दिलों के सुकून देने वाले प्रसिद्ध गजल गायक मेहदी हसन साहब का 13 जून, 2012 को पाकिस्तान के कराची शहर में निधन हो गया था। उन्होंने अपनी गजलों के जरिए बहुतों के दिलों में राज किया है और आज भी उनकी गजलों को खूब सराहा जाता है। मेहदी हसन ने अपने जीवनकाल में तकरीबन 50,000 से ज्यादा गजलों को अपनी आवाज दी। इसके अलावा उन्होंने 300 फिल्मों में भी अपनी आवाज दी है।
संगीतकारों के परिवार में हुआ था जन्म
मेहदी हसन का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले में 18 जुलाई, 1927 को संगीतकारों के परिवार में हुआ था। उन्हें अपने पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा उस्ताद ईस्माइल खान से संगीत की शुरुआती शिक्षा मिली। पिता और चाचा ने मेहदी हसन की प्रतिभा को तरासने का काम किया था। जिसकी बदौलत उन्होंने कम उम्र में ही अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेरना शुरू कर दिया था।
बंटवारे के बाद PAK चला गया परिवार
भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद साल 1947 में मेहदी हसन का परिवार पाकिस्तान चला गया था। जहां पर उन्होंने जीवनयापन करने के लिए कुछ दिनों तक साइकिल की दुकान पर और फिर मोटर मैकेनिक का काम किया था। उस वक्त उनके पिता के पास महज 10,000 रुपए थे, जिसके दम पर पूरे परिवार को पालन-पोषण करना था। हालांकि अनुकूल परिस्थितियां नहीं होने के बावजूद मेहदी हसन का संगीत के प्रति मोहभंग नहीं हुआ। बल्कि उनका लगाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही रहा।
साल 1957 में मिली थी पहचान
50 के दशक में एक से बढ़कर एक गायकों का डंका बोलता था। ऐसे में मेहदी हसन के लिए अपनी पहचान बना पाना आसान नहीं था फिर भी उन्होंने अपने हौसले को कम नहीं होने दिया। मेहदी हसन को साल 1957 में पाकिस्तान के एक रेडियो में गाने का मौका मिला। जिसकी बदौलत उन्हें ठुमरी गायक के तौर पर पहचान मिली और समय के साथ-साथ उनका मुकदर भी चमका और गायकी की दुनिया के बेताज बादशाह बन गए।
जब गायकी से हुए थे दूर
उर्दू के शौकीन रहे मेहदी हसन ने गजल गायकी के प्रोग्राम शुरू किया। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी गायकी में शेरों को भी खूब जगह दी। जिसमें 'ज़रूर उसके तसव्वुर की राहत होगी नशे में था तो मैं अपने ही घर गया कैसे', 'देख तो दिल कि जां से उठता है ये धुआं सा कहां से उठता है', 'रफ़्ता रफ़्ता वो हमारे दिल के अरमां हो गए पहले जां फिर जान-ए-जां फिर जान-ए-जानां हो गए' इत्यादि।
मेहदी हसन की गजलों में 'रंजिश ही सही', 'अबकी हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें', 'बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसे तो ना थी' इत्यादि शामिल है। इन गजलों को सुने बिना शायद ही कोई अपने आप को रोक पाता हो। हालांकि 1999 में उन्होंने गायकी से दूरियां बना ली थी। 1957 से 1999 तक मेहदी हसन ने खूब नाम कमाया था लेकिन गले में कैंसर की वजह से उन्होंने गायकी छोड़ दी थी। हालांकि साल 2010 में उनका आखिरी एलबम रिलीज हुआ था, जिसमें लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी।
- अनुराग गुप्ता