अपने आप में यह एक अपवाद ही है कि किसी राज्य में नवनिर्मित पार्टी को वहां की जनता ने इतनी भारी मात्रा में वोट देकर जिताया हो, जैसा दिल्ली की जनता ने किया। जी हाँ, 2013 में हुए दिल्ली के विधानसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की नवगठित 'आम आदमी पार्टी' ने 70 सीटों में से 28 सीटों पर जीत दर्ज कर अपनी लोकप्रियता पर मुहर लगायी थी। हालाँकि, यह सरकार बनाने के लिए काफी नहीं था और जिस कांग्रेस सरकार के विरुद्ध वो चुनाव लड़े थे, काफी कशमकश के बाद उसी कांग्रेस की मदद से सरकार बनानी पड़ी। मगर सरकार बनने के बाद से मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल यह शिकायत करते रहे कि कांग्रेस का रवैया सहयोगात्मक नहीं है और उन्हें खुल कर काम करने नहीं दिया जा रहा है। तब मात्र 48 दिनों में ही केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया और विधानसभा भंग हो गयी।
यदि इसके परिदृश्य में देखें तो अन्ना आंदोलन से अपनी एक खास पहचान बना चुके अरविन्द केजरीवाल तब तक लोगों के दिलों में ये विश्वास जगाने में कामयाब रहे थे कि उनकी पार्टी अगर बहुमत पाती है, तो अन्ना के सपने 'लोकपाल' को पास कराएगी और दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त करेगी, साथ ही साथ विकास की नयी ऊंचाईयों पर ले जाएगी। चूंकि, लोगों ने उनका जूनून देखा था आंदोलन के दौरान, इसलिए लोगों के मन में धारणा बन गयी थी कि ये बंदा जरूर कुछ न कुछ करेगा और उसी का नतीजा था कि केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली में स्थापित हो सकी।
खैर, दिल्ली की जनता ने एक बार फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के नए वादे फ्री वॉइ-फाई और मुफ्त बिजली पानी के नारे के साथ सत्ता की चाबी सौंप दी। उम्मीदों से बढ़ कर दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटों पर बेमिसाल जीत दर्ज हुयी। तबसे लेकर अब तक अरविन्द केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, मगर उनकी पार्टी में अब वो बात नहीं रह गयी है और यह बात हालिया विधानसभा चुनाव में साबित हो गयी है। पार्टी की रीढ़ कहे जाने वाले योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का सम्बन्ध पार्टी से जबरन खत्म कर दिया गया और अब स्वराज अभियान के नाम से योगेंद्र यादव दिल्ली में अपना पैरलल संगठन खड़ा करने में कमोबेश सफल रहे हैं। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से निकालने के बाद आरोप लगाया गया था कि वो पार्टी पर कब्ज़ा करना कहते हैं। हालाँकि, तब योगेंद्र यादव का कहना था कि केजरीवाल पार्टी लाइन से हट कर चल रहे हैं जिन उद्देश्यों के लिए पार्टी बनी थी, वो उस पर काम नहीं कर रहे हैं। अब जो भी हो केजरीवाल के इस निर्णय से जनता में उनकी इमेज तानाशाह की ही बनी।
गोवा और पंजाब में आम आदमी पार्टी काफी पहले से तैयारी कर रही थी और उसके नेता सौ फीसदी आश्वस्त थे कि दिल्ली की ही भांति इन राज्यों में भी उसकी सरकार बन जाएगी, किन्तु गोवा में शून्य सीटें और पंजाब में मात्र 20 सीटों से अरविन्द केजरीवाल को संतोष करना पड़ा। खैर, विधानसभा चुनावों में झटके के बाद आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी परीक्षा दिल्ली में ही होने वाली है, जहाँ एमसीडी चुनाव होने वाले हैं।
