकी जो हुआ वह सबने देखा कि किस तरह गोपाल भार्गव सिर्फ नाम के नेता प्रतिपक्ष बने रहे, बाकी सब शिवराज ने संभाला। राजनीतिक सूत्र बताते है कि जैसे ही इस बाद की भनक नरोत्तम मिश्रा को लगी तो उन्होनें केन्द्रीय नेतृत्व के सामने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए दवाब बनाना शुरू कर दिया। जिसके लिए उन्होनें सिंधिया का भी सहारा लिया और मंत्रिमंडल में अपनी जगह सुनिश्चित ही नहीं की बल्कि गृह और स्वास्थ्य जैसे अहम विभाग पाने में सफल भी रहे।
नरोत्तम मिश्रा के सामने इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दाव नहीं चल पाया और एक तीर से दो शिकार का मामला इस बार फैल हो गया। वही सिंधिया अपने सभी छह समर्थक पूर्व मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने का दवाब बनाते रहे। लेकिन भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने कोरोना संकट के इस दौर में छोटा मंत्रिमंडल बनाने का फार्मूला दिया। जिसमें हर वर्ग और हर क्षेत्र को प्रतिनिधित्व देने की अपनी मंशा के चलते शिवराज सरकार के लिए पांच मंत्रियों के साथ प्रदेश की सत्ता चलाने का निर्णय हुआ। चूंकि मध्य प्रदेश में भाजपा ने 15 महीने पहले 15 साल की सत्ता को अपने हाथों से जाते हुए देखा था, यही कारण है कि उन्होनें संगठन स्तर पर बीडी शर्मा जैसे कुशल संगठक को प्रदेश की कमान सौंपी। उसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की खेमों में बंटी सरकार को गिराने का निर्णय किया गया। एक मोर्चे पर प्रदेश में कांग्रेस सरकार के तख्तापलट की कावयत चल रही थी तो दूसरी ओर एक कुशल नेतृत्व की तरह बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अपने व्यवहार से सभी समीकरणों को अपनी पैनी नज़र से धार देते दिख रहे थे। इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बीजेपी की तरफ से एक परिवक्व संगठक की तरह पार्टी को दिशा देते बीडी शर्मा दिखे।
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अगले मंत्रिमंडल विस्तार में अगर गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, गौरीशंकर बिसेन, विजय शाह, यशोधरा राजे सिंधिया, राजेंद्र शुक्ला और रामपाल सिंह जैसे पुराने और वरिष्ठ भाजपा नेताओं के चेहरे न देखे और इनकी जगह बदले-बदले से चेहरे नज़र आए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। क्योंकि इसकी शुरूआत नवगठित मंत्रिमंडल से हो गई है। जहां एक तरफ कैलाश विजयवर्गीय समर्थक कमल पटेल है तो दूसरी तरफ बीडी शर्मा समर्थक मीना सिंह तो सिंधिया के खेमे से बुंदेलखंड और मालवांचल से उनके लिए पूर्ण समर्पित, उनके समर्थक कांग्रेस के बागी नेता तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत। मंत्री पद की शपथ लेने के बाद सिंधिया समर्थक गोविंद सिंह राजपूत ने कहा कि वह पांच पांडवों की तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में काम करेगें। लेकिन इससे इतर भारतीय जनता पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कंट्रोल करने की कवायत में लग गया है। बताया जा रहा है कि कोरोना संकट की वजह से मजबूरी में मुख्यमंत्री बनाए गए शिवराज सिंह चौहान को इन पांचों मंत्रियों के जरिए कंट्रोल करने के लिए दिल्ली ने नया फर्मूला दिया है। जिसके तहत पांच मंत्रियों का ये मंत्रिमंडल गठन किया गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहते है कि कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे सभी छह उनके समर्थक चुनाव में जाने से पहले मंत्री बना दिए जाए ताकि चुनाव में वह एक मंत्री के तौर पर जनता के बीच जाए यह नहीं कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए बिसाहूलाल सिंह और राज्यवर्धन सिंह दंतीगांव भी मंत्री पद की चाह रखे हुए है।
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लेकिन इस बीच कांग्रेस ने भी अपने राजनीति पांसे फैंक दिए है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा यह खूब प्रचारित करवाया गया कि 15 अगस्त को ध्वजा रोहण तो कमलनाथ ही करेंगे यानि एक बार फिर मध्य प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस के लौटने की बात की गई है। इस दौरान कोरोना संकट के दौर में जिस तरह प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता सम्हालते ही किसान फसल बीमा, मजदूरों के खाते में एक-एक हजार रूपए की राशि डालने, अपनी पुरानी सरकार की संबल योजना को और सुदृढ़ बनाते हुए फिर से लागू करना आगामी उपचुनाव में मजबूती के साथ जाने की योजना की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है। हालंकि बता दें कि मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की संख्या के लिहाज से मंत्रिमंडल में अधिकतम 15 प्रतिशत यानी 35 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें मुख्यमंत्री भी शामिल है। शिवराज मंत्रिमंडल में फिलहाल 5 लोगों को जगह दी गई है, खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मिलाकर मंत्रिमंडल में छह मंत्री अब शामिल हैं। वही शिवराज मंत्रिमंडल में अभी भी 29 जगह हैं, ऐसा माना जा रहा है कि बाद में बीजेपी के दिग्गज नेताओं को जगह दी जा सकती है। इसके अलावा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले कुछ नेताओं को भी मंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन जिन पंडित गोपाल भार्गव को मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने को लेकर कांग्रेस सवाल खड़े कर रही है, अब उनको विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने की खबरें मध्य प्रदेश की राजनीति में शुरू हो गई है। अगर भाजपा नेतृत्व पुराने चेहरों और शिवराज समर्थक भूपेन्द्र सिंह और रामपाल सिंह जैसे नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह नहीं देती तो गोपाल भार्गव को विधानसभा अध्यक्ष के पद से ही संतुष्ट होना पड़ सकता है। लेकिन शिवराज सरकार का अगला मंत्रिमंडल विस्तार 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले आगमी उपचुनाव को ध्यान में रखकर किया जाएगा इसमें कोई दोहराह नहीं है। लेकिन सत्ता के सह और मात के खेल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दोनों मोर्चों यानि अपनी पार्टी स्तर और कांग्रेस से आगामी दिनों में डटकर मुकाबला करना है। अगर इन दोनों मोर्चों पर शिवराज सिंह चौहान सफल होते है तो एक बार फिर एक अजेय योद्धा के रूप में उनके राजनीतिक जीवन को संजीवनी मिलेगी और पार्टी उनके कौशल का लोहा मानने को विवश हो जाएगें नहीं तो भारतीय जनता पार्टी की परंपरा के अनुसार चाल, चरित्र और चेहरे का उन्हें अनुसरण करना पड़ेगा।
- दिनेश शुक्ल