आम आदमी पार्टी फिर से चर्चा में है, क्योंकि बवाना से विधायक 'वेद प्रकाश' ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए हैं। विधायक ने इल्जाम लगाया है कि अरविंद केजरीवाल को कुछ लोगों ने घेर लिया है और वो सिर्फ उन्हीं की बात सुनते हैं। उन्हें पता ही नहीं होता कि पार्टी में क्या हो रहा है। अब विधायक का आरोप कितना सत्य है, ये तो वक़्त ही बताएगा लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने का ख्वाब देख रहे अरविन्द केजरीवाल के लिए ये शुभ संकेत नहीं है। अरविन्द केजरीवाल को भूलना नहीं चाहिए कि पंजाब और गोवा के परिणामों से उनकी पार्टी की साख गिरी ही है। दिल्ली की जनता भी बेहिसाब दिए गए बहुमत का हिसाब मांगेगी ही। केजरीवाल ने पूरे टाइम प्रधानमंत्री और दिल्ली के उपराज्यपाल के खिलाफ दोषारोपण किये हैं या आपराधिक मामलों में अपने विधायकों का बचाव करते रहे हैं। लोग वो दिन कैसे भूल सकते हैं जब केजरीवाल कहते थे कि 'वो राजनीति की गन्दगी को साफ करने के लिए कीचड़ में उतरे हैं'। लेकिन गन्दगी साफ करना तो दूर दिल्ली में इन्हीं के विधायकों जैसे सोमनाथ भारती, संदीप कुमार, दिनेश मोहनिया या फिर धर्मेन्द्र सिंह कोली हो, इन्हीं का बचाव करने में केजरीवाल का अधिक समय गुजरा।
वहीं अगर केजरीवाल के चुनावी वादों की बात करें तो वो किसी भी पुरानी पार्टी से बढ़ चढ़ कर वादे करते रहे हैं। कुछ तो ऐसे भी वादे थे जो उनके लिये पूरा करना संभव ही नहीं होता है। जैसे फ्री बिजली और मुफ्त का पानी, साथ ही साथ फ्री वाई फाई! खैर चुनाव में वादे तो होते ही हैं जनता का ध्यान खीचने के लिए उन्हें पूरा कौन करता है, पर इतना बढ़ चढ़कर भी नहीं बोलना चाहिए कि जनता के बीच आपकी विश्वसनीयता ही शून्य हो जाए। वैसे इस कड़ी में सभी शामिल हैं। कांग्रेस ने न जाने कितनी बार किसानों को आस दिलायी कि उनके कर्ज माफ़ होंगे, मगर आज भी किसान कर्जदार ही हैं। वहीं बीजेपी भी उत्तर प्रदेश के किसानों के कर्ज माफी का ऐलान कर सत्ता में आ तो गयी है, लेकिन किसानों को क्या मिलता है ये भी देखने का विषय होगा।
इसी कड़ी में, दिल्ली में होने वाले एमसीडी चुनाव को लेकर केजरीवाल ने नया ऐलान करते हुए सबको चौंका दिया है कि अगर पार्टी चुनाव जीतती है तो हाउस टैक्स माफ़ कर दिया जायेगा। हालाँकि उनके इस ऐलान कि चारों तरफ निंदा हो रही है, मगर मुँह है कहने में क्या जाता है! कहा है पूरा थोड़े न करना है। जैसे आज तक तमाम वादों को पूरा नहीं किया, वैसे आगे भी नहीं करेंगे। मगर केजरीवाल को दूसरे राज्यों में मिली शिकस्त से सबक लेने की आवश्यकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इन परिणामों से केजरीवाल कुछ सीखेंगे और दिल्ली की जनता से किये गए वादे को पूरा कर यह साबित करेंगे कि उनमें एक अच्छे लीडर होने की काबिलियत है, वरना चुनाव तो हर पांच साल बाद होने हैं अगर आप नहीं सीखे तो जनता आपको सिखा ही देगी।
ऐसा कहना और सोचना मूर्खता होगी कि दिल्ली की जनता ने आँख बंद करके केजरीवाल को इतना बड़ा बहुमत दे दिया था, बल्कि उन सभी को उम्मीद थी कि अरविन्द केजरीवाल आंदोलन से निकला नेता है, पढ़ा लिखा भी है और यह दिल्ली को बेहतर दिशा दिखलायेगा, किन्तु कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अधिकांश लोगों को निराशा ही हुई है। पिछले दिनों एमसीडी में हुए उप चुनाव में कांग्रेस ने वापसी के संकेत दे दिए हैं और जिस प्रकार कांग्रेस का टिकट पाने के लिए विभिन्न वार्डों में मारामारी हो रही है, उससे केजरीवाल की पार्टी को सजग हो जाना चाहिए। जाहिर तौर पर कांग्रेस का वोट ट्रांसफर होने से ही केजरीवाल इतने मजबूत हुए थे और अब जब कांग्रेस अपने वोट वर्ग को पुनः अपनी ओर खींच रही है तो केजरीवाल की पार्टी मुश्किल में पड़ सकती है। ऐसे में अगर इस एमसीडी चुनाव में केजरीवाल खुद को साबित नहीं कर पाते हैं तो फिर उनकी आने वाली राजनीति की प्रासंगिकता खतरे में पड़ सकती है। पर क्या इस बात को खुद केजरीवाल समझ रहे हैं? बड़ा सवाल है और इसका उत्तर जानने के लिए दिल्ली एमसीडी चुनाव और उसके परिणाम का हमें इन्तजार करना होगा।
- विंध्यवासिनी सिंह